ग्वालियर चंबल डायरी
हरीश दुबे
कभी दस्यु समस्या के लिए देशभर में चर्चित रहे चंबल अंचल में पृथक प्रदेश के गठन की मांग जोर पकड़ती जा रही है। आंदोलनकारियों ने नए चंबल प्रदेश का नक्शा और बाकायदा नाम तक तय कर लिया है, जिसमें न सिर्फ मध्यप्रदेश बल्कि उत्तरप्रदेश और राजस्थान के कई जिलों को शामिल करने की बात कही गई है। वैसे पृथक चंबल प्रदेश के गठन की मांग कोई नई नहीं है।
राष्ट्रीय हनुमान सेना 1999 से चम्बल प्रदेश गठन की मांग करती रही है। मप्र, उप्र और राजस्थान के सीमावर्ती 22 जिलों को मिलाकर चम्बल प्रदेश का प्लान बनाया गया है। आंदोलनकारियों के नक्शे में 3 राज्यों के 22 जिले शामिल हैं जिनमें मध्यप्रदेश से गुना, शिवपुरी, अशोकनगर, दतिया, ग्वालियर, मुरैना, श्योपुर और भिंड, उत्तरप्रदेश से आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा, औरैया, जालौन, झांसी, ललितपुर और राजस्थान से धौलपुर, करौली, सवाई माधौपुर, कोटा, बारा, झालावाड़ शामिल हैं। इस बात में कोई शक नहीं है कि दस्यु समस्या से लेकर मौजूदा दौर तक चंबलांचल के साथ सदैव अनदेखी हुई है।
राजनैतिक दलों ने इस क्षेत्र के विकास के लिए कोई खास कदम नहीं उठाए, किसान, युवा परेशान हैं, बेरोजगारी चरम पर है जिससे चंबल अंचल के लोगों में पहले से ही रोष व्याप्त है और इस रोष के बीच नए प्रदेश के गठन की मांग करने वालों को समर्थन जुटाने में खास मुश्किल नहीं आ रही है। आंदोलनकारियों का यह नारा गूंजने लगा है-अब चंबलांचल की चाहत है चंबल प्रदेश। चंबल प्रदेश के गठन के लिए माहौल बनाने चंबल क्षेत्र में बहने वाली पांच नदियों के जल को एकत्र कर कलश यात्रा निकाली जा रही है। यह कलश यात्रा चंबल क्षेत्र के प्रत्येक मंदिर पर पहुंच रही है।
मुरैना में दो समाज आमने सामने, दोनों को साधने में जुटे नेता
बात चंबल क्षेत्र की ही। यहां के सबसे बड़े जिले मुरैना में दो समाजों के बीच विवाद के बीच हुई गोलीबारी में एक दलित युवक की मौत के बाद व्याप्त तनाव के बादल पुलिस के त्वरित एक्शन से छट तो गए लेकिन आरोपी बनाए गए गुर्जर समाज के युवकों की गिरफ्तारी और उनके मकान तोड़ने के लिए दलित संगठनों ने पुलिस पर दवाब बरकरार रखा है। फिलहाल प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का हवाला देते हुए आरोपियों के मकान तोड़ने से हाथ खड़े कर दिए। आरोपियों के राजस्थान भागने की खबर मिलते ही मुरैना पुलिस ने धौलपुर में डेरा जमा लिया लेकिन आरोपियों का कोई सुराग नहीं लगा।
आरोपियों को राजनीतिक प्रश्रय मिलने की भी तोहमत लगी, इसके बाद सत्तारूढ़ दल के नेता इस पूरे घटनाक्रम से अपना पल्ला झाड़ते दिखे। मुरैना की राजनीति में जाटव और गुर्जर समाज शुरू से बड़े वोटबैंक रहे हैं। मुरैना संसदीय सीट कई दशकों तक अजा वर्ग के लिए रिजर्व रही। अभी भी महापौर का पद इसी वर्ग के लिए रिजर्व है, वहीं गुर्जर समाज के नेता यहां से मंत्री और विधायक बनते रहे हैं। यही वजह है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल इन दोनों समाजों को साथ लेकर चलते रहे हैं लेकिन मौके की नजाकत को भांपते हुए फिलवक्त सत्ता और प्रतिपक्ष के ज्यादातर नेता पीड़ित पक्ष यानि जाटव समाज के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। आंदोलन में कांग्रेस भी कूद पड़ी है। जीतू पटवारी ने सरकार और प्रशासन के खिलाफ लंबा चौड़ा ट्वीट कर मुरैना आने का ऐलान कर दिया है।
भिंड में बसपा को मिल गया नया चेहरा
भिंड में बसपा को नया चेहरा मिला है। अनुमान लगाया जा रहा है कि बसपा 28 के चुनाव में इस चेहरे को आजमा सकती है। 18 के चुनाव में भिंड सदर सीट से बसपा ही जीती थी लेकिन 23 में यह सीट भाजपा के खाते में चली गई। माना जा रहा है बसपा 28 में नरेंद्र चौधरी को इस सीट से मैदान में उतार कर अपनी संभावनाएं पुख्ता कर सकती है। भिंड अभिभाषक संघ के अध्यक्ष रह चुके नरेंद्र चौधरी ने कांग्रेस से जुड़कर अपनी सियासत शुरू की थी लेकिन उन्होंने जो सियासी ख्वाब संजोए थे, वे इस दल में पूरे नहीं हुए। भिंड की कांग्रेस राजनीति पर डॉ. गोविंद सिंह, हेमंत कटारे और राकेश चौधरी जैसे दिग्गजों का वर्चस्व है जो विधानसभा में नेता और उपनेता प्रतिपक्ष जैसी जिम्मेदारियां संभालते रहे हैं, इनके बीच अपनी पृथक पहचान बनाना नरेंद्र चौधरी के लिए आसान नहीं था, यही वजह है कि अपने सपनों को पूरा करने उन्होंने हाथी की सवारी करना जरूरी समझा।
नरोत्तम का शक्ति प्रदर्शन
भाजपा के नए प्रदेशाध्यक्ष की चयन प्रक्रिया निर्णायक मोड़ पर पहुंचने के साथ ही इस कुर्सी को पाने की दौड़ में शामिल सभी नेता कुछ ज्यादा ही एक्टिव हो गए हैं, दिल्ली और भोपाल की दौड़ लगाई जा रही हैं लेकिन इस ओहदे के प्रबल दावेदार माने जा रहे डॉ. नरोत्तम मिश्रा समर्थकों और स्थानीय जनता के बीच अपना जन्मदिन मनाने के लिए अपने निर्वाचन क्षेत्र दतिया में ही डटे रहे। समर्थकों ने पूरा दतिया शहर बैनरों, पोस्टरों से पाट दिया। राजनीति के जानकार इसे उनका शक्ति प्रदर्शन बताते हुए यह अनुमान भी लगा रहे हैं कि दतिया के पूर्व विधायक को भले ही सूबाई सदारत न मिले, लेकिन कोई बड़ी जिम्मेदारी तो मिलेगी ही।
