गर्मी आते ही जल संकट की आहट !

गर्मी का मौसम अभी ढंग से शुरू भी नहीं हुआ है कि देश के कई हिस्सों में जल संकट की आहट सुनाई देने लगी है. मराठवाड़ा, विदर्भ, राजस्थान, तेलंगाना में जल संकट साफ तौर पर देखा जा सकता है. आइटी शहर के नाम से पहचाने जाने वाला बेंगलूरु तो भीषण जल संकट की चपेट में आ गया है.इस शहर में पानी के लिए लंबी-लंबी कतारें लगनी शुरू हो गई हैं. मुख्यमंत्री निवास का बोरवेल भी सूख चुका है और वहां टैंकर के जरिए पेयजल आपूर्ति हो रही है. बेंगलुरु से लोगों के पलायन की खबरें हैं. प्रॉपर्टी और घरों की खरीद और बिक्री कम हो गई है. आईटी कर्मचारी वर्क फ्रॉम होम की मांग कर रहे हैं. दरअसल,जैसे-जैसे गर्मी परवान चढ़ेगी, देश के तमाम शहर बेंगलूरु की तरह पेयजल संकट का शिकार होते जाएंगे. हर जेहन में सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर भूजल का स्तर लगातार क्यों घटता जा रहा है. इस सवाल का जवाब भी शायद सब जानते हैं, लेकिन पानी बचाने में योगदान नहीं देते.यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि पानी का उत्पादन नहीं हो सकता, सिर्फ बरसात के पानी का सही संरक्षण ही हमें पेयजल संकट से बचा सकता है. बेंगलूरु से चौदह सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मध्यप्रदेश के झाबुआ के स्थानीय लोगों ने प्राचीन परंपरा ‘हलमा’ को पुनर्जीवित करते हुए इलाके में 108 तालाबों का निर्माण कर डाला,जो झाबुआ कभी पानी की किल्लत से परेशान रहता था, उसी इलाके में स्थानीय लोग एक वर्षाकाल में 1500 करोड़ लीटर पानी सहेज रहे हैं.समझने की बात यह है कि झाबुआ के लोगों ने पानी के मोल को न सिर्फ समझा बल्कि उसके लिए प्रयास भी किए. ऐसे प्रयास बेंगलूरु में क्यों नहीं हुए? बोरवेल खोदकर जमीन के पानी का दोहन करना कितनी समझदारी मानी जा सकती है.देश में वर्षा जल के संरक्षण की कई योजनाएं चल रही हैं.केन्द्र और राज्य सरकारें हर साल अरबों रुपए जल संरक्षण पर खर्च कर रही हैं. सरकारी आंकड़ों पर भरोसा कर लिया जाए तो देश में हर साल इतना पानी बचाया जा सकता है कि इसका संकट होना ही नहीं चाहिए. बड़े शहरों की गगनचुंबी इमारतों में जल संरक्षण के लिए जरूरी इंतजाम करने की बाध्यता है, लेकिन ईमानदारी से पड़ताल की जाए तो वहां भी पोल ही निकलेगी.

सब जानते तो हैं कि ‘जल है तो कल है’, लेकिन उस पर अमल नहीं करते.आंकड़े बताते हैं कि हर साल अरबों-खरबों लीटर पानी व्यर्थ चला जाता है. नदियों के जल विवाद को लेकर राज्यों के बीच टकराव के किस्से भी नए नहीं हैं.बेंगलूरु का पेयजल संकट सबके लिए चेतावनी है.सरकारें तो इस दिशा में काम कर ही रही हैं, लेकिन हम इस दिशा में क्या कर रहे हैं? क्या पानी बचाने में हमारा योगदान नहीं होना चाहिए ? ये सवाल हर व्यक्ति को अपने आप से पूछने चाहिए.जल संकट को हल करने वाला जवाब उसके भीतर से ही निकलेगा.दरअसल,

भूजल की वर्तमान स्थिति को सुधारने के लिये भूजल का स्तर और न गिरे इस दिशा में काम किए जाने के अलावा उचित उपायों से भूजल संवर्धन की व्यवस्था हमें करनी होगी. इसके अलावा, भूजल पुनर्भरण तकनीकों को अपनाया जाना भी आवश्यक है.वर्षाजल संचयन (रेन वॉटर हार्वेस्टिंग) इस दिशा में एक कारगर उपाय हो सकता है.हाल के वर्षों में, सुदूर संवेदन उपग्रह-आधारित चित्रों के विश्लेषण तथा भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) द्वारा भूजल संसाधनों के प्रबन्धन में मदद मिली है. भूजल की मॉनिटरिंग एवं प्रबन्धन में भविष्य में ऐसी समुन्नत तकनीकों को और बढ़ावा दिए जाने की आवश्यकता है. बड़ी संख्या में पौधारोपण करके उन्हें संरक्षित करना भी जरूरी है. इनके अलावा स्टॉप डेम, छोटे तालाब भी भूजल स्तर ऊपर करने में मदद कर सकते हैं. सरकारी प्रयासों के अलावा इस मामले में जन भागीदारी बेहद आवश्यक है. कॉर्पोरेट घरानों को इस अभियान में शामिल किया जा सकता है. जल संकट के दीर्घकालिक और ठोस उपाय हमें करने होंगे. टैंकर और हैंड पंप जल संकट का स्थाई समाधान नहीं हैं. जाहिर है सम्मिलित प्रयास ही इस दिशा में सफलता दिला सकते हैं.

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