कंकर, बनवारी, भुवन किसका बिगाड़ेंगे खेल

अविनाश दीक्षित

महाकौशल की डायरी

मोदी मैजिक औऱ कांग्रेस में सेंध लगाकर उसके अनेक बड़े नेताओं को अपने पाले में खींचकर भाजपा 18 वीं लोकसभा में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने के प्रति सुनिश्चित सी लग रही है, लेकिन महाकौशल की बालाघाट और बुंदेलखंड की दमोह सीट के सियासी हालात भगवा दल के रणनीतिकारों को चिंतित कर रहे हैं। सतही तौर पर इन दोनों सीटों पर कोई उलझन नजर नहीं आ रही है किंतु जानकार बताते हैं कि लोकसभा में बंपर जीत दर्ज करने के इरादे से सेंधमारी में व्यस्त भाजपा के लिए उसके ही नेता आंतरिक तौर पर नाराज बताए जा रहे हैं। कुछ बड़े नेता अपनी और अपने बेटे – बेटियों को टिकट न मिलने के कारण या तो घर बैठ गए हैं या फिर औपचारिक रूप से पार्टी का कामकाज कर रहे हैं। बात बालाघाट की करें तो यहां दो नए प्रत्याशियों भाजपा की भारती पारधी तथा कांग्रेस के सम्राट सरस्वार के बीच मुकाबला है।

नए चेहरे होने के कारण दोनों को ही कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है। इन्हें पार्टी चिन्ह के साथ ही पार्टी के क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों और नेताओं पर निर्भर रहना पड़ रहा है। भारती जहां संगठन पर भरोसा जता रही हैं वहीं सम्राट की सांगठनिक सल्तनत की जडें तेजी से खोखली होती जा रही हैं। जिले के जनाधार वाले कांग्रेस नेता एक के बाद एक भाजपा का दामन थाम रहे हैं। हालांकि मजबूत मानी जा रही भाजपा के दो बड़े नेता भी नाराज बताए जा रहे हैं । चर्चा है कि टिकट कटने से नाराज निवर्तमान सांसद ढ़ाल सिंह बिसेन ने प्रचार से दूरी बना ली है, वहीं अपने या बेटी मौसम हरिनखेडे के लिए टिकट की टिकट की मांग करने वाले गौरीशंकर बिसेन भी असंतुष्ट बताये जा रहे हैं। बालाघाट के सियासी गलियारों में चल रही चर्चाओं पर विश्वास करें तो गौरी शंकर बिसेन प्रत्यक्ष रूप से पार्टी प्रत्याशी का प्रचार तो कर रहे हैं किंतु अंदर ही अंदर कुछ और ही समीकरण बैठाने में लगे हुए हैं।

दोनों दलों में चिंता

ढालसिंह औऱ गौरीशंकर बिसेन के क्रियाकलापों के अलावा भाजपा- कांग्रेस प्रत्याशियों की पेशानी पर बसपा प्रत्याशी कंकर मुंजारे को लेकर चिंता की रेखाएं देखी जा रही हैं। कंकर मुंजारे दो बार विधायक और सांसद भी रह चुके हैं। उनकी पत्नी अनुभा मुंजारे कांग्रेस से विधायक हैं। कंकर ने राजनीतिक शुचिता का हवाला देते हुए अनुभा मुंजारे को मतदान दिवस तक घर छोड़ देने के लिए कहा था, किंतु उनकी पत्नी ने यह यह कहते हुए कि बेटी की मायके से डोली उठती है, तो ससुराल से ही अर्थी हीं उठती है,उनके आग्रह को खारिज कर दिया था। आजकल मुंजारे घर छोड़कर एक झोपड़ी में पहुंच गए हैं। एक चर्चा यह भी है कि कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ने तथा लोधी मतदाताओं को साधने के लिए पर्दे के पीछे से भाजपा ने ही कंकर मुंजारे को मैदान में उतरवाया है। भाजपा को भय था कि अनुभा मुंजारे के कारण लोधी समुदाय का वोट एकमुश्त कांग्रेस की ओर जा सकता है।

बनवारी – भुवन भी दिखा सकते हैं ताकत

2019 के लोकसभा चुनाव में ढाल सिंह बिसेन को जिताने में गौरीशंकर बिसेन ने पूरी ताकत झोंक दी थी। ढ़ाल सिंह अच्छे अंतर से जीते भी थे लेकिन तब विधानसभा में कांग्रेस की तुलना में भाजपा बेहतर स्थिति में थी, परंतु इस बार मामला 50-50 का होने से मुकाबला बराबरी का माना जा रहा है। सिवनी क्षेत्र से पिछले चुनाव में भाजपा को भरपूर वोट मिले थे किंतु बीते विधानसभा चुनाव में यह वोट बैंक थोड़ा कमजोर नजर आया। इसके अलावा सिवनी क्षेत्र के ही बनवारी काका और भुवन सिंह कोर्राम भी मैदान में हैं। सोशल मीडिया और आदिवासी समाज में दोनों नेताओं के नाम खूब प्रचारित हो रहे हैं। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि यह दोनों नेता किस पार्टी के सियासी समीकरण बिगाड़ेंगे।

दमोह में भी उहापोह

भाजपा के राहुल लोधी और कांग्रेस के तरवर सिंह के लोधी समुदाय से होने के कारण यहां लोधी समाज के दो खेमों में बंटने के आसार हैं। कभी कांग्रेसी रहे राहुल लोधी के पास अब मजबूत संगठन वाली भाजपा का साथ है वहीं तरवर सिंह पटेल कमजोर संगठन के बावजूद जातीय समीकरण साधने और अपनी ईमानदार और कर्मठ छवि के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश कर रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि मतदाता किसी पर भरोसा करते हैं।

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