नयी दिल्ली, 02 सितंबर (वार्ता) उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश समेत कुछ राज्यों में समय-समय पर चले कथित ‘बुलडोजर न्याय’ के खिलाफ दायर याचिका पर सोमवार को कहा कि किसी भी आरोपी या संदिग्ध या यहां तक कि दोषी की अचल संपत्तियों (मकान, दुकान आदि) को बिना पूरी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किये नहीं ढहाया जा सकता।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के. विश्वनाथन की पीठ ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह टिप्पणी की और कहा कि वह इस मामले में एक अखिल भारतीय दिशा-निर्देश जारी करेगी। पीठ ने इस बात पर जोर देते हुए स्पष्ट तौर पर कहा कि अचल संपत्तियों को केवल कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करके ही गिराया जा सकता है।
अदालत ने हालांकि, इस मुद्दे को सुलझाने के लिए एक दिशा-निर्देश निर्धारित करने का प्रस्ताव करते हुए यह भी स्पष्ट किया कि वह अवैध ढांचों का बचाव नहीं कर रही है।
जमीयत उलेमा ए हिंद की ओर से दायर याचिका में यह शिकायत की गई है कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और अन्य राज्यों में कुछ अपराधों के आरोपी व्यक्तियों की अचल संपत्तियों को बुलडोजर से ढहा दिया गया है।
शीर्ष अदालत ने इस याचिका पर सुनवाई के बाद सभी पक्षों से सुझाव देने को कहा और मामले की अगली सुनवाई के लिए 17 सितंबर की तारीख मुकर्रर कर दी।