डॉ संजय पयासी
सतना।राजनीति में पत्रकारिता से आकर जीवन भर पत्रकार बने रहने की जो सीख प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के सत्ता स्तम्भ को स्थापित करने वाले वर्षों तक प्रदेश के पूर्व मुखिया शिवराज सिंह चौहान के सारथी रहे प्रभात झा का यू अचानक चला जाना कई अधूरे सवालों को छोड़ गया है. राजनीति में आ रही चारित्रिक गिरावट को खुलकर स्वीकार करने की हिम्मत रखने का जो मद्दा प्रभात भाई साहब में था ,वो अब देखने को नही मिलता है.
उनसे जुड़ी स्मृतियों को ताजा किया जाए तो जितना पुराना उनका भोपाल प्रवास रहा है उतना ही पुराना सम्पर्क रहा है. सन 1992 में प्रदेश में काबिज पटवा सरकार के पतन के बाद भारतीय जनता पार्टी को पुनः सत्ता में पहुँचाने के लिए तब स्वर्गीय कुशाभाऊ ठाकरे ने जो टीम बनाई उसमें प्रभात जी का नाम सबसे पहला रहा.ग्वालियर से निकलने वाले स्वदेश समाचार पत्र के सिटी चीफ का पद छुड़वा कर उन्हें प्रदेश भाजपा का संवाद प्रमुख बनाया गया था.उन्हें पूरे प्रदेश में भाजपा के पक्ष में सतत संवाद के लिए टीम बनाने का दायित्व सौपा गया था.संघ और विद्यार्थी परिषद की मजबूत पृष्ठभूमि रखने वाले प्रभात जी ने चंद महीनों में ही पूरे प्रदेश में सम्पर्क संवाद प्रमुखों का ढाचा खड़ा कर दिया जिसकी कल्पना भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को भी नही थी.पूरे प्रदेश में बनी यह युवा स्वयं सेवकों की टीम अपने जेब से खर्च कर काग्रेस सरकार के खिलाफ हर घटनाक्रम का बराबरी से जबाव देने लगी.बाद में निर्माणाधीन प्रदेश भाजपा कार्यालय में प्रभात जी को एक कमरा उपलब्ध कराया गया.जहां उनका निवास और कार्यालय दोनों होते थे.राजधानी के पत्रकार जब उनसे मिलने जाए तो वे उसी कक्ष में मिलते थे.कई बार स्वयं चाय बनाकर भी पिलाते थे.
बाद में पार्टी ने उनकी निष्ठा को देखते हुए राज्यसभा का सदस्य नामांकित कर दिया.यहाँ से उनकी राजनीति में सक्रियता का दूसरा चरण प्रारंभ होता है. बाद में प्रदेशाध्यक्ष का भी दायित्व सौपा गया.लेकिन भाजपा को सत्ता में लाने के लिए जिस पहले संचार संवाद संगठन जावली को तैयार किया गया जिसमें अनिल माधव दवे और प्रकाश जावड़ेकर जैसे लोगो ने सक्रिय भूमिका निभाई थी.इस टीम के गठन में भी संघ के साथ-साथ प्रभात जी की भी बड़ी भूमिका थी.
सत्ता और संगठन के बीच जिस प्रकार का समन्वय श्री झा के कार्यकाल में देखने को मिला वो कम ही देखने को मिलता है. प्रदेश में दूसरी और तीसरी बार सरकार बने इस कोशिश में शिवराज सिंह चौहान के साथ कंधा लगाने वाले प्रभात झा भी थे.उनकी हजारों किलोमीटर लंबी जनादेश यात्रा में पूरे समय साथ रहते यात्रा की योजना क्या होगी इसका अंतिम निर्णय उन्ही को लेना पड़ता था.नेताओं और कार्यकर्ताओं की लंबी चौड़ी फौज वाले भारतीय जनता पार्टी के वे ऐसे सिपाही थे जिन्होंने कभी भी पर्दे के बाहर कोई भूमिका हो यह सोचा हो.