जनजातीय उत्सव: भील भगोरिया और बुंदेली बधाई नृत्य की रंगारंग प्रस्तुति

भोपाल: मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में नृत्य,गायन एवं वादन पर केंद्रित गतिविधि “संभावना” का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें आज रविवार को इंन्दरसिंह निगवाल एवं साथी, धार द्वारा भील जनजातीय भगोरिया नृत्य एवं दीपेश पाण्डेय एवं साथी, सागर द्वारा बधाई नृत्य की प्रस्तुति दी गई।मध्यप्रदेश के झाबुआ और अलीराजपुर क्षेत्र में निवास करने वाली भील जनजाति का भगोरिया नृत्य, भगोरिया हाट में होली तथा अन्य अवसरों पर भील युवक-युवतियों द्वारा किया जाता है।

फागुन के मौसम में होली से पूर्व भगोरिया हाटों का आयोजन होता है। भगोरिया नृत्य में विविध पदचाप समूहन पाली, चक्रीपाली तथा पिरामिड नृत्य मुद्राएं आकर्षण की केन्द्र होती हैं। रंग-बिरंगी वेशभूषा में सजी-धजी युवतियों का श्रृंगार और हाथ में तीरकमान लिये नाचना ठेठ पारम्परिक व अलौकिक सरंचना है।वहीं दीपेश पाण्डेय एवं साथी, सागर द्वारा बधाई नृत्य प्रस्तुत किया गया।

बुन्देलखण्ड अंचल में जन्म विवाह और तीज-त्यौहारों पर बधाई नृत्य किया जाता है। मनौती पूरी हो जाने पर देवी-देवताओं के द्वार पर बधाई नृत्य होता है। इस नृत्य में स्त्रियाँ और पुरुष दोनों ही उमंग से भरकर नृत्य करते हैं। बूढ़ी स्त्रियाँ कुटुम्ब में नाती-पोतों के जन्म पर अपने वंश की वृद्घि के हर्ष से भरकर घर के आंगन में बधाई नाचने लगते हैं। नेग-न्यौछावर बांटती हैं। मंच पर जब बधाई नृत्य समूह के रूप में प्रस्तुत होता है, तो इसमें गीत भी गाये जाते हैं। बधाई के नर्तक, चेहरे के उल्लास, पद संचालन, देह की लचक और रंगारंग वेशभूषा से दर्शकों का मन मोह लेते हैं। इस नृत्य में ढपला, टिमकी, रमतूला और बांसुरी आदि वाद्य प्रयुक्त होते हैं।

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