नयी दिल्ली, 29 अगस्त (वार्ता) महाराष्ट्र आवास एवं क्षेत्र विकास प्राधिकरण (म्हाडा) ने शुक्रवार को उच्चतम कोर्ट में बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देते हुए तत्काल सुनवाई की मांग की, जिसमें म्हाडा अधिनियम की धारा 79-ए के तहत जारी किए गए 935 नोटिसों की जांच के लिए एक उच्च-स्तरीय समिति गठित करने का निर्देश दिया गया था।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची और न्यायमूर्ति विपुल एम. पंचोली की पीठ के समक्ष यह मामला उठाया और मानसून सीजन को देखते हुए शीघ्र सुनवाई का आग्रह किया।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा, “हाईकोर्ट का निष्कर्ष है कि म्हाडा जर्जर इमारतों को गिराने के लिए सक्षम नहीं है। तत्काल सुनवाई की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि भारी बारिश के कारण कुछ इमारतें गिरने लगी हैं। इसलिए हम इस आदेश पर रोक लगाने की प्रार्थना करेंगे… इस पर तत्काल सुनवाई की आवश्यकता है।”
पीठ ने मामले की सुनवाई 16 सितंबर के लिए सूचीबद्ध की है।
एमएचएडी अधिनियम की धारा 79-ए, मुंबई में जर्जर और क्षतिग्रस्त इमारतों, विशेष रूप से मुंबई नगर निगम अधिनियम की धारा 354 के तहत खतरनाक घोषित इमारतों के पुनर्विकास से संबंधित है।
बांबे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी और न्यायमूर्ति आरिफ एस. डॉक्टर ने 28 जुलाई के अपने आदेश में कहा कि कार्यकारी अभियंताओं के पास नोटिस जारी करने का अधिकार नहीं है और उन्होंने एक उच्च-स्तरीय समिति गठित करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई बड़े पैमाने पर सत्ता के दुरुपयोग के समान है।
हाईकोर्ट ने पहले कहा था कि धारा 79-ए के तहत नोटिस जारी करने के लिए धारा 65 के तहत सक्षम प्राधिकारी द्वारा या धारा 354 के तहत नोटिस द्वारा इमारतों को ‘खतरनाक’ के रूप में पूर्व-वर्गीकृत करना आवश्यक है। उसने अधिकारियों की वैधानिक सीमाओं का उल्लंघन करने के लिए आलोचना की थी।
इसने म्हाडा के उपाध्यक्ष पर वैधानिक आवश्यकताओं पर ध्यान न देने के लिए कड़ी फटकार लगाई और कहा कि इस तरह के मनमाने कार्यों से अनुच्छेद 14, 21 और 300ए के तहत संवैधानिक अधिकारों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
इस फैसले से व्यथित होकर म्हाडा ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया। इससे पहले चार अगस्त को न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने म्हाडा की एक याचिका पर नोटिस जारी किया था और आठ अगस्त को, न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक अन्य संबंधित याचिका पर नोटिस जारी किया और इसे पहले के मामले से जोड़ दिया था।
