
खरगोन 27 जनवरी (वार्ता) शालिनी देवी होलकर ने पद्मश्री अवार्ड मिलने पर कहा है कि यह अवार्ड महेश्वर के बुनकरों को समर्पित है।
पद्मश्री अवार्ड मिलने को लेकर समाजसेविका और गुड़ी मुड़ी संस्था की डायरेक्टर शालिनी देवी होलकर ने कहा कि यह अवार्ड मुझे नहीं बल्कि महेश्वर के बुनकरों को मिल रहा है। यह अवार्ड में महेश्वर के बुनकरों को समर्पित करती हूं।
महेश्वर कस्बे की गुड़ी मुड़ी संस्था की डायरेक्टर शालिनी देवी होलकर को पद्मश्री अवार्ड मिलने की घोषणा पर नगर के बुनकरों और उनके द्वारा चलाई जा रही संस्थाओं से जुड़े लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई।
होलकर ने आगे कहा कि वे चाहती हैं महेश्वरी हैंडलूम बुनकर का कार्य हमेशा आजीवन तक चलता रहे। यह अवार्ड वास्तव में बुनकरों को मिलना चाहिए जो इतना काम करते हैं।
शालिनी देवी होलकर ने बताया कि बुनकरों के हाथ में देश की संस्कृति जीवित है ,उनकी कला और मेहनत यह रंग लाई है और पूरी दुनिया इसे प्रोत्साहित कर पा रही है। देवी श्री अहिल्याबाई होल्कर मां साहब के आशीर्वाद से महेश्वर का नाम भी देश और दुनिया में फैलेगा।
इस संबंध में शालिनी देवी होलकर के सुपुत्र युवराज यशवंत राव होलकर (द्वितीय) ने बताया कि यह बड़े गर्व की बात है। उन्होंने पूरा जीवन मां साहब के आशीर्वाद से महेश्वरी हैंडलूम काम के लिए समर्पित कर अपना कर्तव्य पूरा किया है।
गुड़ी मुड़ी संस्था से साल 1980 से जुड़े नगर के गाड़ीखाना निवासी प्रहलाद शर्मा ने कहा कि संस्था की डायरेक्टर शालिनी देवी होलकर ने महेश्वरी साड़ी उद्योग से जुड़कर अलग हैंड स्पिनिंग खादी का उद्योग स्थापित किया। यह हमारे और बुनकरों के लिए गर्व की बात है कि शालिनी देवी ने यह अवार्ड बुनकरों को समर्पित किया है।
खटखटा फाउंडेशन के अंतर्गत गुड़ी मुड़ी संस्था और नगर के किला परिसर स्थित अहिल्या विहार कॉलोनी परिसर में हैंडलूम स्कूल की स्थापना साल 2006 में शालिनी देवी ने की थी। वहीं नगर की सबसे पुरानी रेवा सोसाइटी की स्थापना साल 1979 में हुई थी। तभी से शालिनी देवी होल्कर महेश्वरी साड़ी उद्योग से जुड़कर बुनकरों के लिए कार्य कर रही हैं।
82 वर्षीय सैली होलकर ने महेश्वरी हैंडलूम को पुनर्जीवित करने में अपनी जिंदगी समर्पित कर दी। अमेरिका में जन्मीं सैली, मध्यप्रदेश के महेश्वर में आकर यहां की पारंपरिक बुनकरी को संवारने में जुट गईं। वह रानी अहिल्याबाई होलकर की विरासत से इतनी प्रेरित हुईं कि उन्होंने महेश्वरी कपड़ों को न केवल भारत बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
कभी ओझल होने के कगार पर पहुंच चुकी महेश्वरी साड़ी और हैंडलूम कला को सैली ने फिर से जीवित किया। उन्होंने पारंपरिक डिजाइन में आधुनिकता का संगम कर इसे एक वैश्विक पहचान दी। उनकी मेहनत से यह उद्योग एक बार फिर फलने-फूलने लगा और हजारों बुनकरों को रोजगार मिला।
सैली होलकर महिला सशक्तिकरण की बड़ी समर्थक रही हैं। उन्होंने महेश्वर में हैंडलूम स्कूल की स्थापना की, जहां पारंपरिक बुनाई तकनीकों की ट्रेनिंग दी जाती है। उनके प्रयासों से 250 से ज्यादा महिलाओं को काम मिला, 110 से अधिक करघे लगाए गए और 45 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं को भी रोजगार के अवसर दिए गए।
सैली ने न सिर्फ एक कला को बचाया, बल्कि इसे एक सफल व्यापार का रूप भी दिया। उन्होंने इस कारीगरी को अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंचाया और इसे आर्थिक रूप से टिकाऊ बनाया। उनके इस योगदान की वजह से महेश्वरी हैंडलूम आज सिर्फ मध्यप्रदेश तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इसे पूरी दुनिया में पसंद किया जाता है।
उनका विवाह (रिचर्ड शिवाजी राव होलकर) से हुआ। उनकी दो संतान बेटी सबरीना और बेटा यशवंत है।
