मुंबई, 28 मार्च (वार्ता) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने वित्तीय क्षेत्र में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की बढ़ती भूमिका और जोखिम को देखते हुए शुक्रवार को इन संस्थानों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों और नियामक प्रमुखों को “ऑडिट की कठोरता” बनाए रखने और निष्पक्षता, पारदर्शिता एवं नैतिकता के उच्चतम मानकों का पालन करने की सलाह दी।
आरबीआई ने बड़े आकार के एनबीएफसी के लिए एक सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें बोर्ड की ऑडिट समिति (एसीबी) के अध्यक्ष, प्रबंध निदेशक (एमडी) और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) और एनबीएफसी के सांविधिक लेखा परीक्षकों ने भाग लिया।
रिजर्व बैंक ने स्वीकार किया कि वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र में एनबीएफसी की महत्वपूर्ण भूमिका है और वित्तीय विवरणों की सटीकता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने में एसीबी और सांविधिक लेखा परीक्षकों की भूमिका अहम है। उसने यह भी कहा कि जोखिम उठाने की प्रक्रिया “सावधानीपूर्वक और योजनाबद्ध” होनी चाहिए तथा यह संस्था की जोखिम अवशोषण क्षमता से परे नहीं जानी चाहिए।
यह सम्मेलन आरबीआई द्वारा अपने विनियमित निकायों के प्रमुख हितधारकों के साथ जारी पर्यवेक्षी गतिविधियों की श्रृंखला का एक हिस्सा है। इस सम्मेलन का विषय ‘साझा दृष्टिकोण, साझा जिम्मेदारी : एनबीएफसी को मजबूत बनाना’ है। इसमें 200 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।
रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर स्वामीनाथन जे. और इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) के अध्यक्ष चरणजोत सिंह नंदा ने भी सम्मेलन को संबोधित किया। इसके अलावा, आरबीआई के नियामक, पर्यवेक्षी और प्रवर्तन कार्यों के प्रभारी कार्यकारी निदेशकों ने भी भाग लिया।
श्री स्वामीनाथन ने एनबीएफसी को एक मजबूत शिकायत निवारण तंत्र के साथ निष्पक्ष उधार और वसूली प्रक्रिया अपनाने की सलाह दी। उन्होंने लेखा परीक्षकों से ऑडिट की कठोरता बनाए रखने और निष्पक्षता, पारदर्शिता और नैतिकता के उच्चतम मानकों का पालन करने की उम्मीद जताई।
आईसीएआई के अध्यक्ष चरणजोत सिंह नंदा ने चार्टर्ड अकाउंटेंसी पेशे के योगदान पर जोर दिया और चार्टर्ड अकाउंटेंट्स से इस पेशे पर जताए गए भरोसे पर खरा उतरने का आग्रह किया। उन्होंने विशेष रूप से ऑडिटिंग में प्रौद्योगिकी को अपनाने और चार्टर्ड अकाउंटेंट्स की क्षमता निर्माण में संस्थान द्वारा उठाए गए कदमों पर चर्चा की।