कोर्ट में सरेंडर करने वाला निलंबित पटवारी गया जेल

फर्जी वसीयत के आधार पर जमीन खुर्दबुर्द करने का मामला

 

जबलपुर। रैंगवा स्थित  बेशकीमती जमीन खुर्दबुर्द करने के आरोप में फरार चल रहे निलंबित पटवारी जोगेन्द्र पिपरे को शुक्रवार को विजय नगर पुलिस ने न्यायालय के समक्ष पेश किया जहां से उसे कोर्ट ने जेल भेज दिया है। लंबे समय से फरार चल रहे पटवारी ने गुरूवार को कोर्ट में सरेंडर किया था जिसे पुलिस ने रिमांड में लिया था शुक्रवार को रिमांड खत्म होने पर पुन: उसे कोर्ट में पेश किया गया था।

विदित हो कि अधारताल तहसीलदार रह चुके हरिसिंह धुर्वे ने आठ सितंबर 2023 को रैंगवा स्थित 1.01 हेक्टेयर जमीन के राजस्व रिकार्ड में वास्तविक भूस्वामी माडल टाउन निवासी शिवचरण पांडेय पिता स्व. सरमन पांडेय का नाम विलोपित कर श्याम नारायण चौबे का नाम दर्ज किया था। यह कार्रवाई 14 फरवरी 1970 में तैयार अपंजीकृत वसीयत के आधार पर की गई थी। कूटरचित दस्तावेजों से खुर्दबुर्द की गई जमीन के मामले में शिवचरण ने पुलिस, प्रशासन से शिकायत की थी जांच में पता चला कि जिस जमीन पर शिवचरण 50 वर्षों से खेती करता चला आ रहा है तथा उस पर काबिज है उसे कूटरचित दस्तावेजों से खुर्दबुर्द कर दिया गया। उक्त जमीन शिवचरण (नाबालिग अवस्था में) को मूल भूस्वामी महावीर पांडेय (मृत्यु 1971) से उनके जीवन काल में प्राप्त हुई थी। प्रकरण में आरोपित रविशंकर चौबे की बेटी दीपा दुबे अधारताल तहसील कार्यालय में संविदा कंप्यूटर आपरेटर है। उसने महावीर पांडेय की फर्जी वसीयत के आधार पर अपने मृत पिता श्याम नारायण चौबे के नाम पर उक्त जमीन राजस्व रिकार्ड में दर्ज कर दी। इस कार्य में तहसीलदार, पटवारी और अपने भाईयों के साथ मिलकर उसने षडयंत्र किया था। पिता की मृत्यु के तत्काल बाद उसने पूर्व योजना के अनुसार तत्काल अपना और भाईयों का नाम राजस्व रिकार्ड में दर्ज करवा लिया।  प्रकरण की जांंच में यह भी सामने आया कि मूलत: नैनी उत्तर प्रदेश निवासी स्व. महावारी प्रसाद संतानहीन थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में रैंगवा स्थित पुराना खसरा नंबर 51 की उक्त भूमि तीन गवाहों के समक्ष अपने भतीजे श्याम नारायण के पक्ष में वसीयत निष्पादित की थी। वसीयत के आधार पर श्याम नारायण ने भी राजस्व रिकार्ड में अपना दर्ज कराने के लिए आवेदन किया था। जांच में पाया गया कि पटवारी जोगेन्द्र पिपरे द्वारा मौके की जांच किए बगैर नामांतरण कार्रवाई प्रस्तावित करने की रिपोर्ट दी थी। वर्ष 1969 में हुए नामांतरण को पटवारी द्वारा बिना किसी दस्तावेजी साक्ष्य के विधि विरुद्ध प्रतिवेदित कर दिया गया है। राजस्व अभिलेख में महावीर प्रसाद का नाम दर्ज नहीं होने के बावजूद उसके द्वारा 50 वर्ष पूर्व निष्पादित कथित वसीयत के आधार पर नामांतरण की कारवाई प्रस्तावित करना प्रकरण में पटवारी की संलिप्तता सामने आई।   प्रकरण में तहसीलदार द्वारा महत्वपूर्ण विधिक तथ्य की जानबूझकर अनदेखी की गई।  मामले में शिकायत पर एसडीएम शैवाली सिंह ने जांच की थी जिसके बाद तहसीलदार, पटवारी समेत सभी आरोपितों पर मामला दर्ज करवाया गया था क्राइम ब्रांच ने तहसीलदार को गिरफ्तार किया था जबकि पटवारी फरार चल रहा था।

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