बजट में शिक्षा पर और खर्च होना चाहिए

यह सही है कि इस बार के बजट में शिक्षा पर पहले की अपेक्षा ज्यादा खर्च करने का प्रावधान किया गया है, लेकिन अभी भी यह अपर्याप्त लगता है.दरअसल, केंद्रीय बजट 2025 में कुल 1,28,650.05 करोड़ रुपये शिक्षा के क्षेत्र में कामकाज के लिए आवंटित किए गए हैं. यह पिछले साल की तुलना में 6.65 प्रतिशत की वृद्धि है. 2024 के बजट में जो राशि एजुकेशन सेक्टर को आवंटित की गई थी वह 2014 के बाद से मोदी सरकार के कार्यकाल की सबसे अधिक राशि थी, लेकिन इस साल इस रिकॉर्ड को ब्रेक कर दिया गया है. इसके बावजूद शिक्षा पर कुल बजट की राशि का केवल चार $फीसदी प्रावधान किया गया है. जबकि देश के अनेक एकेडमिक विद्वान और शिक्षा शास्त्री कह चुके हैं कि केंद्रीय बजट का काम से कम 10 $फीसदी हिस्सा शिक्षा पर खर्च होना चाहिए. उस दृष्टि से कहा जा सकता है कि शिक्षा पर और खर्च होना चहिए. बहरहाल,हाल ही में एक गैर सरकारी संगठन ‘प्रथम’ ने भारत में शिक्षा की स्थिति के बारे में रिपोर्ट जारी की है.इस रिपोर्ट के अनुसार शिक्षा के अधिकार के तहत अनिवार्य रूप से 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के तय नामांकन लक्ष्य को लगभग हासिल कर लिया गया है. यानी आरटीई कानून अपने मकसद में सफल हो रहा है.

जहां तक सीखने से जुड़े नतीजों की बात है, उस लिहाज से न केवल कोविड महामारी के दौरान हुए नुकसान की भरपाई हुई है बल्कि कुछ मामलों में नतीजे पहले की तुलना में बेहतर हैं. उदाहरण के तौर पर, कक्षा 5 के बच्चों का अनुपात जो बेहद बुनियादी भाग (तीन अंकों को एक अंक से भाग देना) करना जानते हैं उनकी तादाद 2022 में घटकर 25.6 प्रतिशत हो गई थी.2024 में ऐसे बच्चों की तादाद बढक़र 30.7 प्रतिशत हो गई है.

इसी तरह के रुझान अन्य पहलुओं में भी देखने को मिले हैं, खास बात यह है कि ये सुधार सरकारी स्कूलों की बदौलत देखा गया है.दरअसल, केंद्र और राज्य सरकारों ने शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए जो अभियान चलाया है उसके भी अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं.प्री-प्राइमरी स्तर पर भी नामांकन में अहम बदलाव देखा गया है.उदाहरण के तौर पर, तीन साल के बच्चों में, नामांकन का स्तर 2018 में 68.1 प्रतिशत था जो 2024 में बढक़र 77.4 प्रतिशत हो गया है.आंगनबाड़ी केंद्र इस उम्र वर्ग के बच्चों के लिए सबसे ज्यादा काम करते हैं. यानी आंगनवाड़ी का मॉडल भी सफल रहा है.

रिपोर्ट में 14 से 16 साल के बच्चों की डिजिटल साक्षरता का भी सर्वेक्षण किया गया है. लगभग 90 प्रतिशत बच्चों ने घर पर स्मार्टफोन होने और 80 प्रतिशत से अधिक ने इसका इस्तेमाल करने की जानकारी दी है.

स्मार्टफोन की बड़े स्तर पर उपलब्धता से शिक्षा में तकनीक के इस्तेमाल के अवसर भी मिलते हैं. व्यापक तौर पर इस सर्वेक्षण में कई सकारात्मक बातें हैं लेकिन इसके बावजूद नीति निर्माताओं को अधिक उत्साहित नहीं होना चाहिए. दरअसल, मौजूदा आर्थिक माहौल में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की जरूरत पहले की तुलना में कहीं अधिक महसूस की जा रही है. खासतौर पर युवाओं को बाबू बनाने की शिक्षा देने वाला जो मॉडल अंग्रेजों ने तैयार किया था, उसे अब बदलने की जरूरत है. केंद्र सरकार ने मेडिकल कॉलेजों और आईआईटी संस्थानों में वृद्धि करने का फैसला किया है. यह फैसला स्वागत योग्य है, लेकिन हमारी उच्च शिक्षा में कौशल विकास के पाठ्यक्रम को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए. जैसे चीन, दक्षिण कोरिया, जापान और जर्मनी में विश्वविद्यालयीन शिक्षा में अनिवार्य रूप से तकनीकी और कौशल विकास की शिक्षा दी जाती है. यानी साधारण बीए और बीकॉम करने वालों को भी इन देशों में तकनीकी विकास का प्रशिक्षण दिया जाता है. ऐसा हमारे देश में भी होना चाहिए. जाहिर है केंद्र और राज्य सरकारों के बजट में शिक्षा का हिस्सा 10 $फीसदी होना जरूरी है.

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