घुसपैठ पर सुप्रीम कोर्ट की सख़्त टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की टिप्पणियां केवल किसी एक याचिका या एक समुदाय पर टिप्पणी नहीं थीं; वे उस व्यापक राष्ट्रीय संकट की ओर संकेत थीं, जिसकी अनदेखी भारत अब और नहीं कर सकता. रोहिंग्या नागरिकों के बंदी प्रत्यक्षीकरण से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश का सवाल कि ‘क्या घुसपैठियों का लाल कालीन बिछाकर स्वागत करें ? ‘

दरअसल, भारत की आंतरिक सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, और सामाजिक संतुलन से जुड़ी सबसे गंभीर बहस का केंद्र है. मुख्य न्यायाधीश ने बेहद सख़्त शब्दों में कहा कि जो लोग सुरंग खोदकर, तार काटकर या अन्य गैर-कानूनी तरीकों से भारत में घुसते हैं, वे बाद में यह दावा नहीं कर सकते कि अब भारत के सभी कानून उन्हें विशेष संरक्षण दें. यह टिप्पणी केवल शब्दों का शोर नहीं, बल्कि उन सुरक्षा एजेंसियों की वास्तविक चिंताओं का प्रतिबिंब है जो वर्षों से अवैध घुसपैठ को राष्ट्रीय सुरक्षा की सबसे बड़ी कमजोरियों में से एक मानती रही हैं.रोहिंग्याओं का मुद्दा सिर्फ मानवाधिकार का प्रश्न नहीं, बल्कि कई शहरों में संगठित अपराध, नकली दस्तावेज़ रैकेट, हथियार व ड्रग्स नेटवर्क और कट्टरपंथी संगठनों की संभावित पैठ से गहराई से जुड़ा है. खुफिया एजेंसियों ने भी बार-बार चेताया है कि बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी और रोहिंग्या आबादी का अनियंत्रित प्रवेश भविष्य में जनसांख्यिकीय तनाव, स्थानीय संसाधनों पर अत्यधिक दबाव, और राजनीतिक ध्रुवीकरण को जन्म दे सकता है. मुख्य न्यायाधीश ने एक महत्वपूर्ण तथ्य की ओर भी ध्यान दिलाया कि भारत के अपने करोड़ों गरीब नागरिक रोज़मर्रा की मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे हैं. ऐसे में अदालत ने पूछा कि क्या घुसपैठियों को उन अधिकारों और सुविधाओं का लाभ दिया जाए जो अभी तक भारत का सामान्य नागरिक भी पूर्ण रूप से नहीं पा रहा? यह टिप्पणी वास्तव में कल्याणकारी राज्य की प्राथमिकताओं की व्यावहारिक व्याख्या है. भारत की शरणार्थी नीति अस्पष्ट है क्योंकि देश ने अभी तक 1951 रिफ्यूजी कन्वेंशन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. ऐसे में अदालत का सवाल स्वाभाविक है कि केंद्र सरकार ने क्या कभी रोहिंग्याओं को शरणार्थी घोषित किया है ? यदि नहीं, तो राज्यों पर उन्हें आश्रय देने का कानूनी दायित्व क्योंकर उत्पन्न होता है ? यह सवाल पूरे प्रशासनिक ढांचे को एक स्पष्ट नीति बनाने की दिशा में झकझोरता है. दरअसल,जब अवैध आबादी किसी शहर में बसती है, तो स्थानीय रोजगार पर दबाव बढ़ता है,मजदूरी कम होती है और

स्वास्थ्य-शिक्षा सुविधाओं पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है. इसके अलावा कई जगहों पर अपराध का ग्राफ बढ़ जाता है. जाहिर है यह सब मिलकर देश की अर्थव्यवस्था पर अदृश्य कर की तरह असर डालता है. भारत जैसे विशाल लेकिन संसाधनों की सीमाओं से जूझते देश के लिए यह स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण है.भारत एक मानवीय राष्ट्र है, लेकिन मानवीयता और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन अनिवार्य है. सुप्रीम कोर्ट ने इसी संतुलन की याद दिलाई है. घुसपैठ का संगठित रूप से मुकाबला करना, सीमा प्रबंधन मजबूत करना, और एक स्पष्ट राष्ट्रीय शरणार्थी नीति बनाना समय की जरूरत है.16 दिसंबर को होने वाली अगली सुनवाई इस बहस को दिशा दे सकती है, लेकिन देश के सामने संदेश स्पष्ट है कि

अवैध घुसपैठ सिर्फ सुरक्षा नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था, सामाजिक सौहार्द और प्रशासनिक संसाधनों के लिए भी बड़ा खतरा है. जाहिर है इस खतरे से निपटने के लिए अब भारत को निर्णायक कदम उठाने ही होंगे.

 

 

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