संघ प्रमुख की नसीहत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत के नागपुर संबोधन की इन दिनों बड़ी चर्चा है. इस संबोधन में उन्होंने भाजपा का नाम लिए बिना नसीहत दी है उन्होंने कहा कि सार्वजनिक जीवन में काम करने वालों को अहंकार नहीं होना चाहिए. उन्होंने मणिपुर मसले के हल को लेकर भी सरकार को गंभीर होने का इशारा किया है. जाहिर है संघ प्रमुख केंद्र सरकार को राजधर्म पर चलने की नसीहत दे रहे थे. भाजपा को अपने मातृ संगठन के मुखिया की बात को गंभीरता से लेना चाहिए.दरअसल, केंद्र में नई सरकार पदारूढ हो गई है.वैसे यह विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की विविधता और ताकत का समारोह मनाने का क्षण है.यह चुनाव आयोग, अन्य संस्थानों, कर्मचारियों और प्रक्रिया का आभार जताने का भी पल है.देश के मतदाताओं ने जो जनादेश दिया है, यह ‘गठबंधन’ सरकार भी लोगों की इच्छा की प्रतीक है, क्योंकि गठबंधन में ही बहुमत और राजधर्म निहित हैं. चूंकि यह गठबंधन की सरकार है, किसी एक दल के पक्ष में बहुमत का जनादेश नहीं है, तो उसके अर्थ ये नहीं हैं कि गठबंधन की निरंतरता और स्थिरता का ही रोना रोया जाए अथवा बहानों के लिए गठबंधन की आड़ में छिपा लिया जाए. प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में ही यह एनडीए-3 सरकार है और 2014 की निरंतरता में ही है. फर्क सिर्फ इतना है कि भाजपा को बहुमत नहीं मिला है और सरकार की स्थिरता गठबंधन के घटक दलों के सहारे ही है.बिल्कुल ऐसा भी नहीं है, क्योंकि जब 1991 में नरसिम्हा राव सरकार बनी थी, तब कांग्रेस के 232 सांसद ही थे. सरकार पूरे पांच साल चली .कमोबेश अब भाजपा के पास 240 सांसद हैं और कुछ निश्चित समर्थक भी हैं.

बहुमत के लिए खरीद-फरोख्त की नौबत, शायद, न आए. बहरहाल मौजूदा संदर्भ में तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) और जद-यू की ही चिंता नहीं करनी चाहिए. उन्हें भी सम विचारक भारत सरकार की जरूरत है, जो उनकी बुनियादी जरूरतों की पूर्ति कर सके.दोनों ही दलों के राज्य गरीब और विपन्न हैं. दोनों ही राज्य कर्जदार हैं .प्रधानमंत्री मोदी की सरकार का राजधर्म यह है कि जब भी कोई बड़ा और गंभीर फैसला लेना हो, तो विमर्श की मेज पर सभी सहयोगी दलों के नेता मौजूद हों और फैसला सर्वसम्मति से किया जाना चाहिए. वैसे खुद प्रधानमंत्री ऐसी भावना व्यक्त कर चुके हैं.

गठबंधन सरकारों के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ. मनमोहन सिंह भी थे, जिन्होंने अपने कार्यकाल बखूबी निभाए. डॉ. मनमोहन सिंह तो 10 साल तक गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री रहे.दूरसंचार, पेंशन, सरकारी घाटे पर लगाम कसने की व्यवस्था, बिजली और बीमा क्षेत्र के कई बड़े सुधारवादी फैसले वाजपेयी सरकार के दौरान लिए गए. मनमोहन सरकार के दौरान अमरीका के साथ असैन्य परमाणु करार जैसे संवेदनशील फैसले के अलावा मनरेगा, खाद्य सुरक्षा, अनिवार्य-मुफ्त प्राथमिक शिक्षा, सूचना के अधिकार, भूमि अधिग्रहण कानून आदि पारित कराए गए.इनके अलावा पेट्रोलियम उत्पादों को बाजार के हवाले करने सरीखे बड़े फैसले भी लिए गए. चूंकि अब भाजपा अल्पमत में है, लिहाजा एनडीए की गठबंधन सरकार, गठबंधन धर्म और मोदी सरकार के राजधर्म की अग्निपरीक्षा का यह दौर है.

हालांकि कोई बड़ा संकट या राजनीतिक दरारों के हालात नहीं लगते, क्योंकि आर्थिक विकास और आर्थिक सुधारों के पक्षधर चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार भी हैं.फिर भी असली चुनौती तब सामने आएगी, जब प्रधानमंत्री टीडीपी और जद-यू दोनों को ही निर्णय की मेज पर बुलाएंगे और सर्वमत नहीं बन पाएगा. बहरहाल प्रधानमंत्री मोदी ने एनडीए को ‘ऑर्गेनिक’ और ‘सफलतम’ गठबंधन करार दिया है. जाहिर है प्रधानमंत्री जनादेश में निहित संदेश को समझ रहे हैं. उन्हें अच्छी तरह पता है कि गठबंधन सरकार के तकाजे और मजबूरियां क्या होती हैं ! यदि 2024 के लोकसभा चुनाव के परिणामों में छिपे संदेश के संदर्भ में संघ प्रमुख का संबोधन देखें तो समझ में आता है कि उन्होंने भाजपा के लिए कितनी महत्वपूर्ण नसीहतें दी हैं.

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