सडक़ दुर्घटनाओं में जिस तरह से वृद्धि हुई है वह बेहद चिंताजनक है. देश में हर दस हजार किलोमीटर पर मरने वालों की दर 250 है, जबकि अमेरिका, चीन और आस्ट्रेलिया में यह संख्या 57, 119 व 11 है.ऐसा लगता है अब भारत की सडक़ों पर चलना अब जान हथेली में रखकर चलने जैसा ही होता जा रहा है. ताज़ा जानकारी के अनुसार दिल्ली-चंडीगढ़ हाईवे पर पानीपत के निकट रॉन्ग साइड से आए एक ट्रक ने पांच लोगों की जान ले ली.बताया जाता है कि ड्राइवर नशे में था.रास्ते में जो आया उसे कुचलता चला गया.सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि ऐसी दुर्घटनाओं में निर्दोष लोग ही मारे जाते हैं.वे लोग जो अपने परिवारों के भरण-पोषण के संघर्ष में जुटे रहते हैं. जिनके लिये यह जीवनभर का दुख बन जाता है.वहीं कई घायल जीवनभर के लिये विकलांगता झेलने को अभिशप्त हो जाते हैं.बहरहाल,केंद्रीय सडक़ परिवहन मंत्रालय का एक डराने वाला आंकड़ा पिछले दिनों सामने आया.मंत्रालय के अनुसार पिछले दस सालों में हुए सडक़ हादसों में 15 लाख लोग मारे गए. यह आंकड़ा भयावह है. दरअसल, वर्ष 2014 से 2023 के बीच सडक़ हादसों में 15.3 लाख लोग मारे गए. बताते हैं कि सडक़ हादसों में मरने वाले लोगों में भारत दुनिया में शीर्ष पर है.यह हमारी व्यवस्था की नाकामी को भी उजागर कर रहा है कि क्यों हर साल डेढ़ लाख लोग मारे जा रहे हैं.
सवाल उठाया जा सकता है कि आखिर भारत की सडक़ों पर चलना जान हथेली पर लेकर चलने जैसा क्यों होता जा रहा है? आखिर दस साल में केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ जैसे शहर की आबादी से ज्यादा लोग क्यों अकारण मौत के मुंह में चले जाते हैं? आखिर उन लोगों का क्या कसूर था कि उनके हिस्से में ऐसी दर्दनाक मौत आई? आखिर क्यों हम पूरी दुनिया में सडक़ हादसों में सबसे ज्यादा मरने वाले देश के रूप में जाने जाते हैं? निश्चित रूप से भारत में सडक़ दुर्घटनाओं में मरने वालों का यह आंकड़ा एक संवेदनशील व्यक्ति को हिलाकर रख देता है. हालांकि, देश में समय के साथ वाहनों की संख्या और सडक़ निर्माण में भी वृद्धि हुई है, लेकिन दुर्घटनाओं का आंकड़ा कम नहीं हो रहा है.वर्ष 2012 में करीब 16 करोड़ गाडिय़ां रजिस्टर्ड थी जो पिछले एक दशक में दुगनी हो गई हैं. लेकिन उस अनुपात में सडक़ें नहीं बढ़ीं.जहां वर्ष 2012 में देश में भारतीय सडक़ों की लंबाई 48.6 लाख किलोमीटर थी, तो वर्ष 2019 में यह 63.3 लाख किलोमीटर तक जा पहुंची थी. यहां यह विचारणीय प्रश्न है कि सडक़ सुरक्षा के तमाम उपायों के बावजूद देश में सडक़ हादसों में मरने वालों की संख्या कम क्यों नहीं हो रही है.हालांकि परिवहन विशेषज्ञ इसके कई कारण बताते हैं. इसकी वजह तेज रफ्तार में वाहन चलाना , नाबालिगों द्वारा बिना लाइसेंस के वाहन चलाना, निजी वाहन चालकों से ज्यादा ड्यूटी करवाना, कई बार कंस्ट्रक्शन की गड़बड़ी की वजह से भी दुर्घटनाएं होती हैं क्योंकि मोड इत्यादि अव्यावहारिक ढंग से बना दिए जाते हैं. जैसे इंदौर से आगरा मुंबई मार्ग पर गणपति घाट का निर्माण इस तरह किया गया कि वहां दुर्घटनाओं का बड़ा स्पॉट बन गया. विशेषज्ञों ने निरीक्षण कर बताया कि गणपति घाट का निर्माण गलत डिजाइन से हो गया है. नतीजे में वाहन दुर्घटनाओं की बाढ़ आ गई,जब समस्या बढ़ गई तो डिजाइन में संशोधन किया गया.अब वहां नए सिरे से घाट का निर्माण किया गया है. इसके अलावा आजकल दुर्घटनाओं का एक कारण यह भी है कि डिवाइडर के कारण यू टर्न लेने के लिए काफी चलना पड़ता है. ऐसे में वाहन चालक रॉन्ग साइड गाड़ी चलाकर अपनी साइड में आना चाहते हैं. जाहिर है परिवहन मंत्रालय को सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर जन जागरण अभियान चलाया जाना चाहिए जिससे लोग ट्रैफिक नियमों का पालन करें. कुल मिलाकर सडक़ दुर्घटनाओं पर रोक लगना जरूरी है.