*इस मंदिर में सिर्फ पुरुषों के गरबा करने की परंपरा।*
*महिलाएं मंदिर में बैठकर देखती है गरबे।*
*खरगोंन :नवरात्र में पुरुष और महिलाएं दोनों गरबा करते हैं, लेकिन निमाड़ के खरगोन में ऐसा प्राचीन मंदिर है, जहां सिर्फ पुरुष ही गरबा करते हैं। महिलाएं मंदिर में बैठकर गरबा देखती हैं। वे भजन गाती हैं। इस मंदिर में ये परंपरा वर्षों से चली आ रही है। एक और खास बात है कि यहां एक कुआं भी है, इसके पानी से श्रद्धालु सिर्फ नवरात्र में ही स्नान करते हैं।*
मंदिर के पुजारी रामकृष्ण भट्ट बताते हैं कि मंदिर में विराजित माता की पिंडिया कुएं से निकाली गई है। बहुत पुरानी बात है, मंदिर के संस्थापक भटाम भट्ट दादा को देवी ने स्वप्न में दर्शन दिए। बताया- हम घर के बाहर झिरे में हैं। भटाम भट्ट दादा ने कुएं से मूर्तियों को निकाल कर पीपल की ओट से स्थापित कर पूजन शुरू कर दिया। उन्होंने बताया कि माता शीतल जल से निकली हैं। इनमें माता की नौ मूर्तियां हैं।
*एक ही चबूतरे पर नौ देवियां…*
मंदिर में ब्रह्माजी की शक्ति ब्राह्मी, भगवान महेश की शक्ति माहेश्वरी, भगवान विष्णु की शक्ति वैष्णवी, कुमार कार्तिक की शक्ति कौमारी, भगवान इंद्र की शक्ति इंद्राणी, भगवान वराह की शक्ति वाराही व स्व प्रकाशित मां चामुण्डा के साथ ही महालक्ष्मी, सरस्वती व शीतला, बोदरी खोखरी माता मंदिर की चौपाल पर प्रतिष्ठित हैं। नौ देवियों के साथ भगवान महाबलेश्वर, अष्ट भैरव और हनुमानजी एक ही चबूतरे पर विराजित हैं। श्रद्धालु माता के चबूतरे की परिक्रमा के साथ ही सभी आराध्य की भी परिक्रमा करते हैं।मंदिर के प्रति भक्तों की अगाध श्रद्धा है। हिन्दू नववर्ष की प्रतिपदा से वर्ष भर यहां धार्मिक कार्यक्रम, अनुष्ठान, कथा पुराण, हवन होते रहते हैं। वर्ष की दोनों नवरात्र में निमाड़-मालवा क्षेत्र के कई दर्शनार्थी यहां आते हैं।
मंदिर के प्रति भक्तों की अगाध श्रद्धा है। हिन्दू नववर्ष की प्रतिपदा से वर्ष भर यहां धार्मिक कार्यक्रम, अनुष्ठान, कथा पुराण, हवन होते रहते हैं। वर्ष की दोनों नवरात्र में निमाड़-मालवा क्षेत्र के कई दर्शनार्थी यहां आते हैं।
*चली आ रही हैं सात गरबे की परंपरा*
बताया जाता है कि इस मंदिर में नवरात्र में आरती के पहले रोजाना पुरुषों द्वारा सात गरबे की परंपरा चली आ रही है। खास बात ये है कि यहां पुरुष श्रद्धालु डांडियों के बजाए हाथों से ताल से ताल मिलाकर झूमते हुए गरबा करते हैं। इस दौरान माता के चबूतरे की पूरी परिक्रमा की जाती है। पास ही स्थित चबूतरे पर बैठकर महिलाएं गरबे को स्वर देती हैं। बताया जाता है कि सात गरबे ही पिछले 150 साल से गाए जाते हैं।
*ये है परंपरा के पीछे का तर्क…*
बताया जाता है कि पुराने समय में महिलाएं बड़ा सा घूंघट रखती थी। बुजुर्गों के सामने लाज रखती थीं। इस वजह से वे पुरुषों के साथ गरबों में शामिल होने से कतराती थीं। यही परंपरा आज भी कायम है।
*श्रद्धालु गीले कपड़े पहनकर जल अर्पित करते हैं।*
मंदिर से जुड़े सुबोध जोशी ने बताया कि माता जिस कुएं से निकली थीं, नवरात्र के दौरान श्रद्धालु तड़के 5 बजे से कुएं के शीतल जल से स्नान करने आते हैं। यह कुआं सिर्फ नवरात्र में ही खोला जाता है। स्नान का दौर रात तक चलता है। स्नान के बाद श्रद्धालु गीले कपड़े पहनकर ही माता के दर्शन कर जल अर्पित करते हैं। इसके बाद उसी जल का पान चरणामृत के रूप में करते हैं। पुरुष श्रद्धालु हाथों से ताल से ताल मिलाकर गरबा करते हैं। वे माता के चबूतरे की पूरी परिक्रमा करते हैं। पास ही स्थित चबूतरे पर बैठकर महिलाएं भजन गाती हैं। पुरुष श्रद्धालु हाथों से ताल से ताल मिलाकर गरबा करते हैं। वे माता के चबूतरे की पूरी परिक्रमा करते हैं। पास ही स्थित चबूतरे पर बैठकर महिलाएं भजन गाती हैं।
*नवरात्र में रोजाना ‘पान के बीड़े’ का लगता है भोग*
नवरात्र में माता को रोजाना विशेष रूप से पान के बीड़े और ज्वार की धानी का भोग लगाया जाता है। दोपहर में महाआरती के बाद भोग आरती के बाद श्रद्धालुओं में इसे बांट दिया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार पान के बीड़े में उपयोग की जाने वाली जड़ी-बूटियां जठराग्नि (उपवास होने से बढ़ने वाली पेट गर्मी) को शांत करता है। उपवास के दौरान ऊर्जा बनाए रखने में भी सहायक है। वहीं, उपवास न करने वाले श्रद्धालुओं को ज्वार की धानी समेत अन्य प्रसाद दिया जाता है।
*पान के बीड़े में ये सामग्री उपयोग होती है*
मंदिर के पुजारी ने बताया कि पान के बीड़े में दालचीनी, जायफल, लौंग, इलायची, जावित्री, मिश्री, पिपरमेंट और जेष्ठिमा का उपयोग किया जाता है।