लोकतंत्र के खतरे में आने की चर्चाएं !

विपक्षी दल लगातार यह आरोप लगा रहे हैं कि जिस तरह से केंद्रीय एजेंसियों और संस्थाओं का उपयोग विपक्षी दलों के खिलाफ किया जा रहा है उससे देश का लोकतंत्र खतरे मेंआ गया है. गुरुवार को कांग्रेस ने पत्रकार वार्ता लेकर केंद्र सरकार पर आने गंभीर आरोप लगाए. इस पत्रकार वार्ता में सोनिया गांधी , राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खडग़े मौजूद थे. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि उनकी पार्टी के खाते फ्रीज कर दिए गए हैं.ऐसे में कांग्रेस पार्टी को चुनाव के लिए खर्च निकालना मुश्किल हो रहा है. कांग्रेस ने सवाल किया कि विपक्षी दलों को बराबरी का मौका नहीं मिलना क्या लोकतंत्र के कमजोरी के लक्षण नहीं है? कांग्रेस की पत्रकार वार्ता को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू ही हुआ था की रात को 9 बजे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट ने गिरफ्तार कर लिया. उन्हें शराब घोटाले के आरोप में गिरफ्तार किया गया. इस मामले में कानून अपना काम करेगा और अदालत फैसला देगी लेकिन क्या विपक्ष के इस आरोप में दम लगता है कि सरकार जानबूझकर केवल विपक्ष नेताओं के कथित भ्रष्टाचार को निशाना बना रही है ? ईडी और सीबीआई के छापों पर नजर डालें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि इन सरकारी एजेंसियों ने अधिकांश कार्रवाई विपक्ष के खिलाफ की है. लेकिन इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि जिन नेताओं को गिरफ्तार किया गया है उन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं. यदि गिरफ्तारी के पर्याप्त आधार नहीं होते तो इन नेताओं को आसानी से जमानत मिल सकती थी लेकिन सत्येंद्र जैन, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह जैसे नेताओं को सुप्रीम कोर्ट तक से राहत नहीं मिली है. इसलिए विपक्ष को अपने गिरेबान में भी झांकने की जरूरत है. जहां तक अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी का प्रश्न है तो उनकी गिरफ्तारी के कारण विपक्षी नेता जरूर एकजुट हुए हैं लेकिन आम जनता में उन्हें कितनी सहानुभूति मिलती है यह देखना होगा ! विपक्ष केंद्र सरकार पर एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगा सकता है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या उनकी सरकार के खिलाफ अभी तक भ्रष्टाचार का कोई गंभीर मामला सामने नहीं आया है.दरअसल, प्रधानमंत्री के ट्रैक रिकार्ड को देखते हुए भ्रष्टाचार के मामले में विपक्षी दल किसी भी प्रकार का आरोप लगाने में सक्षम नहीं है. यही वजह है कि विपक्षी दलों को अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी का ज्यादा राजनीतिक लाभ मिलेगा ऐसा लगता नहीं है ! जहां तक अरविंद केजरीवाल का प्रश्न है तो उन्हें अब लंबे समय तक राजनीति से बाहर रहना पड़ेगा. आम आदमी पार्टी के नेता भले ही दावा करें कि केजरीवाल मुख्यमंत्री बने रहेंगे लेकिन अब अरविंद केजरीवाल के लिए मुख्यमंत्री पद पर बने रहना लगभग असंभव होगा. दिल्ली प्रदेश विशिष्ट स्थिति रखता है. यहां उपराज्यपाल के पास असीमित शक्तियां हैं. उपराज्यपाल केंद्रीय गृह विभाग के अंतर्गत आते हैं. ऐसे में त्यागपत्र नहीं देने की स्थिति में अरविंद केजरीवाल को भविष्य में बर्खास्त किया जाना निश्चित है.अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी का असर दिल्ली और पंजाब के चुनाव अभियान पर पड़ेगा.आम आदमी पार्टी विक्टिम कार्ड जरूर खेल रही है लेकिन उसे बार-बार जनता के समक्ष सफाई देनी पड़ेगी. यानी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर समूचा विपक्ष इस समय रक्षात्मक है. दरअसल ,अरविंद केजरीवाल ने ईडी के नौ समंस का जवाब नहीं देकर भारी रणनीतिक और कानूनी गलती की है.इसका खामियाजा उन्हें एन लोकसभा चुनाव के समय उठाना पड़ रहा है.यदि वे नवंबर में ही पूछताछ के लिए ईडी के दफ्तर चले जाते तो उन्हें आज यह दिन देखना नहीं पड़ता.नवंबर में यदि ईडी उन्हें गिरफ्तार भी करती तो वो चार-पांच महीने बाद जमानत ले सकते थे जैसे संजय राउत के मामले में हुआ . संजय राउत करीब 120 दिन जेल में रहने के बाद जमानत पर बाहर आ गए. जाहिर है आम आदमी पार्टी के नेताओं ने अरविंद केजरीवाल के मामले में गंभीर गलतियां की.बहरहाल, चुनाव की घोषणा हो चुकी है. इसलिए केंद्रीय निर्वाचन आयोग का यह कर्तव्य है कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव निश्चित करें और ऐसा वातावरण बनाए जिससे सभी राजनीतिक दलों को अपनी बात कहने का समान मौका मिले. इधर,तमाम मामलों के बावजूद विपक्षी दलों का यह कहना सही प्रतीत नहीं होता कि देश का लोकतंत्र खतरे में है ?

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