राजशाही के अंत के बाद से राजनीतिक अस्थितरता और अनिश्चितता से ही जूझता रहा है नेपाल

नयी दिल्ली 09 सितम्बर (वार्ता) भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हिमालयी देश नेपाल में राजशाही समाप्त होने के बाद से पिछले सत्रह वर्षों में राजनीतिक अस्थिरता और अशांति का दौर रहा है और इस अल्पावधि में देश में दस से भी अधिक बार सरकारें बदली हैं।

दो बड़े देशों चीन और भारत से घिरे नेपाल की राजनीति और विदेश नीति इन दोनों देशों के साथ उसके संबंधों से प्रभावित रही है और अलग-अलग सरकारों को दोनों देशों के बीच संतुलन साधने की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। नेपाल में बाहरी ताकतों की दखलंदाजी के कारण भी अस्थिरता का माहौल बनता रहा है।

करीब तीन करोड़ की आबादी वाले नेपाल में एक दशक तक चले गृह युद्ध के बाद 239 वर्ष पुरानी राजशाही का अंत होने के साथ वर्ष 2008 में गणतंत्र की स्थापना हुई थी। पिछले सत्रह वर्षों में देश ने कई विरोध प्रदर्शनों के कारण बार-बार अस्थिरता और अनिश्चितता का सामना किया और औसतन हर एक-दो साल में सरकार बदलती रही। इस दौरान देश में 13 बार प्रधानमंत्री के स्तर पर सत्ता परिवर्तन हुआ। निवर्तमान प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली चार बार, पुष्प कमल दहल प्रचंड तीन बार और शेर बहादुर देउबा दो बार प्रधानमंत्री रहे। देश में राजनीतिक अस्थिरता का अंंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि किसी भी प्रधानमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया।

मौजूदा घटनाक्रम इसी कड़ी का हिस्सा है। देश में लंबे समय से व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा पहले से ही सुलग रहा था और सरकार के सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के आदेश के बाद विशेष रूप से युवाओं जिन्हें ‘जेनरेशन जेड’ कहा जा रहा है का गुस्सा सड़कों पर फूट पड़ा। युवा आबादी के सड़कों पर उग्र विरोध प्रदर्शन ने विद्रोह का रूप ले लिया। दो दिन के उग्र प्रदर्शनों के बाद प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा। इससे पहले उनके कुछ मंत्रियों ने भी इस्तीफा दे दिया था। उग्र भीड़ ने संसद भवन तथा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के निजी आवासों पर तोड़फोड़ तथा आगजनी की। प्रदर्शन के दौरान सोमवार को पुलिस की कार्रवाई में 20 लोगों की मौत हो गयी और करीब साढे तीन सौ लोग घायल हो गये। सरकार ने सोमवार को ही सोशल मीडिया पर पाबंदी हटा ली थी लेकिन इसके बावजूद प्रदर्शनकारी शांत नहीं हुए और आज फिर सड़कों पर उतर आये और प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग की।

नेपाल का मौजूदा घटनाक्रम प्रधानमंत्री ओली के चीन में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में हिस्सा लेकर स्वदेश लौटने के बाद हुआ है। उनके इसी महीने ही भारत दौरे पर आने की संभावना थी। श्री ओली करीब बारह महीने पहले प्रधानमंत्री बनने के बाद से अब तक भारत यात्रा पर नहीं आये थे। भारतीय विदेश सचिव उनके भारत दौरे की तैयारी के सिलसिले में पिछले महीने नेपाल यात्रा पर गये थे।

नेपाल के इस घटनाक्रम को भारत के एक और पड़ोसी देश बंगलादेश के पिछले वर्ष के घटनाक्रम की तरह ही देखा जा रहा है। उस समय बंगलादेश में छात्र विरोध प्रदर्शन के उग्र आंदोलन का रूप लेने के बाद वहां की प्रधान मंत्री शेख हसीना को देश छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी थी।

नेपाल में पिछले करीब तीन दशकों में अनेक आंदोलन हुए हैं। वर्ष 1990 में जनआंदोलन में राजशाही के खिलाफ किये गये प्रदर्शन में सैकड़ों मौतें हुई।

वर्ष 1996 से 2006 तक चले माओवादी विद्रोह में कम्युनिस्ट विद्रोहियों और सरकार के बीच गृहयुद्ध जैसी स्थिति बन गयी जिसमें 17 हजार से अधिक लोग मारे गये।

वर्ष 2006 में दूसरा जनआंदोलन हुआ जिसने राजशाही को कमजोर कर गणतंत्र का मार्ग प्रशस्त किया।

वर्ष 2007 से 2008 के दौरान हुए मधेसी आंदोलन में तराई क्षेत्र में जातीय नेपाली अधिकारों की मांग के चलते हुई हिंसा में अनेक लोग मारे गये।

वर्ष 2015 में मधेसी-ठारू प्रदर्शन , वर्ष 2019 से 2020 तक नागरिकता कानून और भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शन में काठमांडू और तराई में हिंसा तथा पुलिस कार्रवाई में कई लोग घायल हुए । वर्ष 2023 से 24 तक हुए राजशाही समर्थकों के प्रदर्शन में भी हिंसक झड़पें हुई।

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