
जबलपुर। बालात्कार के अपराध में आजीवन कारावास की सजा से दंडित किये जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। अपीलकर्ता विगत दस सालों से जेल में निरुद्ध है। हाईकोर्ट जस्टिस अतुल श्रीधरन व जस्टिस अनुराधा शुक्ला की युगलपीठ ने अपील की सुनवाई करते हुए साक्ष्यों के अभाव में अपीलकर्ता को बरी करने के आदेश जारी किये।
अनूपपुर जिले के कोतमा थानान्तर्गत निवासी रिंकू उर्फ घनश्याम ने बलात्कार के अपराध में न्यायालय द्वारा 2015 में आजीवन कारावास की सजा से दंडित किये जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। अपील में कहा गया था कि घटना के दस दिन बाद पीडित पक्ष की तरफ से थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई गयी थी। डीएनए जांच के बिना ही उसे दोषी मानते हुए सजा से दंडित किया गया है। उस पर आरोप है कि उसने 12 साल से कम उम्र की बच्ची को उसकी सहेली तथा खलियान के बीच धान में परिया में बलपूर्वक ले गया और रस्सी से हाथ बांधकर उसके साथ बलात्कार किया। इस दौरान बच्ची की आवाज सुनकर उसकी सहेली की मॉ घटनास्थल में पहुंच गयी। उसके डांटने पर आरोपी भाग गया था।
युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि एफआईआर दर्ज करवाने का कारण आरोपी का भय बताया गया था। घटना के बाद पीडित की मां आरोपी के घर अपना आक्रोश व्यक्त करने गयी थी। एफआईआर के अनुसार आरोपी ने घटना के समय तथा उसके बाद पीडिता को किसी प्रकार की धमकी नहीं दी थी। बच्ची के साथ बलात्कार होते उसकी सहेली की मॉ ने देखा था। घटना के संबंध में सभी को जानकारी लग गयी थी। मेडिकल रिपोर्ट में भी बाहरी चोट के निशान नहीं पाये गये ।
पीडिता के पिता ने अपनी गवाही में स्वीकार किया है कि पीडिता के साथ बलात्कार होने के संबंध में उसे कोई जानकारी नहीं है। पीड़िता की माँ तथा अपीलकर्ता का पानी भरने की बात पर विवाद हुआ था। अपीलकर्ता ने मारपीट करते हुए बर्तन फेंक दिये थे। पीड़िता की मां ने भी अपने बयान में स्वीकार किया था कि सरपंच के कहने पर उसने एफआईआर दर्ज करवाई है। युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि अपीलकर्ता द्वारा कथित रूप से किए गए कृत्य के बारे में किसी भी स्वतंत्र स्रोत से कोई पुष्टि नहीं हुई है। एफएसएल रिपोर्ट के अनुसार पीड़िता के अंडरवियर में शुक्राणु की उपस्थिति बताई गयी थी। डीएनए प्रोफाइल का पता लगाने के लिए कोई जांच नहीं की गई। वैज्ञानिक साक्ष्य तथा विश्वसनीय गवाह नहीं होने के कारण ट्रायल कोर्ट का आदेश निरस्त करने योग्य है। इसके अलावा एफ आई आर दर्ज करने में देरी से विश्वसनीयता और ईमानदारी भी प्रभावित होती है। युगलपीठ ने उक्त आदेश के साथ अपीलकर्ता को दोषमुक्त कर दिया।
