सीरिया संकट से सावधान रहने की आवश्यकता

बांग्लादेश के बाद सीरिया में भी तख्ता पलट हुआ है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री को भारत भाग कर आना पड़ा. इसी तरह सीरिया के राष्ट्रपति बसर को रूस में शरण लेनी पड़ रही है. भारत को सीरिया संकट पर सतर्क रहने की जरूरत है क्योंकि इससे एक बार फिर कच्चे तेल के महंगा होने के आशंका है. इसके अलावा पहले से ही अशांत खाड़ी देशों में फिर से नई समस्या खड़ी हो गई है. बहरहाल, सीरिया में विद्रोही गुटों ने बशर अल-असद का तख्तापलट कर दिया.हालांकि असद सरकार के दमनकारी रवैये, कुशासन और तानाशाही के खिलाफ लोग काफी समय से नाराज थे.करीब तेरह वर्ष पहले असद को सत्ता से हटाने की मांग के साथ वहां जनआंदोलन उभरा था. मगर असद उस विद्रोह को दबाने में कामयाब रहे थे. इस बार सीरियाई सेना ने एक तरह से आत्मसमर्पण कर दिया और बिना किसी खून-खराबे के विद्रोही गुट हयात तहरीर अल-शाम ने आसानी से दमिश्क पर कब्जा कर लिया. सीरिया में विद्रोह की चिंगारी तभी फूटी थी, जब कई अरब देशों में तानाशाहों के खिलाफ जनाक्रोश भडक़ा था, जिसे ‘अरब स्प्रिंग’ कहा जाता है.अब सीरिया में तख्तापलट का बड़ा कारण रूस और ईरान का मदद से हाथ खींच लेना माना जा रहा है.भारत ने भी वहां शांतिपूर्ण और समावेशी प्रक्रिया के तहत सत्ता हस्तांतरण की उम्मीद जताई है. पर यह सवाल अपनी जगह है कि क्या वास्तव में सीरिया में लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू हो सकेगी. इसके पहले तानाशाही से मुक्त हुए लीबिया, अफगानिस्तान आदि देशों का उदाहरण सामने है, जहां तख्तापलट के बाद भी स्थितियां बेहतर होने के बजाय बदतर ही होती देखी गई हैं.सीरिया में भी विद्रोही गुट की कमान कट्टरपंथियों के हाथ में है, जो अल-कायदा से जुड़े रहे हैं.इसके अलावा, वहां कई देशों और अलगाववादियों के अपने स्वार्थ हैं.ईरान और रूस सीरिया के साथ इसलिए बने हुए थे कि सीरिया रणनीतिक रूप से मध्यपूर्व का एक महत्त्वपूर्ण देश है. ईरान को हमास और हिजबुल्ला जैसे चरमपंथी संगठनों के लिए साजो-सामान जमा करने के लिए सीरिया सबसे उपयुक्त जगह है.रूस का स्वार्थ तेल और मध्यपूर्व में अमेरिकी दबदबा रोकने को लेकर जुड़ा है. इसके अलावा, कुर्दिस्तान की मांग को लेकर कुर्द विद्रोहियों के अपने समीकरण हैं. एचटीएस में शामिल विद्रोही गुटों के भी अपने-अपने स्वार्थ हैं.इस तरह सत्ता हस्तांतरण के बाद वहां लोकतांत्रिक सरकार बन सकेगी और आम लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए समावेशी नीतियां बन सकेंगी, कहना मुश्किल है. दरअसल,दुनिया में कहीं भी आम लोग तानाशाही पसंद नहीं करते.सीरिया में असद और उनके पिता की तानाशाही और दमन से लोग परेशान थे.सीरिया के लोगों ने विद्रोही लड़ाकों का जिस उत्साह के साथ स्वागत किया, उससे यह भी पता चलता है कि बशर अल असद कहीं अधिक अलोकप्रिय हो गए थे.इस अलोकप्रियता का कारण उनका सीरिया पर निर्मम ढंग से शासन करना रहा. सीरिया लगभग 13 सालों से अस्थिरता और अशांति से जूझ रहा है. बसर के पूर्व उनके पिता असर लगभग 42 वर्षों तक सीरिया पर शासन करते रहे. इतने वर्षों तक शासन करने के बावजूद यह परिवार हमेशा असुरक्षा में रहा क्योंकि असर और बसर दोनों शिया समुदाय से आते हैं जबकि सीरिया सुन्नी बहुल देश है. ईरान शिया राष्ट्र है इसलिए वह हमेशा असर परिवार को समर्थन देता रहा, लेकिन हिज्बुल्लाह और हमास के खात्मे के बाद ईरान का ध्यान इजरायल के मोर्चे पर है. दूसरी तरफ रूस यूक्रेन के कारण उलझा हुआ है. यही वजह है कि ईरान और रूस बसर परिवार की मदद नहीं कर सके. नतीजे में विद्रोहियों ने आसानी से तख्ता पलट कर दिया.अब पश्चिम एशिया के देशों को यह सुनिश्चित करना होगा कि हयात तहरीर अल-शाम का सीरिया पर कब्जा जिहादी तत्वों के मनोबल को बढ़ाने का काम न करे. सीरिया में जो कुछ हुआ, उससे दुनिया भर के जिहादी संगठन बेलगाम हो सकते हैं. इसलिए भारत को सतर्क रहना होगा.

 

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