नयी दिल्ली, 27 जुलाई (वार्ता) नीति आयोग की राजधानी में शनिवार को हुई बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का माइक्राफोन को बंद किए जाने के दावे को केंद्र सरकार के अधिकारियों ने भ्रामक बताया है। उनका कहना है कि सुश्री बनर्जी को राज्य सरकार के अनुरोध पर उनके क्रम से पहले बोलने का मौका दिया गया और उनका समय पूरा होने की घंटी तक नहीं बजायी गयी।
अधिकारियों का कहना है, ‘वहां की घड़ी दर्शाती है कि उनका (सुश्री बनर्जी का) बोलने का समय पूरा हो गया था। समय पूरा होने की घंटी भी नहीं बजायी गयी थी।
सुश्री बनर्जी ने बैठक के संचालन के तरीके पर आपत्ति करते हुए कार्यवाही बीच में ही छोड़ निकल गयी थीं। बाहर संवाददाताओं से कहा कि उन्हें अपनी बात रखने का पूरा समय नहीं दिया गया। मुख्यमंत्री बनर्जी ने कहा, ““मैंने बैठक का बहिष्कार किया है। श्री चंद्रबाबू नायडू को बोलने के लिए 20 मिनट दिए गए, असम, गोवा, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने 10-12 मिनट तक बात की। मुझे सिर्फ़ पांच मिनट बाद बोलने पर ही रोक दिया गया। यह गलत है, विपक्ष की ओर से सिर्फ़ मैं यहां प्रतिनिधित्व कर रही हूं और इस बैठक में इसलिए भाग ले रही हूं क्योंकि सहकारी संघवाद को मज़बूत करने में मेरी अधिक रुचि है।”
अधिकारियों ने कहा कि वर्णमाला के क्रम के अनुसार सुश्री बनर्जी के बोलने की बारी दोपहर के भोजन के बाद आनी थी। उन्हें पश्चिम बंगाल सरकार के औपचारिक अनुरोध पर पहले बोलने का अवसर दिया गया और वह बैठक में सातवीं वक्ता थीं।
राज्य सरकार के अधिकारियों ने कहा था कि मुख्यमंत्री को दिल्ली से जल्दी वापस लौटना है। इस कारण उनके बोलने का समय समायोजित कर पहले किया गया था।
इस विवाद के बाद प्रेस सूचना कार्यालय ने अपने ‘एक्स’ सोशल मीडिया खाते के फैक्ट चेक एकाउंट पर इन तथ्यों को साझा भी किया है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि मुख्यमंत्री बनर्जी का माइक्रोफोन बंद नहीं किया गया था। सुश्री बनर्जी का आरोप बेबुनियाद है।
जनता दल (यूनाइटेड) के महासचिव केसी त्यागी ने भी संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि नीति आयोग की बैठक में आज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री का माइक बंद नहीं किया गया था।
श्री त्यागी ने बैठक में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अनुपस्थित में किसी तरह राजनीति देखने के प्रयास को अनावश्यक बताया।