जम्मू कश्मीर की सुरक्षा नीति नए सिरे से बने

हाल ही में कश्मीर के गांदरबल में जिस तरह से आतंकी हमले में सात निर्दोष नागरिकों की मृत्यु हुई है वो बेहद चिंताजनक है. लंबे अर्से बाद कश्मीर में आतंकवादी हमला हुआ है, जिसमें एक साथ इतने लोगों को हताहत होना पड़ा. अन्यथा पिछले दो-तीन वर्षों से आतंकवादियों का फोकस जम्मू पर था. कश्मीर में कुछ समय पूर्व टारगेट किलिंग होती रही, लेकिन वो भी काफी दिनों से बंद थी. खास बात यह है कि कश्मीर के जिस क्षेत्र में आतंकी हमला किया गया, वो क्षेत्र जम्मू कश्मीर के नए मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का निर्वाचन क्षेत्र है. जाहिर है आतंकवादियों के जरिए पाकिस्तान ने कश्मीर के लोगों को खास संदेश दिया है.यह भी साफ है कि ये हमला पाकिस्तान की बौखलाहट को भी दर्शाता है. जो भी हो जम्मू कश्मीर में अब सुरक्षा की नई रणनीति अपनानी चाहिए. इसमें टारगेट किलिंग को रोकने और सीमा पार से घुसपैठ को खत्म करने पर बल दिया जाए. यह संतोषजनक है कि इस हमले के बाद केंद्र और राज्य सरकार ने समन्वित रूप से सर्च ऑपरेशन चलाया है. पिछले 10 वर्षों का अनुभव है कि हमला करने वाले आतंकी दो-तीन महीने से ज्यादा जीवित नहीं बचे हैं. इस बार भी आतंकी मारे जाएंगे इसमें कोई शक नहीं, लेकिन ये घटनाएं किस तरह रोकी जा सकती हैं इस पर विचार होना चाहिए. भारत को आक्रामक सुरक्षा नीति रखनी होगी, लेकिन हमें ओवर रिएक्शन से भी बचना चाहिए. खास तौर पर राजनीतिक दलों को बयान बाजी करते समय संयम रखने की जरूरत है.

बहरहाल, इस हमले से जाहिर है कि पाकिस्तान भारत से वार्ता की पहल का पाखंड करता है. प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ के बड़े भाई नवाज़ शरी$फ ने भारत से वार्ता और अच्छे संबंधों की बार-बार दुहाई दी है. शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भी पाकिस्तान ने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से प्रोटोकॉल तोडक़र द्विपक्षीय बातचीत की कोशिश की. एक तरफ पाकिस्तान शांति वार्ता की दुहाई का पाखंड करता है तो दूसरी तरफ उसकी कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई लगातार भारत में अस्थिरता फैलाने की साजिश करती रहती है. जाहिर है आतंकवाद और शांति वार्ता एक साथ नहीं चल सकती. दरअसल पाकिस्तान की जनता और हुक्मरान शांति की पहल चाहते हैं लेकिन पाकिस्तान की सेना ऐसा नहीं होने देती. जब तक सेना नहीं चाहेगी तब तक शांति की ठोस पहल नहीं हो सकती. यह भी सही है कि पाकिस्तान आर्थिक दुष्चक्र में फंसा हुआ है. आर्थिक संकट से निकलने के लिए उसे विदेशी आर्थिक मदद की जरूरत है. यह मदद उसे तभी मिल सकती है जब वो एक जिम्मेदार राष्ट्र की तरह व्यवहार करता दिखे. इसी मजबूरी के तहत वह बीच-बीच में शांति की बात करता रहता है, लेकिन आर्थिक संकट से अपनी जनता का ध्यान बांटने के लिए उसे भारत के साथ प्रॉक्सी वार करना भी जरूरी है जिससे अवाम का ध्यान भटक सके.पाकिस्तान के हालात इतने खराब हो चुके हैं कि उसकी अर्थव्यवस्था इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड और अमेरिका की मदद पर निर्भर हो गई है. पाकिस्तान को आईएमएफ से मिलने वाले कर्ज की बात करें, तो 1958 से जो सिलसिला शुरू हुआ, उसमें यह 25 वां ऋण पैकेज है. पाकिस्तान के ऊपर अपनी जीडीपी का करीब 74 प्रतिशत कर्ज है, जिसमें सबसे अधिक 30 अरब डॉलर का कर्ज चीन का है, जबकि 20 अरब डॉलर का कर्ज आईएमएफ का है. आर्थिक संकट के साथ-साथ पाकिस्तान में जनता में भयंकर असंतोष भी है खास तौर पर सीमांत प्रांत बलूचिस्तान, पाक अधिकृत कश्मीर और सिंध में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं. पाकिस्तान की सेना इमरान खान के समर्थकों के विरोध से भी परेशान है. ऐसे में अपनी जनता का ध्यान भटकने के लिए वहां की आर्मी भारत में इस तरह की हरकतें करती रहती हैं. इसके अलावा जिस तरह से जम्मू कश्मीर में जबरदस्त मतदान के जरिए जनता ने आतंकवाद को नकारा उससे भी पाकिस्तान बौखलाया हुआ है. कुल मिलाकर भारत को अपनी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था नई रणनीति के साथ मजबूत करने की जरूरत है.

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