बिना मान्यता एडमिशन का मामला, लॉ कॉलेज व यूनिवर्सिटी की जांच के निर्देश
जबलपुर। मप्र हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत व जस्टिस विवेक जैन की युगलपीठ ने विधि पाठ्यक्रम में बिना मान्यता एडमिशन मामले को काफी सख्ती से लिया। युगल पीठ ने मामले में पुलिस कमिश्नर भोपाल को इस अनियमितता में संलिप्त लॉ कॉलेज व यूनिवर्सिटी की जांच के निर्देश दिये है। इसके साथ ही अतिरिक्त मुख्य सचिव उच्च शिक्षा व पुलिस आयुक्त भोपाल को मामले की अगली सुनवाई तिथि 25 मार्च को प्रगति प्रतिवेदन के साथ उपस्थित रहने के निर्देश दिये है। युगलपीठ ने मामले में वकीलों की सर्वोच्च संस्था बार काउंसिल आफ इंडिया के पदाधिकारियों को जांच में पूर्ण सहयोग करने के निर्देश दिए हैं।
दरअसल यह मामला याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी विधि छात्र व्योम गर्ग व शिखा पटेल सहित अन्य की ओर से दायर किया गया है। जिसमें कहा गया कि उन्होंने सेंट्रल इंडिया ला इंस्टीट्यूट, जबलपुर में विधि स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया था। कोर्स पूरा करने के बाद उन्होंने एमपी स्टेट बार काउंसिल में पंजीयन के लिए आवेदन दिया। स्टेट बार ने यह कहते हुए उनका रजिस्ट्रेशन करने से मना कर दिया कि सेंट्रल इंडिया लॉ इंस्टीट्यूट की मान्यता समाप्त हो गई है। क्योंकि संस्थान ने बीसीआई में रिन्युअल फीस जमा नहीं की है। याचिकाकर्ताओं द्वारा हाईकोर्ट बताया गया कि बीसीआई बैकडेट पर मान्यता देती है। कुछ मामलों में तो 20 वर्ष बाद बैक डेट से मान्यता दी गई। इस अनियमितता के चलते उन छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ हो रहा है जो बीसीआई, स्टेट बार, मप्र शासन एवं विश्वविद्यालय के पोर्टल पर मान्यता के गलत विवरण के आधार पर प्रवेश लेते हैं। जिसके बाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि बीसीआई से मान्यता न होने पर शैक्षणिक संस्थान और विश्वविद्यालय अपने पोर्टल पर इसका स्पष्ट उल्लेख करें। ऐसे संस्थान यह भी स्पष्ट करें कि वे केवल शैक्षणिक प्रयोजन के लिए ही विधि पाठ्यक्रम संचालित करते हैं। बीसीआई अपने यहां ऐसी व्यवस्था बनाएं जिससे कोई भी संस्थान छात्रों के करियर के साथ खिलवाड़ न कर सकें। सभी विश्वविद्यालय और विधि कालेज अपने पोर्टल को प्रत्येक कैलेंडर वर्ष के मार्च माह में अपडेट रखें, ताकि कोई भी छात्र उक्त पोर्टल से गुमराह न हो सके। किसी संस्थान की मान्यता समाप्ति का प्रभाव छात्रों पर नहीं होना चाहिए। यदि कोई संस्थान चीटिंग करता है तो बीसीआई उसके विरुद्ध आपराधिक कार्रवाई के लिए शिकायत करने स्वतंत्र है।