ग्वालियर चंबल डायरी
हरीश दुबे
आठ जिलों की पुलिस तैनात करने, आम कार्यकर्ताओं से लेकर नेता प्रतिपक्ष और दर्जनों विधायकों के वाहनों की खानातलाशी लेने, होटलों और धर्मशालाओं को अधिग्रहित करने जैसी प्रशासनिक सख्ती के बावजूद कांग्रेस अशोकनगर में अपने तय कार्यक्रम के मुताबिक न्याय सत्याग्रह करने में कामयाब रही। जीतू पटवारी ने इस बड़े आंदोलन के जरिए अपनी राजनीतिक शक्ति दिखाने की कोशिश की लेकिन कमलनाथ, अजयसिंह और अरुण यादव जैसे नेताओं की इस आंदोलन में गैरहाजिरी ने पार्टी की गुटबाजी को भी जाहिर कर दिया। चूंकि यह कार्यक्रम दिग्विजय और जयवर्धन के परंपरागत प्रभाव वाले जिले में था, तो इन दोनों को तो मौजूद रहना ही था।
जयवर्धन ने खुद पूरे आंदोलन की कमान संभाली। दरअसल यह न्याय सत्याग्रह आयोजित ही जयवर्धन के अल्टीमेटम पर था। जीतू पटवारी बीते हफ्ते जब ओरछा के दौरे पर थे तब गजराज लोधी नामक युवक ने एक भाजपा कार्यकर्ता पर मारपीट करने और मैला खिलाने का आरोप लगाया था। बाद में यह युवक पलट गया और पटवारी पर ही बहकाकर भाजपा कार्यकर्ता के खिलाफ झूठी शिकायत कराने का इल्जाम लगा दिया, आनन फानन में मुंगावली थाने में पटवारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गई, यहीं से न्याय सत्याग्रह की व्यूहरचना तैयार हुई।
जयवर्धन सिंह ने कह दिया कि यदि सात जुलाई तक एफआईआर वापस नहीं होती है तो आठ जुलाई को प्रदेश की पूरी कांग्रेस मुंगावली थाने पहुंचकर गिरफ्तारी देगी। कांग्रेस ने यह कर भी दिखाया लेकिन पूरी कांग्रेस नहीं पहुंची, पीसीसी चीफ के आह्वान पर भी आधी कांग्रेस ही अशोकनगर और मुंगावली पहुंची, प्रदेश के कई बड़े नेताओं से लेकर तमाम विधायक नदारद रहे। बहरहाल, सरकार से लेकर प्रशासन तक को शुबहा था कि आंदोलन में जुटने वाली भीड़ बेकाबू होकर हालात बिगाड़ सकती है। भेदियों का इनपुट था, लिहाजा आंदोलन को कमजोर करने के लिए जरूरत से ज्यादा ही सख्ती बरती गई। फिर भी जीतू पटवारी अपनी ताकत दिखाने में कामयाब रहे। वर्षों से प्रदेश कांग्रेस पर वर्चस्व रखने वाली पुरानी पीढ़ी के अघोषित रिटायरमेंट के बाद 28 के चुनाव के लिए जीतू पटवारी खुद को पार्टी के एक छत्र नेता साबित करने के लिए अभी से मुस्तैद हैं।
झांकी जमाई पटवारी ने, सुर्खियां बटोर ले गए साहब सिंह
टीमटाम पटवारी ने सजाया लेकिन संघ में जाने वालों को लेकर विवादित बयान देकर साहब सिंह ने सस्ते में ही सुर्खियां बटोर ली। भाजपा को चुनौती देने के पटवारी के बयान से ज्यादा चर्चा साहब सिंह के विवादित वक्तव्य पर चल रही है। न्याय सत्याग्रह के बाकी मुद्दे पीछे छूट गए। प्रदेश के कद्दावर भाजपा नेता साहब सिंह पर पिल पड़े हैं। उनके खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की मांग उठी है। साहब सिंह ने भरे मंच से कहा ही कुछ ऐसा कि संघ परिवार और भाजपा को तल्ख होने का मौका मिल गया। साहबसिंह ने अभी तक अपने बयान पर कोई माफीनामा नहीं दिया है और वे अपनी बात पर कायम हैं।
