कांग्रेस की आदिवासी राजनीति में घमासान

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मालवा और निमाड़ अंचल में प्रदेश के सबसे ज्यादा आदिवासी मतदाता रहते हैं। इस अंचल की तीन लोकसभा और 22 विधानसभा सीटें आदिवासियों के लिए सुरक्षित हैं। हालांकि आदिवासियों का प्रभाव इंदौर और खंडवा जैसी सामान्य सीटों पर भी है। विधानसभा की दृष्टि से देखा जाए तो लगभग 35 सीटों पर आदिवासी मत निर्णायक साबित होते हैं। इस अंचल के आदिवासियों को परंपरागत रूप से कांग्रेस का मतदाता माना जाता है। यदि 2003 ,2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव का अपवाद छोड़ दिया जाए तो इस अंचल में हमेशा ही आदिवासी सीटों पर कांग्रेस का वर्चस्व नजर आता है। 2023 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने इस अंचल में भाजपा को कड़ी टक्कर दी।

आदिवासियों के अधिकांश प्रमुख नेता कांग्रेस में है। इस कारण कांग्रेस के आदिवासी नेताओं में वर्चस्व का संघर्ष हमेशा चलता है। इस बार कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने गंधवानी के विधायक और आदिवासी नेता उमंग सिंघार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया है। उनकी अंचल के ही अन्य आदिवासी नेताओं जैसे बाला बच्चन, सुरेंद्र सिंह हनी बघेल, विक्रांत भूरिया, कांतिलाल भूरिया, डॉ हीरालाल अलावा जैसे नेताओं से नहीं बनती है। राहुल गांधी जिस तरह से उमंग सिंघार को महत्व देते हैं उससे उनके तेवर और अधिक एटीट्यूड वाले नजर आते हैं। कांग्रेस के आदिवासी राजनीति में इन दिनों डॉ हीरालाल अलावा, विक्रांत भूरिया जैसे नेता उपेक्षित हैं। जाहिर है इससे पार्टी की आदिवासी राजनीति पर प्रभाव पड़ रहा है।

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