शिक्षा और कोचिंग माफिया पर नकेल जरूरी

प्रदेश, विश्वविद्यालयों और राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं में जिस तरह से एक के बाद एक पेपर लीक कांड हो रहे हैं, उससे यह स्पष्ट हैं कि, जब तक शिक्षा और कोचिंग माफिया पर नकेल नहीं कसी जाएगी,तब तक पेपर लीक कांड नहीं रुकने वाले हैं. इस मामले में राष्ट्रीय स्तर की नीट परीक्षा को लेकर जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने हल निकाला वो समस्या का स्थाई समाधान नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की इस पहल को स्वीकार कर लिया कि जिन 1563 परीक्षार्थियों को ग्रेस मार्क दिए गए थे, उनकी मार्कशीट ग्रेस मार्क्स (यानी कृपांक) के बिना जारी की जाएगी और इन छात्रों को जून महीने में ही एक परीक्षा देने का मौका दिया जाएगा. जिन छात्रों को वैकल्पिक परीक्षा नहीं देनी है वो ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की इस पहल को स्वीकार किया.इसी के साथ याचिका कर्ताओं ने भी इसे मंजूरी दी. इसलिए फिलहाल यह मामला हल हो गया लगता है लेकिन जो मूल समस्या है उसका समाधान यह नहीं है.दरअसल, चिकित्सा पाठ्यक्रमों के दाखिले में धांधली की शिकायतें पुरानी हैं.उन शिकायतों को दूर करने के मकसद से ही एनटीए के माध्यम से प्रवेश परीक्षा कराने का निर्णय किया गया था. एनटीए ( नेशनल टेस्टिंग एजेंसी )की बनाई गई व्यवस्था के तहत नीट की परीक्षा के प्रश्नपत्र देश के सभी केंद्रों पर एक साथ विद्यार्थियों को मिलते हैं. उनमें किसी तरह की ग?ब?ी की गुंजाइश कम रहने का दावा किया जाता है.फिर भी, जिस तरह एनटीए की दूसरी परीक्षाओं में पर्चे बाहर निकल गए और कई परीक्षाएं रद्द करनी प?ीं, उससे नीट को लेकर भी आशंका गहरी हुई है. एनटीए को बहुत भरोसेमंद और चाक-चौबंद संस्था माना जाता है, अगर उसकी परीक्षाओं में भी धांधली के आरोप लग रहे हैं, तो स्वाभाविक ही इससे उसकी साख पर सवाल उठते हैं. दरअसल,पिछले कुछ वर्षों में प्रतियोगी और प्रवेश परीक्षाओं के पर्चे बाहर होने की घटनाएं तेजी से ब?ी हैं. न केवल छोटे सरकारी पदों के लिए, बल्कि राज्यों के लोकसेवा आयोगों की परीक्षाओं के भी पर्चे बाहर होने की घटनाएं हो चुकी हैं. उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड में अनेक प्रतियोगी परीक्षाएं इसीलिए रद्द करनी प?ीं कि उनके पर्चे परीक्षा से पहले ही बाहर निकल चुके थे.

इसे लेकर पहले उत्तराखंड सरकार ने क?े कानून बनाए, फिर केंद्र सरकार ने भी कानून बनाने की घोषणा की. नकल माफिया पर नकेल कसने के लिए हर सरकार कमर कसती दिखती है, लेकिन नकल कराने वालों के हौसले पस्त प?ते नजर नहीं आते. परीक्षाएं रद्द होने से बहुत सारे विद्यार्थियों की मेहनत पर पानी फिरता, उनका मनोबल टूटता और पैसे की बर्बादी होती है. इस हताशा में कई विद्यार्थी खुदकुशी तक का रास्ता अख्तियार करते देखे जा रहे हैं.जब तक सरकारें इस मामले में दृ? इच्छाशक्ति नहीं दिखाएंगी, यह सिलसिला शायद ही रुके.

बहरहाल,उत्तर प्रदेश , राजस्थान , मध्य प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में परीक्षा पेपर लीक और घोटाले 18-25 आयु वर्ग के युवा मतदाताओं के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय रहे हैं. यह चौंकाने वाला तथ्य है कि पिछले पांच सालों में 15 राज्यों में 41 पेपर लीक हुए हैं , जिससे 1.4 करोड़ नौकरी चाहने वाले प्रभावित हुए हैं,जिन्होंने एक लाख से ज़्यादा रिक्तियों के लिए आवेदन किया था. जिस तरह से परीक्षाओं में लगातार गड़बडय़िां सामने आ रही हैं उससे युवा मतदाताओं में नाराजग़ी और निराशा पैदा हुई है. पेपर लीक कांड की वजह से राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार को जाना पड़ा था. उत्तर प्रदेश में भी भाजपा की हार के पीछे पेपर लीक कांड एक बड़ी वजह है. बार-बार पेपर लीक होने से देश के युवाओं में घोर निराशा और आक्रोश है. इस मामले में राज्य और केंद्र सरकारों को समन्वित और ठोस प्रयास करने होंगे. परीक्षा की पूरी प्रणाली पारदर्शी और निष्पक्ष हो यह सुनिश्चित करने के लिए यदि अलग से एक कमीशन भी बनाना पड़े तो सरकार ने ऐसा करने से हिचकना नहीं चाहिए. यह बहुत ही गंभीर और संवेदनशील मसला है. युवाओं में बढ़ती हताशा, कुंठा और हिंसा का कारण परीक्षाओं में गड़बड़ी भी है. इस हताशा में युवा आत्महत्या के लिए प्रेरित होते हैं या नशे के आदी हो जाते हैं. जाहिर है इस समस्या से युद्ध स्तर पर निपटा जाना चाहिए. कुल मिलाकर शिक्षा और कोचिंग माफिया को समूल नष्ट करना ही इस समस्या का एकमात्र हल है.

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