साइबर ठगी का दायरा जितनी तेजी से बढ़ रहा है, उससे कहीं अधिक खतरनाक है उसका तरीका. ‘डिजिटल अरेस्ट’ नामक नया साइबर अपराध अब केवल तकनीक का दुरुपयोग नहीं, बल्कि लोगों की मानसिक, आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा पर सीधा हमला बन चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने इस बढ़ते खतरे को गंभीरता से लेते हुए जो कड़ा रुख अपनाया है, वह न सिर्फ समय की मांग है, बल्कि देश की साइबर सुरक्षा व्यवस्था के सामने एक महत्वपूर्ण चेतावनी भी है.बहरहाल, देशभर में तेजी से बढ़ते मामलों के बीच सोमवार को कोर्ट ने सीबीआई को इस पूरे मामले की व्यापक जांच सौंपते हुए संकेत दे दिया कि अब इस राष्ट्रीय स्तर की ठगी पर आधे-अधूरे कदम नहीं चलेंगे. यह कदम इसलिए भी अहम है क्योंकि इस स्कैम का नेटवर्क देशों की सीमाओं को पार कर चुका है, और इसके धागे अंतरराष्ट्रीय साइबर गिरोहों तक जाते हैं. डिजिटल अरेस्ट स्कैम में जालसाज सरकारी एजेंसियों के नाम पर वीडियो कॉल करते हैं, खुद को सीबीआई,ईडी, एनसीबी या पुलिस अधिकारी बताते हैं और पीडि़तों को यह विश्वास दिला देते हैं कि उनका आधार नंबर या फोन किसी गंभीर अपराध में इस्तेमाल हुआ है. डर की इस मनोवैज्ञानिक गिरफ्त में फंसाकर पीडि़तों को वीडियो कॉल पर बंधक बनाया जाता है,मानो वे वाकई हिरासत में हों. यह सिर्फ तकनीकी धोखाधड़ी नहीं, मानसिक उत्पीडऩ का आधुनिक रूप है.
इस ठगी का सबसे दर्दनाक पहलू है कि इसमें अधिकतर निशाना वरिष्ठ नागरिक बनते हैं. समाज का यह वर्ग तकनीकी जटिलताओं से पूरी तरह परिचित नहीं होता, और भय दिखाकर उनसे जीवनभर की कमाई निकलवा लेना आज के साइबर अपराधियों का सबसे आसान तरीका बन चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को विशेष अधिकार देकर राष्ट्रीय स्तर पर दर्ज सभी मामलों की एकीकृत जांच का आदेश दिया है. यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अलग-अलग राज्यों में दर्ज मामलों का एक-दूसरे से कोई समन्वय नहीं होता, जिससे अपराधी कानून के शिकंजे से बच निकलते हैं. कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि बैंक अधिकारियों की मिलीभगत सामने आती है, तो उनके खिलाफ भी कार्रवाई होगी. साइबर ठगी में ‘म्यूल अकाउंट्स’ की भूमिका सबसे निर्णायक होती है, और इन खातों का खुलना बिना बैंकिंग सहायता के संभव ही नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने आरबीआई से पूछा है कि जब दुनियाभर में बैंकिंग क्षेत्र फर्जी लेन-देन पकडऩे के लिए एआई का उपयोग कर रहा है, तो भारत पीछे क्यों है ? यह सवाल केवल आरबीआई से नहीं, बल्कि पूरे वित्तीय तंत्र से पूछा गया है,क्या हमारे बैंकिंग सिस्टम को आधुनिक खतरों की समझ है ? दूरसंचार विभाग को भी सख्त निर्देश दिए गए हैं कि एक ही व्यक्ति को कई सिम देने की प्रवृत्ति तुरंत रोकी जाए. हजारों फर्जी सिम कार्डों का इस्तेमाल कर साइबर गिरोह देशभर में लोगों को फंसाते हैं. यह नियंत्रण जितना तकनीकी है, उतना ही प्रशासनिक. कोर्ट ने पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना सहित सभी राज्यों को सीबीआई से पूर्ण सहयोग देने को कहा है. साइबर अपराध राज्य सीमाओं के भीतर बंद नहीं रहते, इसलिए केंद्र-राज्य एजेंसियों का समन्वय ही जांच की सफलता तय करेगा. कुल मिलाकर डिजिटल अरेस्ट स्कैम यह बता चुका है कि तकनीक जितनी उपयोगी है, उतनी ही खतरनाक भी हो सकती है. कानून अपना काम करेगा, ऐजेंसियां कार्रवाई करेंगी, परंतु नागरिकों को भी सतर्क रहना होगा. किसी भी सरकारी एजेंसी का अधिकारी वीडियो कॉल पर गिरफ्तारी नहीं करता, न ही किसी सुरक्षित खाते में पैसा ट्रांसफर करवाता है. सुप्रीम कोर्ट की पहल निश्चित रूप से राहत देती है,लेकिन इस नई साइबर लड़ाई में सजग नागरिक ही सबसे मजबूत कड़ी साबित होंगे.
