सर्दियों में जरूर करें ये प्राणायाम, रहेंगे स्वस्थ
योगाचार्य
रामनरेश रघुवंशी
ठंड पड़ रही है. वैसे तो योगासन और प्राणायाम शरीर को बेहतर बनाते हैं लेकिन सर्दी के मौसम के लिए कुछ खास प्राणायाम और योगासन होते हैं जो शरीर में गर्मी और ऊर्जा पैदा करते हैं
नाड़ी शुद्धि प्राणायाम
योग में नाड़ी शुद्धि का विशेष महत्व है यदि नाड़ियों मल से भरी हुई हैं. तो प्राण वायु का नाड़ियों में प्रवेश सम्भव नहीं हो सकता। जब शरीरस्थ बहत्तर हजारी हुई है. जो प्राण वायु रहित (शुद्ध) होगी, तभी योग साधक को प्राणायाम से विशेष लाभ प्राप्त होगा नाड़ी शुद्धि प्राणायाम के नियमित अभ्यास से संम्पूर्ण नाडीतंत्र, अंतःस्त्रावी ग्रन्थियों सहित. शरीर के सभी चकों (सिस्टमों) का संतुलन बन जाता है। क्योंकि असंतुलन का नाम है। याचि (रोग) है।
नाड़ी शुद्धि प्राणायाम की विधि
योग साधक सिद्धासन, पद्मासन या ध्यानासन में बैठकर, मेरुदण्ड (स्पाइन) गर्दन को सीधा रखें। नेत्रों को बन्द करलें। तर्जनी व अंगुष्ठ के अग्रभाग को मिलाकर बायीं हथेली को बाए घुटने पर रखें। और दाएं हाथ के अंगुष्ठ से दायीं नासिका छिद्र को बन्द करदें। अब बायीं नासिका छिद्र से वायु को धीरे-धीरे अन्दर भरे। वायु को अन्दर भरकर बायीं नासिका छिद्र को दो अंगुलियों (कनिष्ठा व अनामिका) से बन्द कर दें। यथासम्भव वायु को अन्दर रोककर रखें. इसे अन्तःकुम्भक कहते है। अब वायु को साधते साधते अत्यंत धीमी गति के साथ दायीं नासिका छिद से बाहर छोड । वायु या श्वास पूरी तरह से बाहर होने पर, पुनः दायीं नासिका छिद से वायु को धीरे-धीरे अन्दर भरें व अंगुष्ठ (अंगूठे) से दायीं नासिका छिद्र को बन्द करतें। वायु को रोककर फिर बायीं नासिका छिद्र से साधते साधते बाहर निकालें।
यह नाड़ी शुद्धि प्राणायाम का एक चक पूर्ण हुआ। इस प्रकार प्रारम्भिक अवस्था में दस से बारह चक का अभ्यास किया जा सकता है। नाड़ी शुद्धि प्राणायाम करते समय पूर्ण एकाग्रता प्राणों (श्वासों) पर केन्द्रित रहना चाहिए और श्वासों की गति अत्यन्त धीमी ध्वनिरहित होनी चाहिए।
नाड़ी शुद्धि प्राणायाम के लाभ
इस प्राणायाम को करने से सभी बहत्तर हजार नाड़ियां परिशुद्ध हो जाती हैं। प्रतिदिन नियमित अभ्यास से तनाव, घबराहट सभी प्रकार के मानसिक रोगों का समन होता है। समस्त वातरोग, धातुरोग, शर्दी, जुकाम, सायनस आदि रोगां में लाभकारी हैं। वात, पित्त, कफ रूपी त्रिदोष में समता आ जाती है जिससे शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है।
उज्जायी प्राणायाम
वर्तमान समय की अव्यवस्थित जीवनशैली के कारण थायराइड की समस्या आम हो गयी है। थायराइड ग्रन्धि गर्दन में श्वास नली के ऊपर व स्वरयंत्र के दोनों ओर दो भागों में स्थित होती है। थायराइड ग्रन्थि के असंतुलन से मानव शरीर अनेक प्रकार की व्याधियों से उरितिथल जाता है।
अगर आप भी थायराइड की समस्या से परेशान हैं तो इस अत्यंत लाभकारी उज्जायी प्राणायाम को आप अवश्य अपनाएं। इस प्राणायाम को नियमित रूप से करने पर कुछ ही दिनों में आपको चमत्कारिक परिणाम प्राप्त होंगे। इसको करने की विधि भो बहुत सरल है।
उज्जायी प्राणायाम की विधि
