ऑस्ट्रेलिया में अपने धार्मिक त्योहार का शांतिपूर्वक उत्सव मना रहे 16 यहूदियों की नृशंस हत्या और कई लोगों के घायल होने की घटना ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया है. यह हमला आकस्मिक नहीं था, न ही अंधाधुंध हिंसा का परिणाम. यह एक चयनित, लक्षित और वैचारिक आतंकवादी हमला था, जिसका उद्देश्य एक विशेष समुदाय को डराना, विभाजन पैदा करना और वैश्विक अस्थिरता को बढ़ावा देना था. ऐसे में इस घटना की तुलना भारत में हुए पहलगाम जैसे आतंकी हमलों से की जाना पूरी तरह तार्किक है, जहां निर्दोष नागरिकों को केवल उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर निशाना बनाया गया.सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि इस हमले के तार पाकिस्तान से जुड़े हमलावरों से सामने आ रहे हैं. यह कोई संयोग नहीं, बल्कि वर्षों से चली आ रही उस संरचना का हिस्सा है, जिसमें आतंकवाद को राज्य-प्रायोजित रणनीति के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है. फर्क सिर्फ इतना है कि अब इसकी आग केवल भारत, इज़राइल या अफगानिस्तान तक सीमित नहीं रही, बल्कि ऑस्ट्रेलिया जैसे अपेक्षाकृत सुरक्षित माने जाने वाले देशों तक पहुंच चुकी है. दरअसल, यह घटना एक बड़े सवाल को फिर से केंद्र में लाती है कि आतंकवाद की परिभाषा आखिर क्या है ? आज भी दुनिया के कई देश आतंकवाद को अपनी सुविधा के अनुसार परिभाषित करते हैं. कहीं ‘अच्छे’ और ‘बुरे’ आतंकवादी गढ़े जाते हैं, तो कहीं राजनीतिक या कूटनीतिक हितों के चलते आंखें मूंद ली जाती हैं. यही चयनात्मक दृष्टिकोण आतंकवाद को खाद-पानी देता है.
भारत वर्षों से यह कहता आया है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई साझा, स्पष्ट और बिना दोहरे मानदंडों के होनी चाहिए. संयुक्त राष्ट्र से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों तक भारत ने बार-बार जोर दिया कि जब तक आतंकवाद को उसकी विचारधारा, फंडिंग, प्रशिक्षण और सुरक्षित पनाहगाहों सहित परिभाषित नहीं किया जाएगा, तब तक उसकी जड़ें नहीं कटेंगी. दुर्भाग्यवश, भारत की इन चेतावनियों को लंबे समय तक ‘क्षेत्रीय समस्या’ मानकर नजरअंदाज किया गया.ऑस्ट्रेलिया की यह घटना इस भ्रम को तोड़ती है. यह साफ संकेत है कि आतंकवाद किसी सीमा, धर्म या भूगोल का मोहताज नहीं होता. आज यदि यहूदियों को निशाना बनाया गया है, तो कल कोई और समुदाय, कोई और देश इसकी चपेट में आ सकता है. इसलिए यह मान लेना कि आतंकवाद ‘दूसरों की समस्या’ है, सबसे बड़ी भूल है. अब समय आ गया है कि दुनिया आतंकवाद को लेकर अपनी ढुलमुल नीति छोड़े. आतंकवादी चाहे किसी भी विचारधारा, झंडे या मजहब की आड़ लें,वे केवल आतंकवादी हैं. उनके समर्थक, उन्हें शरण देने वाले और उन्हें राजनीतिक संरक्षण देने वाले भी उतने ही दोषी हैं.भारत की मांग अब केवल एक कूटनीतिक वक्तव्य नहीं, बल्कि वैश्विक सुरक्षा की अनिवार्यता बन चुकी है. आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त कार्रवाई, वित्तीय नेटवर्क पर कठोर प्रहार, सुरक्षित ठिकानों का अंत और वैचारिक कट्टरता पर रोक कि, ये सब अब विकल्प नहीं, मजबूरी हैं.ऑस्ट्रेलिया की घटना ने दुनिया को चेतावनी दे दी है. सवाल यह है कि क्या वैश्विक समुदाय अब भी आंखें मूंदे रहेगा, या फिर भारत की वर्षों पुरानी अपील को गंभीरता से लेकर आतंकवाद के समूल नाश की दिशा में ठोस कदम उठाएगा ? निर्णय अब टालने का नहीं, करने का समय है.
