आतंकवाद पर और सख्ती जरूरी

स्वतंत्रता के बाद से ही भारत जिन चुनौतियों से जूझ रहा है, उनमें आतंकवाद सर्वोपरि है। इसकी शुरुआत राष्ट्रपिता की हत्या से हुई और फिर बीसवीं सदी खत्म होते होते देश के दो प्रधानमंत्रियों को आतंकवाद ने अपना शिकार बनाया। स्वतंत्र भारत के इन आठ दशकों में न सिर्फ कश्मीर बल्कि पंजाब, असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में आतंकवादी हिंसा में हजारों जवानों और निर्दोष नागरिकों का बलिदान हुआ है। ताजा वाकया पहलगाम में हुआ जहां करीब 26 पर्यटकों को धर्म पूछकर निर्दयी आतंकियों ने मौत के घाट उतार दिया। यह हद से गुजरने वाली बात थी और हमारी सेना ने ऑपरेशन सिंदूर चलाकर पड़ौसी देश में चल रहे आतंकी ठिकानों को नष्ट कर दिया। सरकारी आंकड़े इस सर्जिकल स्ट्राइक में करीब एकसौ आतंकियों के मारे जाने का दावा कर रहे हैं लेकिन यहां सिर्फ संख्या का सवाल नहीं है बल्कि जरूरत इस बात की है कि आतंकवाद और इसका पोषण करने वाली नफरती विचारधारा पर ऐसी करारी चोट की जाए कि आतंकवाद से सदैव के लिए देश को निजात मिल जाए।

आतंकवाद को रोकने के लिए, कई अलग-अलग मोर्चों पर काम करना होगा। इसमें आतंकवाद के वित्तीय संसाधनों को बंद करना, आतंकियों के पास हथियारों की पहुंच को रोकना और आतंक की जड़ को समझना शामिल है। आतंकवाद की जड़ों को हम पिछले सत्तर अस्सी वर्षों में बखूबी समझ चुके हैं और इसकी जड़ें पाक में ही हैं। बहरहाल, आतंकवाद को रोकने के लिए व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें सुरक्षा बलों के क्विक एक्शन के अलावा समुदाय आधारित कार्यक्रम, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और मानवाधिकारों का सम्मान भी शामिल है। आतंकी ताकतों पर गोली और बोली, दोनों से प्रहार करना होगा।

बहरहाल, लगता है कि सरकार आतंकवाद विरोधी मोर्चे पर फिलवक्त गोली और बोली, दोनों का इस्तेमाल कर रही है। इसी हफ्ते कश्मीर के शोपियां में सुरक्षाबलों ने लश्कर-ए-तैयबा के तीन आतंकियों को मुठभेड़ में ढेर कर दिया था और अब संघ मुख्यालय, सीआरपीएफ कैंप और बेंगलुरू के आईआईएससी जैसे बड़े प्रतिष्ठानों पर हमले का मुख्य आरोपी लश्करे तैयबा का टॉप कमांडर अबू सैफुल्ला भी मारा गया ही। हालांकि सैफुल्ला को पाक के सिंध प्रांत में मारा गया है और मारने वाले बेसुराग हैं लेकिन इस दुर्दांत आतंकी की मौत उसके हमलों से पीडि़त रहे भारत के लिए बड़ी राहत की बात है। इसके अलावा कूटनीतिक मोर्चे पर भी भारत का आतंकवाद के खिलाफ अभियान जारी है। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाक के झूठ का पर्दाफाश करने के लिए भारत सरकार विभिन्न देशों में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेज रही है। पक्ष विपक्ष की सीमा से ऊपर उठकर देश की एकजुटता को जाहिर करते हुए विभिन्न दलों के तीस सांसद अलग अलग देशों में भेजे जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भारत सरकार के तीनों ही शीर्ष नेता अपने वक्तव्यों में आतंकियों और उनके पालनहार पाकिस्तान को निशाना बनाते हुए हरकतों से बाज न आने पर तीखे नतीजों की चेतावनी दे रहे हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तो यहां तक कह चुके हैं कि ऑपरेशन सिंदूर अभी खत्म नहीं हुआ है और अभी तक की कार्यवाई तो बस एक ट्रेलर थी, अगर जरूरत पड़ी तो हम पूरी तस्वीर दिखाएंगे।

आतंकवाद विरोधी मोर्चे पर भारत का प्रदर्शन कामयाबी भरा है लेकिन हमारा मत है कि इतने भर से काम नहीं चलेगा। आतंकवाद और इसके खैरख्वाहों पर पूरी ताकत से कड़े प्रहार की जरूरत है। ऑपरेशन सिंदूर के उपरांत राजनीतिक से लेकर सामाजिक स्तर तक देश में जो एकजुटता का माहौल बना है, उसे देखते हुए कह सकते हैं कि आतंकवाद पर करारे हमले के लिए मौजूदा वक्त देश का माहौल सर्वथा अनुकूल है। आतंकवाद की कमर तोडऩे के लिए और अधिक सख्त फैसलों और कदमों की जरूरत है। आतंकवादियों को फंड देने वाले स्रोतों को बंद करना और उनके वित्तीय संसाधन खत्म करना होंगे। जिस तरह पंजाब में पूरे बॉर्डर को ऊंची कंटीली बाड़ से सील किया गया है, कुछ ऐसा ही कश्मीर में किया जाए। यदि वहां नदियां, घाटियां बाधा बनती हैं तो वहां निगरानी सख्त की जाए। आतंकियों तक हथियारों की पहुंच को रोकना होगा। आतंकी हमलों की स्थिति में, प्रतिक्रिया की क्षमता को मजबूत करना महत्वपूर्ण है। हम पहलगाम हमले में यह खामी देख भी चुके हैं।

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