रोजड़ों से बचाव के लिए तार फेंसिंग के लिए प्रदेश में अनुदान नहीं 30 से अधिक के झुंड में खेतों में विचरण कर पहुंचा रहे नुकसान

खेतों में ‘बाजा’ और ‘टीन’ बजाकर रोजड़े भगाने अन्नदाता की मशक्कत

नीमच। रोजड़ों से परेशान किसानों की आवाज वर्षों से किसी को सुनाई नहीं दे रही है। मध्यप्रदेश में रोजड़ों से छुटकारे के नाम पर केवल एक नील गाय को मारने की अनुमति किसान को दी गई है। इसके लिए भी लाइसेंसी बंदूक का होना आवश्यक है। हर किसान के पास बंदूक नहीं है। एक हेक्टेयर खेत में तार फेंसिंग करने के लिए करीब 90 हजार रुपए का खर्च आता है। ऐसे में 20-25 रुपए का बाजा और टीन बजाकर देशी तरीके से किसान दिन-रात रोजड़ों को भगाने का जतन करने को मजबूर हैं।

इन दिनों जिले में सबसे अधिक लहसुन और चना की फसल में रोजड़ों के आतंक से किसान परेशान हैं। पिछले दो सालों में जिले में किसानों को लहसुन के अच्छे दाम मिले हैं। इसके चलते 50 से 60 हजार रुपए क्विंटल के दाम पर लहसुन बीच खरीद खेतों में बुवाई की है। जमा देने वाली ठंड में किसान अब दिन रात खेतों की चौकीदारी करने को मजबूर हैं। रोजड़े खेतों में पहुंचकर लहसुन की फसल को नुकसान पहुंचा रहे हैं। रोजड़ों में लड़ाई होने पर घोड़े जैसे खुर होने की वजह से लहसुन को उखाड़ देते हैं। लहसुन की फसल अधिक ऊंची भी नहीं होती। इसके चलते रोजड़ों का झुंड लहसुन फसल में अधिक आते हैं। इन दिनों चना की फसल भी यौवन पर है। सिंचाई करने पर खारापन और बढ़ जाता है। यह रोजड़ों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यही किसानों के लिए परेशानी का सबसे बड़ा कारण है। खेतों में पानी नहीं डालें तो उत्पादन प्रभावित होने की आशंका रहती है।

अफीम काश्तकार प्रहलाद शर्मा ने बताया कि जिले में 708 गांव हैं। इनमें ऐसे गांवों की संख्या काफी कम होगी जहां रोजड़ों नहीं है या काफी कम हैं। अधिकांश गांवों में 30 से 35 के झुंड में रोजड़ों को खुलेआम खेतों में विचरण करते देखा जा सकता है। रोजड़ों की समस्या और फसलों को नुकसान से बचाने के लिए राजस्थान सरकार किसानों को तार फेंसिंग के लिए लागत का 60 प्रतिशत तक अनुदान दे रही है। रोजड़ों को खेत में आने से रोकने का प्रयास कर रहे हैं। इसमें काफी हद तक सफलता भी मिल रही है। नीमच जिले में जितनी तेजी से रोजड़ों की संख्या बढ़ रही है उस मान से उनका शिकार करने वाले जानवर यहां नहीं हैं। जिले में तेंदुआ ही सबसे बड़ा ऐसे जानवर है तो रोजड़े का शिकार कर सकता है, लेकिन इनकी संख्या भी सीमित है। जानकार बताते हैं कि एक मादा नील गाय (रोजड़ा) साल में दो बार बच्चे को जन्म देती है। एक बार में दो बच्चे होते हैं। इस मान से हर साल पैदा होने वाले बच्चों की संख्या मरने वाले रोजड़ों की संख्या से काफी अधिक रहती है। इसके चलते शासन स्तर पर इनकी संख्या बढऩे से रोकने के उपाय नहीं करने के अतिरिक्त रोजड़ों की संख्या नियंत्रित करना काफी मुश्किल है।

राजस्थान में 60 फीसदी अनुदान

अफीम की फसल की सुरक्षा के लिए 8 फीट ऊंची लोहे की जालियां लगाई हैं। इसके बाद भी फसलों को रोजड़ों से नुकसान पहुंचने का डर बना रहता है। शासन को इस समस्या से स्थाई निराकरण के लिए प्रयास करना चाहिए।

– अशोक मेहता, पीडि़त किसान

राजस्थान सरकार जिस प्रकार से खेतों पर तार फेंसिंग के लिए 60 फीसदी अनुदान दे रही है। उसी अनुसार रोजड़ों से फसलों को बचाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार को भी देना चाहिए। रोजड़ों से फसलों को काफी अधिक नुकसान हो रहा है। कहीं सुनवाई नहीं हो रही।

– रामनिवास लोहार, पीडि़त किसान

खेतों में 30 से 35 रोजड़ों का झुंड एक बार में घुसकर फसलें बर्बाद कर रहा है। बाजा और टीन बजाकर रोजड़ों को भगाने का प्रयास कर रहे हैं। इस समस्या के स्थाई सामाधान निकालने के लिए योजना बनाई जानी चाहिए। जिले से रोजड़े पकडकऱ जिन क्षेत्रों में शिकारी जानवर हों वहां ले जाना चाहिए।

– परसराम पंडिया, पीडि़त किसान

Next Post

आधी रात को माजनमोड़ पर पकड़ाया डीजल से भरा टैंकर

Wed Jan 1 , 2025
Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email शराब के नशे में था चालक, हुई कार्रवाई, आधी रात को डीजल परिवहन करने पर उठ रही संदेह उंगली नवभारत न्यूज सिंगरौली 1 जनवरी। मंगलवार एवं बुधवार की मध्य रात माजनमोड़ पर डीजल से भरे एक टैंकर […]

You May Like

मनोरंजन