चेतावनी के साथ एसीएस के खिलाफ अवमानना कार्यवाही निरस्त
हाईकोर्ट में पेश किया था गलत हलफनामा
जबलपुर। हाईकोर्ट ने भविष्य में सावधानी बरतने के आदेश के साथ हाईकोर्ट ने लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा के अतिरिक्त मुख्य सचिव मोहम्मद सुलेमान के खिलाफ अवमानना कार्यवाही को निरस्त कर दिया है। हाईकोर्ट जस्टिस संजीव सचदेवा तथा जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने पाया कि अतिरिक्त मुख्य सचिव ने अपने आचरण को सही ठहराने की कोशिश किये बिना गलती स्वीकार करते हुए माफी मांगी है। भविष्य में अतिरिक्त सावधानी बरतने का वचन भी दिया है। युगलपीठ ने भविष्य में सावधानी बरतने की चेतावनी के साथ अवमानना कार्यवाही को निरस्त कर दिया।
अवमानना याचिका की सुनवाई के दौरान युगलपीठ ने पाया कि डॉ एस बी खरे की तरफ से हाईकोर्ट में डॉ दीपरानी असरानी को सिविल सर्जन तथा सीएमएचओ सीधी बनाने जाने को चुनौती दी गयी थी। याचिका में कहा गया था कि सिविल सर्जन तथा सीएमएचओ सीधी बनाने जाने की मांग करते हुए अनावेदक डॉ दीपरानी असरानी में हाईकोर्ट की शरण ली थी। डॉ दीपरानी की तरफ से दायर याचिका की सुनवाई के दौरान अतिरिक्त मुख्य सचिव लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा की तरफ से हाईकोर्ट में हलफनामा तरफ से पेश किये गये हलफनामे में कहा गया था कि डॉ दीपरानी असरानी ने उक्त पद के लिए आवेदन नहीं किया था। याचिका के लंबित रहने के दौरान डॉ असरानी को उक्त पद पर पदस्थ कर दिया गया था। जिस कारण से उन्होने याचिका वापस लेने का आग्रह किया था,जिसे न्यायालय ने स्वीकार कर लिया था।
एकलपीठ ने रिकॉर्ड का अवलोकन करने पर पाया कि एसीएस ने आवेदन नहीं करने के संबंध में झूठा हलफनामा पेश किया था। एकलपीठ ने मुख्य सचिव तथा एसीएस मोहम्मद सुलेमान को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। मुख्य सचिव की तरफ से पेश किये गये जवाब में बिना शर्त माफी मांगते हुए आश्वासन दिया था कि हलफनामा पेश करने के संबंध में सामान्य प्रशासन विभाग को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किये जायेगे। एसीएस मोहम्मद सुलेमान के जवाब से एकलपीठ ने असंतुष्टी व्यक्त करते हुए उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही के निर्देश दिये थे।
अवमानना कार्यवाही के दौरान एसीएस मोहम्मद सुलेमान की तरफ से बताया गया कि उन्होंने अधीनस्थ अधिकारी ने प्राप्त जानकारी के आधार पर उक्त हलफनामा पेश किया था। गलत जानकारी देने वाले अधिकारियों के खिलाफ एक वेतन वृद्धि रोकने तथा निंदा प्रस्ताव पारित करने से दंडित किया गया है। उन्होने अपनी गलती स्वीकार करते हुए बिना शर्त न्यायालय से माफी मांगी। युगलपीठ ने उक्त आदेश के साथ उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही निरस्त करने के आदेश जारी किये है।