दुनिया में जिस तरह से टैक्स वार छिड़ा हुआ है, उसको देखते हुए फिच रेटिंग्स ने भारत की वृद्धि दर के अनुमान को घटा दिया है. एजेंसी ने गुरुवार को चालू वित्त वर्ष के लिए भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के अनुमान को 10 आधार अंक घटाकर 6.4 प्रतिशत कर दिया. हालांकि, अगले वित्त वर्ष के लिए एजेंसी ने अपने अनुमानों को बरकरार रखा है. जाहिर है केंद्र और राज्य सरकारों को चाहिए कि इस समय अनुत्पादक खर्चों में कटौती की जाए. दरअसल यह समय कठोर वित्तीय अनुशासन का है . कुल मिलाकर समय की नाजुकता को देखते हुए अनावश्यक खर्च कम करना ही होंगे. इसका कारण स्पष्ट है कि अमेरिकी व्यापार नीति के बारे में पूरे विश्वास के साथ भविष्यवाणी करना कठिन है.दरअसल, नीतिगत अनिश्चितता के कारण व्यापार निवेश की संभावनाएं प्रभावित हो रही हैं, इक्विटी कीमतों में गिरावट से घरेलू संपत्ति में कमी आ रही है, तथा अमेरिकी निर्यातकों पर जवाबी कार्रवाई का असर पड़ेगा. यह ध्यान रहे फिच रेटिंग्स दरअसल,
एक अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी है जो निवेशों की क्रेडिट योग्यता का मूल्यांकन करती है. यह मूडीज और स्टैंडर्ड एंड पूअर्स के साथ “बिग थ्री” क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों में से एक है, और इसके रेटिंग का उपयोग निवेशकों और अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा ऋण और डि$फॉल्ट जोखिम का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है. फिच ने अपने मार्च जीईओ से 2025 में विश्व विकास अनुमानों में 0.4 प्रतिशत अंकों की कटौती की तथा चीन और अमेरिका की वृद्धि में 0.5 प्रतिशत अंकों की कटौती की.
इसमें कहा गया है, वैश्विक व्यापार युद्ध में हाल ही में हुई तीव्र वृद्धि के जवाब में फिच रेटिंग्स के विश्व विकास के पूर्वानुमानों को तेजी से कम कर दिया गया है. इस वर्ष विश्व विकास दर 2 प्रतिशत से नीचे आने का अनुमान है; महामारी को छोडक़र, यह 2009 के बाद से सबसे कमजोर वैश्विक विकास दर होगी. संस्था की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका की जीडीपी वृद्धि दर 2025 तक 1.2 प्रतिशत पर सकारात्मक रहने की उम्मीद है. बहरहाल, यह ठीक है कि भारत के लिए यह टैक्स युद्ध अन्य देशों की तुलना में अपेक्षाकृत कम नुकसानकारी है, लेकिन अभी हमें पता नहीं है कि यह कथित टैक्स युद्ध कब तक चलेगा. ऐसे में समझदारी इसी में ही है कि हम अपने खर्चों में कटौती करके चलें. दरअसल केंद्र और राज्य सरकार को तो ऐसा करना ही चाहिए लेकिन आम जनता को भी फालतू खर्चों पर रोक लगाकर बचत की आदत डालनी चाहिए. जिससे अर्थव्यवस्था स्थिर रहे. वैसे नीति आयोग ने देश की अर्थव्यवस्था की बहुत आशावादी तस्वीर प्रस्तुत की है.
नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने गुरुवार को नई दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था अगले तीन साल में जर्मनी व जापान से बड़ी हो जाएगी. नीति आयोग के अनुसार अर्थव्यवस्था 2047 तक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकती है. भारत दुनिया के लिए शिक्षा का केंद्र बन सकता है, क्योंकि अन्य सभी चीजों को अलग रखते हुए हमारे देश का सबसे बड़ा लाभ इसका लोकतंत्र है. उन्होंने कहा, फिलहाल भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. अगले साल के अंत तक हम चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हो जाएंगे. उसके बाद के वर्ष में हम तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हो जाएंगे.यह उम्मीद जताने वाले संकेत हैं लेकिन इसके बावजूद समाज और सरकारों के स्तर पर यह प्रयास जोर शोर से होने चाहिए कि हम अर्थ व्यवस्था की बेहतरी के लिए अनावश्यक खर्चों से कैसे बचें .