ग्वालियर: श्रीकृष्ण ने पुण्य किए थे, इसलिए वे भरतभूमि में जन्मे और भावी चौबिसी में निर्मल नाम के सोलहवें तीर्थंकर होंगे। श्री कृष्ण और जैनियों के 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ चचेरे भाई थे। श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव और नेमिनाथ के पिता समुद्रविजय भाई थे। जैन शास्त्रों में श्री कृष्ण को अतिविशिष्ट पुरुष के रूप में चित्रित किया गया है। जैन आगमों में 63 शलाका पुरुष माने गए हैं जिनमें 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 बलदेव, 9 वासुदेव तथा 9 प्रति वासुदेव हैं। नेमिनाथ 22वें तीर्थंकर तथा श्री कृष्ण नौवें अंतिम वासुदेव हैं। शलाका पुरुष अत्यंत तेजस्वी, वर्चस्वी, कांतिमय आदि गुणों से संपन्न होते हैं। जैन पुराणों के अनुसार श्री कृष्ण भावी तीर्थंकर हैं। यह उदगार सिरौल चौराहा, साक्षी एनक्लेव स्थित विद्याधाम परिसर में चल रही धर्मसभा में आर्यिका रत्न 105 श्री पूर्णमती माताजी ने आज रविवार को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर श्रीकृष्ण के बहुआयामी प्रेरक व्यक्तित्व का विद्वतापूर्ण विश्लेषण करते हुए व्यक्त किए।
बिना पुण्य किए सोना नहीं और पुण्य करके रोना नहीं
माताजी बताया कि तीन खण्ड के अधिपति श्रीकृष्ण का जन्म सात माह में ही हो गया था। देवकी सात स्वप्न देखती हैं। श्रीकृष्ण अष्टकर्मों का विनाश करने वाले हैं। घनघोर बारिश के समय उनका जन्म हुआ लेकिन जैसे ही बाहर निकले, बारिश बंद हो गई, उन्हें छींक आती है तो कंस के पिता उग्रसेन महाराज को उनके इस धरा पर पदार्पण की अनुभूति होती है और वे आशीर्वाद देते हैं। पुण्य जिसका रखवाला है, उसे कोई मार नहीं सकता, इसीलिए बिना पुण्य किए सोना नहीं और पुण्य करके रोना नहीं।
धर्मसभा में आर्यिका रत्न श्री पूर्णमती माताजी ने बताया कि नेमिनाथ के पास मयूर पिच्छी थी, जो अहिंसा के लिए जैन मुनि का अनिवार्य साधन होती है।
उस पिच्छी से नेमिनाथ ने श्री कृष्ण को जो आशीर्वाद दिया, वह श्रीकृष्ण को इतना प्रिय लगा कि उन्होंने मुकुट में मोर पंख धारण करना शुरू कर दिया। श्रीकृष्ण नेमिनाथ को आराध्य के रूप में स्वीकारते हैं। गीता में हिंसात्मक यज्ञ का निषेध है तथा समन्वय की प्रधानता है। अहिंसा जैन धर्म का सबसे बड़ा सिद्धांत है। नेमिनाथ और श्री कृष्ण के विचार बहुत कुछ मिलते-जुलते हैं। यह दोनों महापुरुषों के घनिष्ठ संबंध का प्रबल प्रमाण है। महापुरुष किसी संप्रदाय विशेष की धरोहर नहीं होते। उनका व्यक्तित्व तो सूर्य-चंद्रमा की भांति सार्वभौमिक होता है। उन्हें किसी परिधि में सीमित करना उचित नहीं।
विद्याधाम परिसर में देशभर से जैन जत्थों के आगमन का क्रम जारी
चातुर्मास कमेटी के मीडिया प्रभारी ललित जैन ने बताया कि आर्यिका श्री पूर्णमती माताजी का आशीर्वाद ग्रहण करने के लिए आज देशभर से जैन समाज के जत्थों की चातुर्मासस्थल विद्याधाम परिसर में तांता लगा रहा। मनोरम गीत संगीत के बीच भक्ति नृत्य करते हुए इन सभी ने गुरुवंदना की। अहमदाबाद से बोहरा, कटारिया, पाटनी आदि परिवारों के दर्जनों सदस्य आए तो मुंबई, सूरत, आगरा आदि स्थलों से भी श्री पूर्णमती माताजी के अनुयायियों का आना जाना लगा रहा। चातुर्मास स्थल पर मेले जैसा माहौल है। आज भिण्ड से भी एक बस भरकर गुरुभक्त परिवार पहुंचा। नया बाजार, ग्वालियर महिला शाखा ने भी गुरुवर और आर्यिका पूर्णमती की आराधना की। डॉ. पीसी जैन, मनीष जैन, ऊषा, नीलम, अजयकुमार, अखिल कुमार, महेंद्र जैन, संजय जैन मुरार, चंदू काला, रितु काला आदि ने गुरुभक्ति की। वर्षायोग समिति ने सभी अतिथियों को स्मृतिचिन्ह भेंटकर स्वागत किया।