ऑपरेशन सिंदूर: पराक्रम की तेजस्विता, मानवता की मर्यादा

“ऑपरेशन सिंदूर” भारतीय सैन्य इतिहास में केवल एक सैन्य उपलब्धि नहीं, बल्कि यह मानवीय मूल्यों की पुनर्पुष्टि है. जब एक ओर आतंक की छाया निर्दोष जीवन को निगलने को आतुर हो, तब भारतीय सेना ने अपने सटीक और संयमित प्रहार से यह सिद्ध किया कि शौर्य केवल रणभूमि की चीख नहीं, अपितु विवेक और मूल्यबोध की गर्जना भी हो सकता है. यह ऑपरेशन किसी जाति, धर्म या भूभाग के विरुद्ध नहीं था,यह था उस अंधकार के विरुद्ध जो जेहाद के नाम पर मासूमियत का गला घोंटता है.भारतीय सेना ने इस कार्यवाई में जिस निपुणता और अनुशासन का प्रदर्शन किया, वह किसी तपस्वी के संयम जैसा था. यह केवल बंदूक की जीत नहीं थी, यह उस मर्यादा की जीत थी जो युद्ध के क्षण में भी मानवता की सीमाओं का उल्लंघन नहीं करती. हर कमांडो, हर यूनिट इस अभियान में जैसे मां भारती के सिन्दूरी मस्तक की रक्षा में रत कोई अग्निपुत्र था.ऐसे अभियानों में सेना केवल शत्रु का संहार नहीं करती, वह राष्ट्र की आत्मा को निर्मल करती है.

इस ऐतिहासिक कार्रवाई की नींव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शी और अडिग नेतृत्व क्षमता स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है.उनके दृढ़ निश्चय और स्पष्ट दृष्टिकोण ने सेना को वह मनोबल और राजनीतिक संबल प्रदान किया, जिसकी छाया में इस प्रकार का रणनीतिक कदम संभव हो सका.जब निर्णय लेने वाला नेतृत्व निष्ठावान हो, तो राष्ट्र स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है. प्रधानमंत्री मोदी ने यह प्रमाणित किया है कि एक सशक्त लोकतंत्र न केवल आतंरिक शांति बल्कि बाह्य आक्रमणों से भी पूर्ण आत्मविश्वास से निपट सकता है.पाकिस्तान की जनता से कोई विरोध नहीं,विरोध है उस विकृत राजनीति और चरमपंथी सोच से जिसने उस भूभाग को अपने ही रक्त से सींच दिया है. यह आवश्यक है कि पाकिस्तान की राजनीतिक नेतृत्व प्रणाली अब परिपक्वता और जि़म्मेदारी की ओर उन्मुख हो.जब तक वहां की सरकारें सेना या धार्मिक कठपुतलियों के हाथों की कठपुतली बनी रहेंगी, तब तक वहाँ स्थायित्व और शांति की कोई संभावना नहीं. भारत की यह कार्रवाई केवल आत्मरक्षा का अधिकार नहीं, एक सभ्य और स्थिर उपमहाद्वीप की ओर दिया गया सशक्त संदेश भी है. इस संदर्भ में सारी दुनिया ने यह महसूस किया कि भारत एक जिम्मेदार और स्वाभिमानी राष्ट्र है. जाहिर है सेना की प्रशंसा करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बिल्कुल ठीक कहा कि हमने उन्हीं को मारा है, जिन्होंने हमें मारा है” यह केवल सरकार की प्रतिक्रिया नहीं,बल्कि भारत के बदलते रणनीतिक दृष्टिकोण की गूंज है. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के माध्यम से भारत ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि अब देश न केवल आतंकवाद का मुकाबला करेगा, बल्कि उसे जड़ से उखाडऩे के लिए सीमा पार तक जाकर ठोस कार्रवाई करेगा.

बहरहाल, यह एयर स्ट्राइक भारत में आए निर्णायक अंतर को दर्शाती है. जहां पहले की सरकारें रणनीतिक धैर्य की नीति पर चलती थीं, वहीं अब की नीति ‘स्ट्रैटेजिक रेस्पॉन्स’ की है और वह भी बिना बेगुनाहों को नुकसान पहुंचाए.

ऑपरेशन सिंदूर’ सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं है, यह एक कूटनीतिक संदेश है — भारत अब न सिर्फ वार झेलेगा, बल्कि जवाब देगा और वह भी अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन करते हुए. राजनाथ सिंह ने सही ही कहा कि यह ऑपरेशन “संवेदनशीलता” के साथ किया गया, जिसमें नागरिक आबादी को नुकसान न पहुंचे, इसका विशेष खयाल रखा गया. ध्यान रखें कि पाकिस्तान, जिसने वर्षों तक आतंकी पनाहगाहों के होने से इनकार किया, अब खुद 26 लोगों की मौत स्वीकार कर रहा है. यह स्वीकारोक्ति अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की वैधता को और मजबूत करती है.

 

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