हाईकोर्ट ने खारिज किया आवेदन
जबलपुर। धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम व बलात्कार के अपराध में जमानत के लिए आरोपी ने हाईकोर्ट में जमानत आवेदन दायर किया था। पूर्व में पीड़ित एक अन्य युवती की तरफ से आपत्तिकर्ता बनने के लिए हाईकोर्ट में आवेदन दायर किया था। हाईकोर्ट जस्टिस एस एस भट्टी की एकलपीठ ने आपत्तिकर्ता के आवेदन को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा है कि पूर्व में पीड़ित व्यक्तियों को आपराधिक प्रकरण में आपत्तिकर्ता की अनुमति देने से मुकदमेबाजी के द्वार खुल जायेगे।
सिवनी के महिला थाने में याचिकाकर्ता इस्माइल शाह के खिलाफ धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम तथा बलात्कार का प्रकरण दर्ज किया गया था। याचिकाकर्ता जेल में निरुद्ध है और जिला न्यायालय से जमानत का आवेदन खारिज होने के उसने हाईकोर्ट की शरण ली थी। हाईकोर्ट में जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान एक युवती ने आपत्तिकर्ता बनने सीआरपीसी की धारा 301 (2)/बीएनएसएस की धारा 339 के तहत आवेदन पेश किया था। आवेदन में कहा था कि याचिकाकर्ता ने उसके साथ पूर्व में शादी का आश्वासन देते हुए दो बार बलात्कार किया था। उसने आरोपी याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई है। दोनों अपराधों में न्यायालय के समक्ष सुनवाई लंबित है। इसके अलावा आरोपी याचिकाकर्ता के खिलाफ 6 से अधिक अपराधिक प्रकरण दर्ज है और उसके दो अन्य समुदाय की युवती के साथ भी संबंध है। आपत्तिकर्ता बनकर वह दूसरी पीडिता का पक्ष प्रस्तुत करना चाहती है।
एकलपीठ ने आवेदन को निरस्त करते हुए अपने आदेश में कहा है कि बीएनएसएस की धारा 2 (वाई) में दी गई पीड़ित की परिभाषा में किसी व्यक्ति द्वारा अतीत में किसी अभियुक्त के कहने पर उठाई गई हानि या चोट शामिल नहीं है। जिसके खिलाफ बाद में किसी अन्य पीड़ित द्वारा मुकदमा चलाया जा रहा है। पूर्व में पीडित व्यक्ति को दूसरे अपराधिक प्रकरण में आपत्तिकर्ता बनने की अनुमत्ति देने से मुकदमेबाजी के द्वार खुल जायेंगे। अतीत के सभी मामलों के पीड़ित व्यक्ति दूसरे अपराध में आरोपी के खिलाफ आपत्ति उठाने के लिए हकदार हो जायेगे। पूर्व में पीड़ित व्यक्ति का उक्त अपराध से कोई संबंध नहीं है।