सभापति ने अविश्वास प्रस्ताव लाने को मजबूर किया : विपक्ष

नयी दिल्ली, 11 दिसम्बर (वार्ता) इंडिया गठबंधन ने कहा है कि राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ का व्यवहार सदन में विपक्षी सदस्यों को अपमानित करने वाला और सरकार के एजेंडे के हिसाब से काम करते हुए पूरी तरह से पक्षपातपूर्ण और विपक्ष को नकारने वाला रहा है इसलिए गठबंधन के नेताओं ने विवश होकर उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का निर्णय लिया है।

इंडिया गठबंधन के नेताओं ने बुधवार को यहां संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सभापति का आचरण सदन की गरिमा के खिलाफ रहा है और उन्होंने उच्च सदन की गरिमा को ठेस पहुंचाई है। सभापति खुद सदन के लिए बाधक बनते हैँ और निष्पक्ष होकर सदन चलाने की बजाए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गुणगान करते हैं तथा विपक्षी सदस्यों के साथ दुश्मन जैसा व्यवहार करते हैं और नियम से सदन चलाने की बजाय राजनीति करते हैं।

राज्यसभा में विपक्ष के नेता तथा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा “उपराष्ट्रपति भारत में दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद है और 1952 के बाद से उपराष्ट्रपति को हटाने के लिए कोई प्रस्ताव नहीं लाया गया है। इस पद पर बैठा व्यक्ति हमेशा निष्पक्ष और राजनीति से परे रहा है। सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने इस पद की गरिमा का उल्लेख करते हुए कहा था कि वह सभापति हैं और किसी पार्टी के नहीं हैं। सदन हमेशा नियमों के अनुसार चलाया जाना चाहिए और सभापति को सरकार के प्रवक्ता की तरह काम नही करना चाहिए।”

उन्होंने कहा, “सभापति सदन में हेडमास्टर की भूमिका में जैसे रहते हैं। विपक्ष की ओर से, जब भी नियमों के अनुसार महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए जाते हैं और नियम 267 के तहत चर्चा की बात करते हैं तो सभापति योजनाबद्ध तरीके से चर्चा करने की अनुमति नहीं देते हैं जबकि सत्ता पक्ष के सदस्यों को उसी विषय पर अनुमति दी जाती है। विपक्षी नेताओं को बार बार बोलने से रोका जाता है। सभापति की निष्ठा संविधान और संवैधानिक परंपरा के बजाय सत्ता पक्ष के प्रति ज्यादा होती है और वह अपनी पदोन्नति पाने के लिए सरकार के प्रवक्ता के रूप में काम करते हैं। मैं निस्संकोच कह सकता हूं कि वह विपक्ष पर आरोप लगाते हैं लेकिन राज्यसभा के संचालन में राज्यसभा में वह खुद सबसे बड़े बाधक हैं।”

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा “उनके व्यवहार ने देश की गरिमा और लोकतांत्रिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि विपक्षी दलों को उनके खिलाफ अविश्वास के प्रस्ताव के लिए नोटिस देना पड़ा है। वह विपक्ष के सदस्यों को दुश्मन समझते हैं लेकिन हमारी कोई व्यक्तिगत दुश्मनी या राजनीतिक दुश्मनी नहीं हैं। अविश्वास प्रस्ताव लाकर हम देशवासियों को बताना चाहते हैं कि हमने लोकतंत्र, संविधान की रक्षा के लिए और बहुत सोच-विचार करने के बाद यह कदम उठाया है।’

श्री खरगे ने कहा “सभापति विपक्ष के किसी भी नये या पुराने नेता को अपमानित करने में संकोच नहीं करते हैं। उन्हें राजनीति से ऊपर उठकर काम करना चाहिए लेकिन वह विपक्षी दलों के सदस्यों पर टिप्पणी करते हैं। जिस विंदु को उठाने के लिए विपक्षी सदस्य को मना करते हैँ उसी विषय पर सत्त पक्ष के सदस्य को बोलने का मौका देते हैं। कितनी ही बार हाथ उठाओ, एक अंगुली उठाओ या पांचों अंगुलियां उठाओ लेकिन सभापति ध्यान ही नहीं देते हैं। विपक्ष के सदस्यों को बोलने का मौका ही नहीं देते हैं। उनकी इसी मनमानी के खिलाफ यह प्रस्ताव लाया गया है।”

डीएमके के तिरुचि शिवा ने कहा, “संसद में सत्तारूढ़ दल लोकतंत्र पर हमला कर रहा है और इसे सभापति द्वारा संरक्षण दिया जा रहा है। यह बहुत दुखद है कि विपक्ष के सदस्य को बोलने से रोका जाता है लेकिन सत्ता पक्ष को नेता को तुरंत बोलने की पेशकश करने पर भी बोलने दिया जाता है। राजद के मनोज झा ने कहा कि यह कदम लोकतंत्र के मूल सिद्धांत की बहाली के लिए है। सपा के जावेद अली खान ने कहा कि सभापति ने विपक्ष की मौजूदगी को नकार दिया है। संवाददाता सम्मेलन में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की फौजिया खान, भाकपा के पी संदोष कुमार, केरल कांग्रेस के जोस के मणि, तृणमूल कांग्रेस के नदीमुल हक, शिवसेना के संजय राउत भी मौजूद थे।

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