ग्वालियर चंबल डायरी
हरीश दुबे
सांसद से अनबन, महाराज ने ग्वालियर से बना ली दूरी
पिछली साल तक महाराज जब संसद के ऊपरी सदन में नुमाइंदगी करते थे, उस वक्त निचले सदन यानि लोकसभा में ग्वालियर और गुना के सांसदों विवेक शेजवलकर और केपी यादव की शिकायत रहती थी कि महाराज उनके निर्वाचन क्षेत्र में दखलंदाजी कर रहे हैं। इन लोकसभा सदस्यों द्वारा अपने क्षेत्र में लाई गई विकास योजनाओं पर महाराज द्वारा अपना ठप्पा लगाने की तोहमत भी लगी, हालांकि असलियत आधी हकीकत और आधा फसाना थी। सिंधिया राज्यसभा में रहते हुए भी ग्वालियर, शिवपुरी और गुना के लिए दिल्ली से विकास योजनाऐं ला रहे थे, इनमें से तमाम ऐसी योजनाएं थीं जिनके लिए शेजवलकर और केपी ने भी कोशिशें कर थीं।
बस यहीं से विरोधाभास हुआ और तत्कालीन लोकसभा सदस्यों द्वारा चिट्ठी पत्री लिखकर दिल्ली तक फरियाद की गई। नतीजा जो भी रहा लेकिन पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में शेजवलकर और केपी दोनों के टिकट कट गए। लेकिन महाराज की परेशानी खत्म नहीं हो रही। अब उनके गृहनगर ग्वालियर की संसदीय सीट से चुने गए उन्हीं की पार्टी के सांसद भारत सिंह कुशवाह को इस बात पर नाराजगी है कि महाराज उनके संसदीय क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रहे हैं, हालांकि इस मसले पर सांसद महोदय ने खुलकर अपना दर्द साझा नहीं किया है लेकिन महाराज तक उनकी बात पहुंच गई है। नतीजा, यह कि महाराज ने ग्वालियर चंबल के चार रोजा दौरे में ग्वालियर से दूरी बनाए रखी। यहां तक खबर है कि ग्वालियर के विकास संबंधी प्रोजेक्ट में भी वे कम ही रुचि ले रहे हैं। केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा बजट पर रखी गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल होने से पूर्व महाराज अपने धुर विरोधी पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह के घर जाकर उनकी मां के निधन पर मातमपुर्सी पर जाना नहीं भूले।
शहर की कानून व्यवस्था चौपट, जनता का भरोसा टूटा
ग्वालियर में कानून व्यवस्था चौपट है। शातिर अपराधी पुलिस को ठेंगा दिखाकर वारदात पर वारदात करने में जुटे हैं लेकिन पुलिस की सख्ती सिर्फ कांबिंग गश्त, फरार वारंटियों को पकड़ने और सट्टे के अड्डों पर छापेमारी तक ही सीमित होकर रह गई है। आज बुधवार को तो सारी हदें टूट गईं, ऐसा लगा मानो ग्वालियर बिहार बन गया है। उपनगर मुरार के पॉश इलाके में स्थित सीपी कॉलोनी में मां की आंखों में मिर्ची झोंककर मासूम बच्चे के अपहरण की घटना ने एक बार फिर से शहर की कानून व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा दिया है। चूंकि बच्चे के पिता बड़े शक्कर व्यापारी हैं, लिहाजा बदमाशों के होमवर्क और मंसूबों का अनुमान लगाया जा सकता है।
अपहर्ता इस सनसनीखेज वारदात के बारह घंटे बीतने के बाद भी बेसुराग हैं, हालांकि पुलिस ने आज दिनभर वे सारी पोस्ट फारमेल्टीज पूरी की, जो इस तरह की बड़ी वारदातों के बाद की जाती हैं, शहर के प्रवेश द्वारों की नाकेबंदी की गई, चौराहों पर पुलिस की मौजूदगी बढ़ा दी गई और अपहर्ताओं का सुराग देने वालों पर इनाम घोषित किया गया। इस पूरी कवायद का नतीजा सिफर है। भय, चिंता और आक्रोश में डूबे शहरवासियों को पुलिस भरोसा तो दे रही है लेकिन शहर में पिछले कुछेक हफ्ते से जिस तरह एक के बाद एक बड़ी वारदातें हो रही हैं और अपराधी पकड़े नहीं जा रहे हैं, उसे देखते हुए आम लोगों का पुलिस पर भरोसा टूटता जा रहा है।
मिशन 28 और 29 के लिए टिप्स दे गए राष्ट्रीय सचिव यादव
हालांकि विधानसभा चुनाव में पूरे साढ़े तीन साल और लोकसभा चुनाव में चार साल का वक्त बाकी है लेकिन लगता है कि एक के बाद एक दो बड़ी पराजयों से त्रस्त कांग्रेस ने मिशन 28 और मिशन 29 की तैयारी अभी से शुरू कर दी है। पार्टी के राष्ट्रीय सचिव चंदन यादव के हालिया दौरे से तो यही अनुमान लगता है। कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें ग्वालियर चंबल अंचल में कांग्रेस की खोई हुई साख को पुन: हासिल कराने की जिम्मेदारी दी है। वे न सिर्फ ग्वालियर आए बल्कि भिंड और मुरैना जाकर भी कांग्रेसजनों से मिले। प्रत्येक कांग्रेस दफ्तर पर पार्टीजनों की बैठक ली और वरिष्ठ नेताओं से बंद कमरे में वन टू वन चर्चा कर पार्टी संगठन को मजबूत बनाने के संबंध में सुझाव लिए और अपने टिप्स दिए। यह सच है कि सिंधिया के प्रभाव क्षेत्र वाले ग्वालियर चंबल में कांग्रेस पार्टी त्रासद स्थिति से गुजर रही है। कई जनाधार वाले नेता सिंधिया के साथ ही भाजपा में पलायन कर गए थे, जो बचे हैं उन्हें अपने अभियानों में संसाधनों की कमी अखर रही है।
मप्र में ही बीच के सवा बरस छोड़कर पिछले इक्कीस बरस से पार्टी विपक्ष में बैठी है। ग्वालियर कांग्रेस में तमाम ऐसे नेता हैं जो भले ही सिंधिया गच्छामि नहीं हुए लेकिन वे राजनीति में महल शिविर की ही उपज हैं और ऐसे नेता कांग्रेस में रहते हुए सिंधिया से जुड़े मुद्दों पर मुंह खोलने के बजाए अपने राजनीतिक भविष्य की बेहतरी के लिए कन्नी काटना ज्यादा मुफीद मानते हैं। राष्ट्रीय सचिव चंदन यादव ग्वालियर चंबल अंचल के दौरे पर आए तो बंद कमरों में इन्हीं सब मुद्दों पर तफसील से मशविरा हुआ। ग्वालियर चंबल के प्रभारी के नाते राष्ट्रीय सचिव साफ तौर पर चेता गए हैं कि ग्वालियर चंबल में यदि पार्टी को मजबूत बनाना है तो सिंधिया के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाना पड़ेगा, जो ऐसा करने से मजबूर हैं, वे पार्टी में मिली बड़ी जिम्मेदारियों को छोड़ दें ताकि पर्दे के पीछे रहकर पार्टी के लिए पसीना बहाने वाले कैडर को मौका मिल सके। राष्ट्रीय सचिव तशरीफ लाए तो पार्टी के जिलाध्यक्ष पदों पर नजरें गड़ाए बैठे नेता शक्ति प्रदर्शन करने से नहीं चूके।