० जांच करने में लापरवाह बना वाणिज्यिक कर विभाग, ग्राहकों से वसूली जा रही मनमानी कीमतें
नवभारत न्यूज
सीधी 28 मार्च। केन्द्र सरकार द्वारा सामग्रियों की बिक्री में जीएसटी अनिवार्य किए जाने के बाद भी व्यवसाइयों द्वारा टैक्स चोरी का रास्ता निकाल लिया गया है। बड़े व्यवसाइयों द्वारा भी हजारों की खरीदी पर ग्राहकों को पक्का बिल नहीं दिया जा रहा है। कुछ व्यवसायी बिल के नाम पर फर्जी बिल दिए जा रहे हैं जिसमें जीएसटी नम्बर तक का उल्लेख नहीं रहता।
दरअसल वस्तु एवं सेवा कर या जीएसटी भारत सरकार की अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था है जो 1 जुलाई 2017 से लागू है। जीएसटी गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स है। भारत में जीएसटी लागू करने का इरादा व्यापार के लिए अनुपालन को आसान बनाना था। वस्तु एवं सेवा कर या जीएसटी एक व्यापक, बहुस्तरीय, गंतव्य-आधारित कर है जो प्रत्येक मूल्य में जोड़ पर लगाया जाता है। दरअसल भारत सरकार द्वारा जीएसटी को इस वजह से लागू किया गया था कि पूरे देश में वस्तुओं की कीमतें और टैक्स एक समान रहे। व्यापारी को भी अन्य टैक्स देने की बजाय जीएसटी चुकता करने के बाद सभी की भरपाई हो जाती है। जानकारों के अनुसार सीधी जिले में बड़े व्यवसायी बाहर से माल लाने के दौरान जीएसटी मजबूरी में चुकाते हैं। बाद में अपने यहां सामग्री की बिक्री करने के दौरान टैक्स चोरी करने के लिए पुराने हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। कागजी खानापूर्ति के लिए बड़े व्यवसायी अपने प्रतिष्ठान का कारोबार काफी कम दर्शाया जाता है। अधिकांश व्यापारी इस मानसिकता में हैं कि वास्तविक व्यापार की बजाय महज 25 फीसदी ही आंकड़ा दिखाया जाय। इसी के चलते सीधी जिले में हजारों की खरीदी करने वाले ग्राहकों को ही यह नहीं मालूम नहीं हो पाता कि उन्हें कितना जीएसटी खरीदी में देना पड़ रहा है। भारत सरकार के आदेशों के तहत हर सामान में ग्राहक को खरीदी के दौरान जीएसटी रजिस्ट्रेशन के साथ पक्का बिल देना चाहिए। बिल में इस बात का भी उल्लेख होना चाहिए कि सामग्री की कीमत क्या है और उसमें कितना जीएसटी जुड़ा हुआ है। यहां के व्यवसायी ग्राहकों को संतुष्ट करने के लिए फर्जी बिल पकड़ाते हैंए जिसमें जीएसटी का कोई उल्लेख नहीं रहता। बिडम्बना यह है कि वाणिज्यिक कर विभाग द्वारा भी प्रतिष्ठानों की औचक जांच पड़ताल नहीं की जाती जिससे बेखौफ होकर जीएसटी चोरी की जा रही है।
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ज्वेलरी प्रतिष्ठानों में और भी ज्यादा टैक्स चोरी
जिले में 80 फीसदी ज्वेलरी प्रतिष्ठानों में साल में करोड़ों का व्यवसाय होता है। यहां से बेची जाने वाली ज्वेलरी में ग्राहकों को जीएसटी संबंधित बिल नहीं दिया जाता। ग्राहकों को संतुष्ट करने के लिए व्यवसायियों द्वारा जो बिल दिया जाता है वह पूरी तरह से अस्पष्ट रहता है। उसमें जीएसटी का स्पष्ट ब्यौरा एवं शुद्ध सोना व चांदी का उल्लेख नहीं रहता है। ग्राहकों से इस संबंध में यही कहा जाता है कि यदि जीएसटी जोड़ दिया जाएगा तो ज्वेलरी का मूल्य काफी बढ़ जाएगा। इस वजह से ग्राहकों को जीएसटी संबंधित बिल नहीं दिया जा रहा है। व्यवसायियों की इस धांधली के कारण लाखों की ज्वेलरी खरीदी करने वाले ग्राहकों को कुछ समय बाद मालूम पड़ता है कि जिसको वह सोना समझकर खरीदे हैं उसमें सोने की मात्रा काफी कम है। चांदी के ज्वेलरी का हाल यह है कि उपयोग के चंद दिनों बाद ही उसका कलर पूरी तरह से बदल जाता है।
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इनका कहना है
यदि किसी ग्राहक को कच्ची रसीद व्यवसायिक प्रतिष्ठान द्वारा दिया जाता है और उसमें जीएसटी का कोई उल्लेख नहीं है तो इसकी सीधे शिकायत उनके विभाग में की जा सकती है। अनुमति लेने के बाद विभाग द्वारा भी जीएसटी चोरी के संबंध में व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के यहां जांच पड़ताल का काम समय-समय पर किया जाता है।
उदित गुप्ता, अधीक्षक सेंट्रल जीएसटी रीवा
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