
सिंगरौली। जिला आयुष कार्यालय सिंगरौली इन दिनों गहरे प्रशासनिक और मानवीय संकट से गुजर रहा है। जिले में आयुर्वेद, यूनानी और प्राकृतिक चिकित्सा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वर्षों पहले पद स्वीकृत किए गए थे, लेकिन आज स्थिति यह है कि इन स्वीकृत पदों पर सरकारी स्तर पर अब तक समुचित भर्ती ही नहीं की गई। इसका सीधा असर आयुष अस्पतालों की कार्यप्रणाली और आम मरीजों की सेहत पर पड़ रहा है।
जानकारी के अनुसार जिले में आयुष विभाग के अंतर्गत कुल 66 नियमित पद स्वीकृत हैं, लेकिन इनमें से केवल 15 पद ही भरे हुए हैं, जबकि शेष पद लंबे समय से रिक्त पड़े हैं। यह स्थिति तब हैं, जब जिले के दूरदराज और ग्रामीण क्षेत्रों में आयुष पद्धति पर बड़ी आबादी निर्भर है। साथ ही जिला आयुष अधिकारी का एक पद स्वीकृत है और वह भरा हुआ है, लेकिन उनके अधीन काम करने वाले चिकित्सक, फार्मासिस्ट, कम्पाउंडर और सहायक स्टाफ की भारी कमी व्यवस्था को लगभग पंगु बना रही है। विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार विभिन्न पदों की स्थिति इस प्रकार है। जिसमें आयुर्वेद चिकित्सा विशेषज्ञ/ आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी, स्वीकृत पद 15, भरे हुए पद 5 और रिक्त पद 10 हैं। कम्पाउंडर के 15 में से 13 पद रिक्त हैं। महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता के में स्वीकृत पद 11 हैं। जिसमें भरे हुए पद 3 और रिक्त पद 8 हैं। औषध सेवक के स्वीकृत पद 15 से 13 रिक्त हैं। पंचकर्म टेक्नीशियन पुरुष, पद स्वीकृत होने के बावजूद नियुक्ति लगभग शून्य हैं। इन आंकड़ों से साफ है कि आयुष विभाग में स्टाफ की कमी केवल संयोग नहीं, बल्कि वर्षों से चली आ रही शासन और विभागीय लापरवाही का परिणाम है। वहीं जिले में कुल 15 आयुष औषधालय/ अस्पताल संचालित हैं। इन अस्पतालों का उद्देश्य कम खर्च में लोगों को आयुर्वेदिक और प्राकृतिक उपचार उपलब्ध कराना था, लेकिन स्टाफ की भारी कमी के कारण कई केंद्र या तो आंशिक रूप से ही संचालित हो पा रहे हैं या फिर नियमित सेवाएं नहीं दे पा रहे। स्थिति यह है कि पूरे जिले में औसतन हर महीने केवल 2500 से 2700 मरीज ही आयुष अस्पतालों में इलाज के लिए पहुंचते हैं। जानकारों का मानना है कि यदि सभी पद भर दिए जाएं, तो यह संख्या दोगुनी-तिगुनी हो सकती है।
