सड़क किनारे बैठ बनाई जिलों में अपनी पहचान

शिल्पकार परिवारों को नसीब नहीं हो रहे पक्के घर

जबलपुर: आज से 60 बरस पहले अपने माता पिता और परिवारजनो के साथ हम लोग आगरा से जबलपुर पत्थर तराशने आए थे। तब यहां सिर्फ पिसन हारी की मडिया हुआ करती थी। वीरान पड़े जंगल जैसे इस क्षेत्र में हम लोग दिन भर पत्थरों को तराश कर सिल बट्टे, मूर्तियां, खल बनाकर बेचते थे। समय का पता नहीं चला और हमारे हाथ से बने सिलबट्टे शहर की शान बन गए थे। यह बाते त्रिपुरी वार्ड निवासी बराती लाल एवं उनके परिजनों द्वारा वार्ड परिक्रमा में बताई गई। एक दौर था जब सिल बट्टे बनाने का कार्य पूरे जिले में प्रसिद्ध था। तब राष्ट्रीय राजमार्ग से होकर गुजरने वाले लोग यहां रुककर खरीदते थे।

बाहर के जिलों में यहां से सैकड़ों सिलबट्टे भेजे जाते थे। लेकिन अब बंजारों की भांति जीवन गुजार रहे लगभग 8 से 10 शिल्पकार परिवारों को अपने पक्के घर की तलाश है। जहां वे अपने आशियाने मे गुजर बसर कर सके। अभी यह लोग कच्ची झोपड़ी में रहने को मजबूर है। ये शिल्पकार पत्थर की मूर्तियां भी गढ़ते है। वही परिवार के सदस्यों ने बताया कि सिलबट्टे की डिमांड अब कम हो गई है। यहां लगने वाला बाजार भी बंद हो गया है। नतीजा यह है कि पेट पालने के लिए हमें दूसरे जिलों पर आश्रित होना पड़ रहा है।

हुनर है पर सम्मान नहीं
त्रिपुरी वार्ड और आसपास के इलाके पहले सिलबट्टे, चकिया, खल, मुसल, चक्की व पत्थर से बने अन्य घरेलू सामान के लिए जाना जाता था। इस रोजगार से इन परिवारों के घरों में चूल्हे जलते थे। वार्ड के भूरेलाल बताते है कि पत्थरों पर कारीगरी का हुनर तो बचपन से ही था और यह हमारा पुश्तैनी धंधा रहा है। आजकल सिलबट्टा का उपयोग दिन प्रतिदिन कम होने से बिक्री में भी काफी कमी आई है। अब लोग आने वाली पीढ़ी को दिखाने के लिए खरीद कर रख लेते हैं। ऐसे में इस पुश्तैनी धंधे से परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। इससे कारीगरों की रोजी-रोटी पर खासा असर पड़ा है। इस वजह से कई लोग बेरोजगार हो गए है।

मिले योजनाओ का लाभ
अगर शिल्पकार परिवार पीएम विश्वकर्मा योजना के लिए प्रयास करते हैं तो आपको कुछ बेहतरीन सुविधाएँ मिल सकती है। शुरुआत में इनको कुछ दिनों की ट्रेनिंग से गुजरना होगा जिसमे इनको 500 रुपये प्रतिदिन का वजीफा भी मिलेगा। बाद मे 15,000 रुपये भी योजना के तहत मिलेंगे विश्वकर्मा कौशल सम्मान योजना जिसे विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना भी कहा जाता है, भारत सरकार की एक प्रमुख परियोजना है जिसका बजट 13,000 करोड़ रुपये का था। यह योजना कारीगरों और शिल्पकारों को एक विशेष पीएम विश्वकर्मा प्रमाणपत्र और आईडी कार्ड भी प्रदान करती है। बस इसके लिए दस्तावेजो का होना जरूरी है।
नहीं है पानी और बाथरूम की सुविधा
सड़क किनारे जीवन यापन करने वाले शिल्पकार परिवारों ने बताया कि यहां पीने के पानी और टॉयलेट तक की सुविधा नहीं है। सुबह शाम कई किलोमीटर दूर से पीने का पानी लाना पड़ता है। चुनावी दिनों के समय राजनेता आते हैं और बड़े-बड़े वादे कर गायब हो जाते हैं।

इनका कहना है
यह लोग यहां अतिक्रमण कर रह रहे हैं। जल्द ही यहां से सिक्स लेन रोड निकलेगी जिसके चलते इन परिवारों को यहां से हटना पड़ेगा। इनके लिए कुछ व्यवस्था जल्दी ही करेंगे।
सुनील गोस्वामी, पार्षद, त्रिपुरी वार्ड

पीएम विश्वकर्म योजना का लाभ लेने के लिए इन लोगों के पास दस्तावेजों का होना आवश्यक है। रही बात सड़क किनारे रहने की तो यह अतिक्रमण के दायरे में आता है। अगर इनके पास जरूरी दस्तावेज है तो यह योजना के लिए अप्लाई कर सकते हैं।
के पी रावत, नगर निगम संभागीय अधिकारी

आज से 60 साल पहले इस कार्य को चालू किया था तब मैं और आज बहुत अंतर है हम लोगों को घर चलाने में दिक्कत होती है।
बराती लाल बर्मन

कच्चे घरों में कौन रह सकता है। बारिश पानी और ठंड में बहुत ही ज्यादा दिक्कत होती है।
भूरेलाल

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