खनन माफिया के समक्ष बेबसी क्यों ?

हाल ही में एक खबर सुर्खियों में रही जिसमें हरियाणा के खनन माफिया ने पूरा पहाड़ खोद कर बेच दिया. इससे जाहिर हुआ कि खनन माफिया देश में कितना ताकतवर होकर सामने आया है. केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें सभी खनन माफिया के समक्ष बेबस नजर आते हैं. दरअसल, यह खबर उद्वेलित करने वाली है कि हरियाणा के नूंह के पास 22 अरब रुपये कीमत के पहाड़ को खनन माफिया चट कर गया.यह परेशान करने वाला घटनाक्रम नूंह जिले में राजस्थान सीमा पर स्थित पहाड़ से जुड़ा है, जो अरावली पर्वतमाला का हिस्सा है.खनन विभाग की रिपोर्ट बताती है कि उपमंडल फिरोजपुर झिरका के कुछ इलाकों में खनन माफिया ने इस कृत्य को अंजाम दिया.कैसी विडंबना है कि गैर कानूनी तरीके से धन अर्जित करने की दबंगों की लिप्सा हमारे पर्यावरण व लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने से भी गुरेज नहीं करती. दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम यह भी है कि अवैध खनन माफिया से टक्कर लेने वाले कई अधिकारियों को तबादले के रूप में खमियाजा भी भुगतना पड़ा है. दरअसल,केंद्र सरकार पर्यावरण संरक्षण के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना चला रही है,जिसके अंतर्गत हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और दिल्ली में ग्यारह लाख मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करते हुए, यहां चौदह सौ किलोमीटर लंबे और पांच किलोमीटर चौड़े हरित गलियारे को बनाने का लक्ष्य है कि अरावली पहाडिय़ों की प्राकृतिक जीवन शक्ति को फिर से बहाल किया जा सके.एक समय था कि ये पहाडिय़ां जंगल, वन्य जीवों, जलचरों और प्राकृतिक जल निकासी के जरिये एक समृद्ध तंत्र बनाती थी,लेकिन दुर्भाग्य से अब अरावली पर्वत शृंखला देश की सबसे खराब स्थितियों के लिये जानी जाती है. यह दर्दनाक है कि अरावली पर्वत शृंखला की तीस से अधिक पहाडिय़ां पहले ही लुप्तप्राय हो चुकी हैं. जिसके चलते पूरे इलाके का पर्यावरण संतुलन विनाश बिंदु तक पहुंच गया है.

जो हालात हरियाणा और राजस्थान की सीमा से लगी अरावली पर्वत श्रृंखला की है, वही स्थिति मध्य प्रदेश में विंध्याचल पर्वत और नर्मदा घाटी की हो चुकी है.सदियों में विकसित हुई वन संपदा व जीव-जंतुओं के अधिवास अब विलुप्त होने के कगार पर हैं. इन सबके लिए खनन माफिया तो अपराधी हैं ही,साथ ही विकास के नाम पर जिस तरह से जंगलों को काटा जा रहा है और कंक्रीट की इमारतें खड़ी की जा रही हैं,वह भी मानवता के प्रति अपराध से कम नहीं है. जहां तक हरियाणा के इस चर्चित घटनाक्रम का सवाल है तो विश्व बैंक वनीकरण, जल संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के लिये वित्त पोषण करके अरावली परियोजना को संबल दे रहा है. दरअसल, इस परियोजना की सफलता इस बात पर निर्भर कती है कि हम अवैध खनन और अतिक्रमण रोकने के लिये संरक्षण कानूनों को कितनी सख्ती से लागू करते हैं. जिसमें भूमि संरक्षण अधिनियम जैसे कानूनी सुरक्षा उपायों को संरक्षित करना महत्वपूर्ण होगा. साथ ही सदियों में विकसित हुए प्रकृति के खजाने की रक्षा के लिये विभिन्न राजनीतिक दलों को तमाम मतभेदों व कृत्रिम विभाजन को दरकिनार करके आगे आना होगा. निस्संदेह, ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट दशकों से प्राकृतिक संसाधनों की लूट से हुए विनाश की क्षतिपूर्ति की दिशा में एक सार्थक कदम है.जिसमें सरकारी, निजी स्तर और सामुदायिक भागीदारी से इन प्राचीन पहाडिय़ों को पुनर्जीवित करने की आशा जगती है. कुल मिलाकर हमारी पृथ्वी को विनाश से बचने के लिए राज्य सरकारों को खनन माफिया के खिलाफ निरंतर कार्रवाई करनी होगी. इसी के साथ गैर सरकारी सामाजिक संस्थाओं की मदद से पर्यावरण के प्रति आम जनता के बीच जागरूकता भी पैदा करनी होगी. पर्यावरण संतुलन, प्रकृति का संरक्षण, नदियों की सुरक्षा, जंगलों का विस्तारीकरण ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिन पर अकेले सरकार कुछ नहीं कर सकती. इन महत्वपूर्ण और जीवनदायनी मुद्दों पर सरकार और जनता दोनों को साथ में मिलकर काम करना होगा. पर्यावरण संतुलन एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है. इसकी अनदेखी करना हमें बहुत भारी पडऩे वाला है. जाहिर है इस पर सभी को गंभीरता से विचार करना पड़ेगा.

 

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