भूकंप का आकलन करने वाली अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी संयुक्त राज्य भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण केंद्र (यूएसजीएससी) और अंतर्राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (आईएससी) ने हाल ही के म्यांमार के भूकंप का आंकलन करने के बाद हिमालय क्षेत्र के देशों को गंभीर चेतावनी दी है. जाहिर है इन देशों में भारत भी शुमार है.यूएसजीएससी दुनिया भर में भूकंपों की निगरानी करता है और उन पर रिपोर्ट देता है, वहीं, आईएससी हर महीने दुनिया भर के 2,000 से अधिक स्टेशनों से डेटा प्राप्त करता है. इन अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की चेतावनी है कि यदि पर्यावरण संतुलन की उपेक्षा की और विकास के नाम पर प्रकृति का विनाश चलता रहा तो आने वाले भविष्य में हिमालय क्षेत्र के देशों के लिए भूकंप का और गंभीर खतरा सामने आने वाला है.विशेषज्ञों का कहना है कि इन देशों के साथ ही भारत में भी भूकंप का गंभीर खतरा मंडरा रहा है.सवाल यह नहीं है कि क्या ऐसी आपदा भारत में भी आएगी,बल्कि यह है कि कब आएगी. अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त
पर्यावरणविद् राजेंद्र सिंह ने बार-बार चेताया है कि, भारत हर शताब्दी में तिब्बत के दक्षिणी किनारे से 2 मीटर नीचे खिसक जाता है. यह ध्यान रखना होगा कि भारत का आधे से ज़्यादा हिस्सा यानी लगभग 59 $फीसदी हिस्सा भूकंप के प्रति संवेदनशील है. हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और पूरा पूर्वोत्तर राज्य भूकंप के डेंजर जोन में हैं और यह सि$र्फ दूरदराज के शहरों तक ही सीमित नहीं है. दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे शहर भी भूकंप के संदर्भ में रेड जोन में आते हैं.भारत में, इमारतें अक्सर भूकंप से ज़्यादा जानलेवा हो सकती हैं. क्योंकि हमारे यहां भूकंप-रोधी निर्माण नियम को अक्सर अनदेखा किया जाता है. बिल्डिंग्स के अलावा अस्पताल, स्कूल, बिजली संयंत्र, जैसी जगहों को भी भूकंप से बचने के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया है. जब धरती हिलती है, तो सबसे पहले बड़ी इमारतें ही गिरती हैं.2001 में भुज में आए भूकंप से गुजरात को लगभग 10 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था.फिर भी इससे सबक नहीं लिया गया है.वहीं, भारत के विपरीत, जापान और चिली जैसे देश जो अक्सर भूकंप के खतरों का सामना करते हैं, उन्होंने सख्त बिल्डिंग कोड लागू किए हैं.वहां बड़े भूकंप आते हैं, लेकिन वे इससे निपट लेते हैं. वहीं, भारत ने अबतक ऐसी कोई तैयारी नहीं की है. भारतीय मानक ब्यूरो के पास भूकंप-रोधी कोड हैं,लेकिन सरकारी भ्रष्टाचार के कारण भू माफिया और रियल स्टेट के बड़े-बड़े डॉन मनमानी करते हैं. दरअसल, भूकंप रोधी कोड का उल्लंघन करने वाले बिल्डरों के खिलाफ सख्त कानूनी एक्शन लिया जाना चाहिए. इसके साथ ही लोगों को भूकंप से बचाव के लिए तैयार करना चाहिए.वैज्ञानिकों के मुताबिक जब हिमालय में भूकंप आएगा, तो वो समुद्र में नहीं, बल्कि ज़मीन पर आएगा, जो और भी घातक है.विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि भविष्य में आने वाला एक बड़ा हिमालयी भूकंप 8.2 और 8.9 के बीच की तीव्रता का यानी अभूतपूर्व होगा, क्योंकि हिमालय दुनिया में एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां ज़मीन पर इतना बड़ा भूकंप आ सकता है, जिससे लगभग 30 करोड़ लोग लंबे समय तक झटकों के संपर्क में रहेंगे.तटीय सुनामी के विपरीत, इस तरह का ज़मीनी भूकंप भारत की आबादी और आर्थिक केंद्रों पर हमला करेगा. इससे होने वाली क्षति भयावह हो सकती है. इसका उदाहरण म्यांमार में हुई त्रासदी है जो भारत के लिए एक बड़ी चेतावनी है. भारत के पास तैयारी करने के लिए विज्ञान, विशेषज्ञता और इंजीनियरिंग का ज्ञान है, लेकिन जो कमी है, वह है कार्रवाई करने की इच्छाशक्ति की. कुल मिलाकर हमें समय रहते संभालना होगा .