सिद्धासन, पद्मासन या योगोपयोगी आसन में बैठकर रीढ़ की हड्डी, गर्दन को सीधा रखें व नेत्रों को बन्द करलें। तर्जनी व अंगुष्ठ के अग्रभाग को आपस में मिलाकर दोनों हथेलियों को दोनों घुटनों पर रखलें, अब गले को सिकोड़ते (संकुचित) हुए खर्राटे सी आवाज के साथ दोनों नासिका छिद्रों से प्राणवायु को धीरे-धीरे अन्दर खींचे, वायु का स्पर्श रूपी घर्षण नासिका से न होकर कंठ से हृदय पर्यन्त होना चाहिए। प्रारम्भ में प्राणवायु को यथाशक्ति अन्दर रोककर रखें और फिर दायीं नासिका छिद्र को अंगुष्ठ से बन्द करके, बायीं नासिका छिद्र से वायु को अत्यन्त धीमी गति से बाहर छोड़े। यह उज्जायी प्राणायाम का एक चक हुआ। इसी प्रकार से प्रारम्भिक अवस्था में 6 से 8 बार इस अभ्यास को किया जा सकता है।
उज्जायी प्राणायाम के लाभ
उज्जायी प्राणायाम कंठ में स्थित कफ दोषों को दूर कर श्वासनलिका, थायराइड, पैराथायराइड, हृदयरोग, अस्थमा, नाड़ीदोष, जलोदर, अजीर्ण आमवात, क्षय, ज्वर, खांसी, प्लीहावृद्धि आदि रोगों का समन करता है। यह प्राणायाम सभी धातुओं के दोषों को दूर करता है एवं खर्राटे की समस्या से भी निजात देता है। उज्जायी प्राणायाम के द्वारा कंठ में स्थित विशुद्धि चक जाग्रत होता है एवं कुण्डलिनी जागरण में सहायक सिद्ध होता है।
सावधानियां
उच्च रक्तचाप, निम्न रक्तचाप, हृदयरोग एवं कंठ से सम्बन्धित शल्यचिकित्सा के रोगियों को उज्जायी प्राणायाम का अभ्यास योगाचार्य के निगरानी में ही करना चाहिये।.
भस्त्रिका प्राणायाम
वर्तमान समय के दौड़ती-भागती दैनिक चर्या के चलते लोगों के पास सांस लेने का भी हमय नहीं है। मुंह से सांस लेना, छाती व पेट को फुलाए बिना छोटी व उथली सांस लेना. स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं है। ये श्वसन किया के गलत तरीके अनेक शारीरिक वा मानसिक आधियां को जन्म देते है। प्राणायाम के माध्यम से श्वसन का सही तरीका सीखा जा सकता है। पूर्ण सजगता, पूर्ण धैर्य के साथ सांस लेना ही प्राणायाम का प्रारम्भिक अभ्यास है। सांसों पर पूरा नियंत्रण व विस्तार के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण भस्त्रिका प्राणायाम है। तो आइए प्राणों से परिपूर्ण सम्पूर्ण शरीर व मन को उर्जा प्रदान करने वाला भस्त्रिका प्राणायाम की चर्चा करते हैं।
भस्त्रिका प्राणायाम की विधि
सिद्धासन, पद्मासन या ध्यानासन में बैठकर मेरूदण्ड को सीधा रखें व नेत्रों को बन्द करलें। तर्जनी व अंगुष्ठ के अग्रभाग को आपस में मिलाकर दोनों हथेलियों को दोनों घुटनों पर रख लें। अब मुख को भली प्रकार से बन्द रखते हुए दोनों नासिका छिद्रों से श्वास को पूरा अन्दर डायाफ्राम तक भरना है तत्पश्चात् यत्नपूर्वक लोहार की धौंकनी के समान श्वास को बाहर छोड़ना है। यह भस्त्रिका प्राणायाम की एक आवृत्ति हुई इसी प्रकार इस प्राणायाम को ध्वनि के साथ रेचक पूरक करते हुए प्रारम्भिक दौर में पांच मिनट तक किया जा सकता है।
भस्त्रिका प्राणायाम के लाभ
भस्त्रिका प्राणायाम का सम्पूर्ण श्वसनतंत्र पर प्रभाव पड़ता है। जिस कारण फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती है व मस्तिष्क को शुद्ध प्राणवायु प्राप्त होती है। इस प्राणायाम के नियमित अभ्यास से श्वास रोग, दमा, शर्दी-जुकाम, साइनस आदि समस्त कफ रोग दूर होते हैं। शरीर के विषाक्त तत्वों का समन होता है। त्रिदोष सम होते हैं। गले से सम्बन्धित थायराइड आदि समस्त रोग दूर होते हैं। कुण्डली जागरण व आध्यात्मिक उन्नति में सहायक है।
सावधानियां
भस्त्रिका प्राणायाम उच्च रक्तचाप तथा हृदय रोग वाले व्यक्तियों को तीव्र गति से नहीं करना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में इस प्राणायाम को धीमी गति से करें। यदि प्राणायाम को करते समय सिर चकराए या अनावश्यक दबाव महसूस हो तो योगाचार्य से परामर्श करने के पश्चात् ही इस प्राणायाम को करें।