इंदौर: शिक्षा का सत्र शुरू हो चुका है. सरकारी और निजी स्कूलों में नए छात्रों की आमद हो चुकी है. इस वर्ष भी पालकगण अपने बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला करवाने के लिए मज़बूर है. शायद सरकारी स्कूलों से शिक्षा सुविधाएं काफी दूर है.अगर देश की बात की जाए तो भारत में तकरीबन दस लाख बावीस हज़ार तीन सौ छियासी सरकारी स्कूल है.
अगर सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों की तुलना की जाए तो गैर सरकारी स्कूलों में अधिमूल्य लागत पर व्यक्तिगत ध्यान व नवीन पाठ्यक्रम पदान करते है. जबकि सरकारी स्कूल मुफ्त शिक्षा समान अवसर, सामाजिक कौशल विकास, आत्मविश्वास और सुरक्षित वातावरण, सुलभता विविधता और मानकीकृत शिक्षा को बढ़ावा देते हैं. फिर भी आज पालकगण अपने बच्चों के लिए गैर सरकारी स्कूल की चुनते है जो चिंता का विषय है. इसके कई कारण सामने आए है जिनमें सबसे बड़ा और ध्यान देने वाला कारण है शिक्षक के ज्ञान और पढ़ाने की प्रक्रिया की विशेषताएं या शिक्षक की गुणवत्ता, जो पालक को निजी स्कूलों में दिखाई देती है. सरकारी स्कूलों में छात्रों की कमी दिख रही है.
इनका कहना है
सरकारी स्कूल अपने आप में महत्वपूर्ण है. यहां वो प्रणाली है जो पूरे देश के छात्रों को जोड़े रखती है. यहां गंभीर बात है. राज्य एवं केंद्र सरकार को इस पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
शुभम मालवीय
सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को दूसरे कार्य में झोंक दिया जाता है. जबकि अच्छी शिक्षा देने के लिए शिक्षकों को समय-समय पर प्रशिक्षण देना चाहिए. तभी सरकारी स्कूल के छात्रों की शिक्षा का स्तर ठीक हो पाएगा.
नवीन बेनवाल
पीएससी, जेईई, नीट जैसी परीक्षाओं में परीक्षा पत्र इतने कठिन होते है कि टीचर भी हल करने के परेशान हो जाते है. अपने बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए माता-पिता निजी स्कूल जाते हैं जो मजबूरी है.
नदिम खान