तेजतर्रार नेता की छवि रखने वाले साहबसिंह पहली दफा ग्वालियर देहात से एमएलए बने हैं। 2018 में भी उन्होंने टिकट मांगा था, लेकिन ऐन वक्त पर कट गया, नाराज होकर साहब सिंह बसपा से टिकट ले आए, जीत तो नहीं सके, लेकिन कांग्रेस को तीसरे नंबर पर धकेल दिया। सिर्फ डेढ़ हजार वोट के अंतर से हारे साहब सिंह बाद में कांग्रेस में लौट आए और 23 के चुनाव में मौजूदा सांसद भारत सिंह कुशवाह को हराकर विधानसभा में पहुंचे हैं। कांग्रेस के भीतर ही साहब सिंह के तमाम विरोधी हैं, देखना है कि संघ को लेकर विवादित बयान देकर मुसीबत में फंसे साहबसिंह को अपनी पार्टी का किस हद तक साथ मिलता है और भाजपा उनके खिलाफ क्या स्टैंड अपनाती है।
सीएम ने फिर जगा दी जेसी मिल के आठ हजार मजदूरों में उम्मीद
डॉ. मोहन यादव पहले मुख्यमंत्री हैं, जो जेसी मिल पहुंचे थे। यहां के 8 हजार श्रमिक और उनके परिवार बकाया भुगतान के इंतजार में हैं। उत्तरी मप्र की यह सबसे बड़ी कपड़ा मिल पिछले तीन दशक से भी ज्यादा वक्त से बंद पड़ी है। सरकार चाहे भाजपा की रही हो अथवा कांग्रेस की। अभी तक किसी भी मुख्यमंत्री ने यहां आकर मिल मजदूरों और उनके परिवारों की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास नहीं किया था।
लेकिन आठ महीने पहले सीएम मोहन यादव ने मिल मजदूरों के बीच पहुंचकर उन्हें भरोसा दिलाया था कि जिस तरह इंदौर की बंद पड़ी हुकुमचंद मिल के आठ हजार मजदूरों के बकाया का निराकरण किया, इसी तर्ज पर जेसी मिल के मजदूरों को भी देनदारी मिलेगी। बहरहाल सूत्र बताते हैं कि प्रस्ताव तैयार किया जा चुका है। यह प्रस्ताव भोपाल जा चुका है, लेकिन संपत्ति बेचने का अधिकार शासन के पास नहीं है। इस कारण फंड एकत्रित नहीं हो पा रहा है। मिल के ऊपर 131 करोड़ की देनदारी बताई थी, जिसमें 8000 मजदूर और 8 बैंकों का बकाया शामिल है।
महीने गुजरते गए लेकिन मजदूरों की आस पूरी नहीं हुई। इससे पहले कि पिछले करीब चार दशक से बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी झेल रहे मजदूर नाउम्मीद हों, सीएम ने बीते रोज राजधानी में आयोजित एक कॉन्क्लेव में एक बार फिर भरोसा दिया है कि ग्वालियर के जेसी मिल मजदूरों के बकाया का भुगतान इंदौर की हुकुमचंद मिल की ही तरह जल्द होगा। सीएम की ओर से दोबारा सकारात्मक संकेत मिलने के बाद मजदूरों की निराशा फिर आशा में बदल गई है। खबर तो यही है कि सीएम ने अधिकारियों को जेसी मिल के निराकरण के लिए लगा दिया है। इस क्षेत्र के विधायक और प्रदेश सरकार के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर खुद पूरी प्रोसेस की मोनिटरिंग कर रहे हैं। मजदूरों को यकीन है कि जिस तरह सरकार ने इंदौर में हुकुमचंद मिल के मजदूरों को 300 करोड़ रुपए दिलवाये और 30 साल पुराना विवाद खत्म हुआ, ठीक वैसा ही ग्वालियर के जेसी मिल के मामले में होगा, उन्हें उनका हक मिलेगा और वह आर्थिक संकट से उबर सकेंगे।
