यूजीसी का फैसला : स्वागत योग्य कदम

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने हाल ही में विश्वविद्यालयों तथा उच्च शिक्षा संस्थानों को साल में दो बार दाखिला देने की अनुमति प्रदान कर दी है. एक बार जुलाई-अगस्त में और दोबारा जनवरी-फरवरी में. यूजीसी के इस कदम का स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि इससे उन बच्चों को लाभ होगा जो परीक्षा के नतीजे आने में देरी होने, स्वास्थ्य कारणों या किसी निजी कारण से जुलाई-अगस्त में दाखिला नहीं ले पाते हैं. अब वे बिना एक साल इंतजार किए अपने पसंदीदा पाठ्यक्रम में दाखिला ले सकेंगे.दरअसल,यह काम आज़ादी मिलने के पहले दशक में पहली प्राथमिकता पर होना था.परंतु यह सन 2020 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को मंजूरी मिलने के बाद हुआ और अब करीब चार साल बाद और सुधारों की शुरुआत हुई है. ख़ास बात यह है कि ये बदलाव देश के उच्च शिक्षा क्षेत्र से संबंधित है जिससे चार करोड़ छात्र-छात्राएं जुड़े हैं.देश भर में फैले विभिन्न उच्च शिक्षा संस्थानों में करीब 20 लाख शिक्षक हैं. ताजा बदलाव सभी उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों में वर्ष में दो बार दाखिले की व्यवस्था से संबंधित है जिसकी शुरुआत स्नातक स्तर से होनी है.यूजीसी को उम्मीद है कि इस मॉडल को अपनाने से न केवल दाखिलों का अनुपात बेहतर होगा बल्कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग और छात्रों के आदान-प्रदान की स्थिति में भी सुधार होगा जिससे वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा में सुधार होगा .उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण के मुताबिक उच्च शिक्षा में दाखिले का अखिल भारतीय औसत 2021-22 में 28.4 प्रतिशत था जो पिछले सालों से बेहतर था. हालांकि विभिन्न राज्यों में काफी अंतर अभी भी है. साल में दो बार दाखिला देने की व्यवस्था को अनिवार्य नहीं किया गया है और यह उचित ही है.

यह विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों को तय करना है कि वे नई व्यवस्था को अपनाना चाहते हैं या नहीं.कुछ विश्वविद्यालयों के बारे में खबर है कि वे अगले अकादमिक सत्र से इसे लागू करने पर विचार कर रहे हैं. इसे चुनिंदा पाठ्यक्रमों में प्रायोगिक तौर पर आरंभ किया जाएगा. यह आशंका भी है कि नई व्यवस्था को अपनाने वाले उच्च शिक्षा संस्थानों को कई तरह की दिक्कतें भी हो सकती हैं. उदाहरण के लिए यह स्पष्ट नहीं है कि ये छात्र-छात्राएं सामान्य बैच और उनके अकादमिक कैलेंडर के साथ तालमेल बिठा सकेंगे या नहीं या फिर क्या उन्हें अपने अकादमिक कैलेंडर के साथ एक नई शुरुआत का अवसर मिलेगा. अगर बाद वाली बात होती है तो संस्थानों को एक ही साल के बच्चों के लिए दो अलग-अलग सेमेस्टर का संचालन करना होगा. हो सकता है कि अधिकांश उच्च शिक्षा संस्थानों के पास बढ़े हुए बच्चों की पढ़ाई के लिए पर्याप्त कर्मचारी, शिक्षक और कक्षाओं, पुस्तकालयों और प्रयोगशालाओं जैसी अधोसंरचना न हो. यूजीसी ने 1:20 के छात्र शिक्षक अनुपात की बात कही है लेकिन एआईएसएचई की 2020-21 की रिपोर्ट के मुताबिक यह 1:27 के साथ काफी ऊंचा बना हुआ है.

देश की उच्च शिक्षा व्यवस्था शिक्षकों की संख्या और गुणवत्ता दोनों में कमी की शिकार है.अधिकांश सरकारी संस्थानों का बुनियादी ढांचा भी बहुत अच्छा नहीं है. उनकी कक्षाएं बहुत भीड़ भरी हैं, वे हवादार नहीं हैं और साफ-सफाई की भी दिक्कत है.छात्रावासों की स्थिति भी बहुत संतोषजनक नहीं है.वर्ष 2024-25 में उच्च शिक्षा के बजट आवंटन में पिछले वर्ष की तुलना में करीब आठ प्रतिशत का मामूली इजाफा किया गया यानी यह राशि 3,525 करोड़ रुपये बढ़ाई गई लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए और राशि की जरूरत होगी. अगर भारत को वैश्विक बाजार से प्रतिस्पर्धा करनी है और बढ़त हासिल करनी है तो ऐसा करना आवश्यक है.उच्च तकनीक वाले सेवा निर्यात के मामले में.बहरहाल, कुछ निजी विश्वविद्यालय शायद नई दाखिला व्यवस्था को अपनाने के लिए बेहतर स्थिति में हों.इससे उन्हें उन अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी करने में भी मदद मिलेगी जिनके यहां ऐसी ही दाखिला व्यवस्था है. सरकारी विश्वविद्यालयों को दाखिले के अलावा शिक्षकों और बुनियादी ढांचे की व्यवस्था में भी सुधार करना होगा तभी वे बेहतर नतीजे पा सकेंगे.

Next Post

मेघालय उच्च न्यायालय में बम की धमकी के बाद सुरक्षा बढ़ायी

Wed Jun 19 , 2024
Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email शिलांग (वार्ता) मेघालय उच्च न्यायालय को एक ईमेल के माध्यम से बम से उड़ाने की धमकी मिलने के बाद सुरक्षा बढ़ा दी गई। एक पुलिस अधिकारी ने यह जानकारी दी है। इस साल मेघालय उच्च न्यायालय को […]

You May Like