बेलगाम होते जा रहे हैं ट्रंप

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति ब्लादिमीर जेलेंस्की के बीच कूटनीतिक वार्ता के दौरान जैसी तू तू मैं मैं हुई वो अभूतपूर्व है. हाल के विश्व इतिहास में दो राष्ट्राध्यक्षों के बीच गली मोहल्ले के पड़ोसियों जैसा वार्तालाप इसके पहले शायद ही कभी देखा गया. ऐसा भी पहली बार हुआ है,जब किसी राष्ट्रपति ने अपने मेहमान राष्ट्रपति को देश से निकल जाने के लिए कहा हो. निश्चित रूप से वॉशिंगटन में जो कुछ हुआ उसकी कल्पना शायद ही किसी ने की हो. दरअसल, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बेलगाम नेता की तरह व्यवहार कर रहे हैं. वो अमेरिका जैसी महाशक्ति के राष्ट्रपति के तौर पर कम, एक व्यापारी की तरह अधिक पेश आ रहे हैं. उनके जैसा मर्यादाहीन व्यवहार न कभी देखा गया और शायद भविष्य में भी कभी नहीं देखा जाएगा.यह ठीक है कि ट्रंप अमेरिका को फिर से महान बनाने के वादे के साथ सत्ता में आए हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वो दूसरे संप्रभु राष्ट्रों को नीचा दिखाएं. बहरहाल,व्हाइट हाउस में जो कुछ हुआ और खासकर अमेरिकी राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति ने यूक्रेन के राष्ट्रपति को जिस तरह खरी-खोटी सुनाई, वह कल्पना से परे है. अमेरिकी राष्ट्रपति के सहयोगी भले ही यूक्रेन के राष्ट्रपति से माफी की मांग कर रहे हों, लेकिन सच यह है कि अपमान यूक्रेनी राष्ट्रपति का हुआ.उन्हें न केवल व्हाइट हाउस का दरवाजा दिखा दिया गया, बल्कि यह भी कह दिया गया कि यदि उन्हें अमेरिकी शर्तें स्वीकार हों तो वह लौटकर आ सकते हैं.यह यूक्रेन के हितों की अनदेखी कर उस पर अपनी मनमर्जी थोपना नहीं तो और क्या है? सभी इससे परिचित हैं कि ट्रंप बड़बोले एवं अलग शैली वाले नेता हैं और अपने दूसरे कार्यकाल में वह अमेरिका के साथ दुनिया की समस्याओं को आनन-फानन सुलझाना चाहते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह अपनी ही चलाएं. जब उन्होंने सबके सामने जेलेंस्की की जायज चिंताओं को भी सुनने-समझने से इन्कार कर दिया और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति को मूर्ख तक कह दिया, तब यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि बंद कमरे में वह अन्य शासनाध्यक्षों के साथ किस तरह पेश आते होंगे ? यह ठीक है कि अमेरिका सबसे शक्तिशाली राष्ट्र है, लेकिन उसके राष्ट्रपति का इतना अहंकारी और अक्खड़ होना ठीक नहीं.वैसे तो ट्रंप और जेलेंस्की के बीच बात तब बिगड़ी, जब अमेरिकी उप राष्ट्रपति जेडी वेंस ने दखल दिया, लेकिन चूक यूक्रेन के राष्ट्रपति से भी हुई. यदि वह खनन समझौते के लिए ट्रंप से मिलने आए थे तो युद्ध विराम के मसले पर चर्चा के पहले उन्हें यह आभास होना चाहिए था कि अमेरिकी राष्ट्रपति का इरादा क्या है ?उनका यह इरादा किसी से छिपा नहीं कि वह यूक्रेन को और अधिक सहायता देने के लिए तैयार नहीं. लगता है कि जेलेंस्की अपनी अनुभवनहीनता के चलते बिगड़ती बात संभाल नहीं सके. उन्हें इससे भली तरह परिचित होना चाहिए था कि ट्रंप रूस-यूक्रेन टकराव रोकने की जल्दी में हैं और वह इस युद्ध के लिए रूस से ज्यादा यूक्रेन के रवैये को जिम्मेदार ठहराते चले आ रहे हैं. नि:संदेह इसी के साथ ट्रंप और उनके सहयोगियों को भी यह समझना चाहिए कि यदि जेलेंस्की यूक्रेन की सुरक्षा की गारंटी के साथ रूस से शांति समझौता चाह रहे थे तो इसमें गलत कुछ भी नहीं.ट्रंप कुछ भी कहें, हमलावर तो रूस ही है. रूस-यूक्रेन युद्ध पर ट्रंप के रवैये से यह स्पष्ट है कि युद्ध के मोर्चे पर किसी तरह डटे जेलेंस्की की कठिनाई और यूरोप की चिंताएं बढऩे वाली हैं. बहरहाल, इस पूरे मामले से एक बात स्पष्ट है कि ट्रंप विश्वसनीय नेता नहीं है. इसलिए भारत को उनके साथ डील करते समय सतर्क रहना होगा.

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