आजादी के 77 साल में बुंदेली धरा पन्ना का सिर्फ दोहन हुआ, विकास के नाम पर फिसड्डी

पन्ना जिले की पातीः – द्वारा सुरेश पाण्डेय पन्ना
खास बातें
1. 50 साल कांग्रेस ने किया शासन तो लगभग 20 वर्ष भाजपा रही सत्ता में।
2. सीएम के बाद अहम पद भाजपा प्रदेशाध्यक्ष का ओहदा रखने वाले सांसद भी नहीं दे सके कोई सौगात।
3. अपने साईड बिजनेस एवं काले कारोबारों को चमकाना बना राजनैतिक लक्ष्य।

आजादी के लगभग 77 वर्ष बीत चुके हैं। कांग्रेस ने देश एवं प्रदेश में 50 वर्ष तक राज किया है। तो वहीं लगभग 20 वर्षो तक भाजपा को सत्ता की चाबी मिली। लेकिन पन्ना का विकास क्या हुआ है किसी से छिपा नहीं है। आजादी के बाद से आज तक देखा जाये तो पहली बार पन्ना से सांसद जो कि सत्ताधारी दल भाजपा के रहे और उन्हें भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष भी बनाया गया जो कि मुख्यमंत्री के बाद दूसरा पावरफुल पद प्रदेश में होता है। लेकिन उनके कार्यकाल के 5 साल में पांच उपलब्धियां भी उनके खाते में नहीं है। ऐसे पावरफुल पद का रहना या न रहना जिले के लिए कोई मायने नहीं रखता। यदि इतने वर्षो के जनप्रतिनिधियों के चुनाव पूर्व एवं सत्ता सीन होने के बाद के रहन सहन ठाठ बाट एवं उनके विकास को देखा जाये तो धन कुबेर भी कमजोर साबित होंगे। कुलमिलाकर जनप्रतिनिधियों को कुछ अपवाद स्वरूप छोड दिया जाये तो किसी ने जिले के विकास के प्रति ध्यान नहीं दिया। सिर्फ सिर्फ अपने एवं परिजनों तथा चहेतों के विकास तक सिमटे रहे यही कारण है कि रत्नगर्भा नगरी पन्ना आज जहां थी लगभग वहीं पर हैं। मध्यप्रदेश में देखा जाए सर्वाधिक राजस्व बुंदेलखंड के जिलों से ही प्रदेश एवं केंद्र को मिल रहा है, लेकिन विकास के लिये कोई ठोस रणनीति एवं पर्याप्त कोटा न मिलने से विकास के नाम पर प्रदेश में बुंदेलखंड क्षेत्र के ही जिले हर क्षेत्र में पिछड़े है। वही राजनैतिक उठा पटक चलते बुंदेलखंड क्षेत्र की कई पुरानी लोक कला संस्कृति अपनी अंतिम सांस लेने को मजबूर ही चली है। क्योंकि अपेक्षित बुदेलखंड से वसूले जा रहे राजस्व के बदले इस क्षेत्र के आवंटित धनराशि ऊंट के मुंह मे जीरा के बराबर है और विकास कार्य अवरूद्ध है और इससे लोक कला व संस्कृति का न्हास हो रहा है। रोजी रोटी की कमी के कारण इस क्षेत्र के वाशिंदे पलायन कर रहे हैं।
प्रथक बुंदेलखंड की मांग भी पड गयी ठंडीः-उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद से ही बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाये जाने की मांग की जाती रही है इस अपेक्षित विकास के लिये प्रथक बुंदेलखंड राज्य की मांग को आवश्यक बताते हैं। करीब तीन दशक पहले राज्य की मांग ने जोर पकडा और विभिन्न संगठनों ने आंदोलन शुरू कर दिये। कालांतर मे बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा प्रभावी हुयी और वह अलग प्रांत के लिये आंदोलन करती रही है। काबिलेगौर है कि तब बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा के तत्कालीन अध्यक्ष शंकर लाल मेहरोत्रा व राजा बुंदेला आदि ने एक रणनीति तय करके 1994 में मध्यप्रदेश विधानसभा एवं 1995 में लोकसभा मे बुंदेलखंड प्रथक की मांग के समर्थन में पर्चे फेंककर आंदोलन की गति दी थी। यह बात सत्य है और सार्थक है कि शासन की उपेक्षित नीति से बुंदेलखंड का विकास अवरूद्ध है। लोक संस्कृति और कला नष्ट हो रही है। इसकी संभव है इसके अलावा बादशाह सिंह की पार्टी इंसाफ सेना भी पिछले कुछ दो चार वर्षो से लगातार बुंदेखंड राज्य के निर्माण को लेकर सक्रिय रही है। अब तक की सरकारों की उपेक्षा से बुंदेलखंड के अवरूद्ध विकास का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश सरकार के कई मंत्री बुंदेलखंड के विकास की अपेक्षित मानते हैं। विभिन्न राजनैतिक दलों व संगठनों मे बुंदेलखंड का अपेक्षित विकास न होने पाने के कारण अलग राज्य की कसक है और सभी अपनी तरह के धरना प्रदर्शन आदि आंदोलन करते भी रहते है लेकिन ताज्जुब इस बात का है कि विकास की ललक व अलग राज्ये की ललक तो लगभग सभी में दिखती है, लेकिन बुंदेलखंड प्रांत की मांग कर रहे राजनैतिक दलों के नेता व संगठन के लोगों व संगठन के लोग मे एक जुटता दिखाई नहीं देता है।
प्रस्तावित प्रथक बुंदेलखंड राज्य पर एक नजरः- एक नजर बुंदेलखंड के स्वकरूप पर डालते तो प्रस्तावित बुंदेखंड मे उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश तेईस जनपद शामिल किय गये हैं। इनमें उत्तर प्रदेश के हमीरपुर, महोबा, बांदा, चित्रकूट, जालौन, ललितपुर, झांसी जिले पूर्ण रूप से शामिल किये गये है। इसके अलावा मध्य प्रदेश के ही छतरपुर, पन्ना, दमोह, सागर, नरसिंहपुर, जबलपुर, रायसेन, विदिशा,गुना, शिवपुरी, मुरैना,दतिया, भिंड व ग्वालियर जिले के आंशिक भाग को बुंदेलखंड में सम्मिलित किया गया है एकलाख साठ हजार वर्ग किलोमीटर परिक्षेत्र के करीब तीन करोड वाशिंदे अपने विशिष्ट पर्व एवं त्यौहारों, हस्त शिल्प, लोक संस्कृति की विरासत तो अपने पास संजाये है लेकिन विकास के क्रम में बहुत पीछे है। यहां की विश्वस्तरीय खनिज संपदा में गोर पत्थर व हीरे रत्न शामिल है। यहां के स्त्रोतों में सरकार अरबों रूपयों राजस्व की वसूली करती है और बदले में बुंदेलखंड विकास निधि के नाममात्र के लिये राशि आवंटित की जाती है। संसाधनों की कमी के कारण लोगों के पास रोजगार नहीं है। बुंदेलखंड के लगभग प्रत्येक गांव से दर्जनों लोगों अपने परिवार सहित पलायन कर रोटी की जुगाड़ कर रहे है। इसके प्रतिफल मे अपराधों का भी बढावा मिल रहा है। यहां के वन क्षेत्र डकैतो की शरण स्थली वन बनकर वनक्षेत्र डकैतों की शरणस्थली बन चुके है। यह सब इस बात का घोतक है कि यहां का पिछड़ापन ही मूल समस्या है। कि यहां का पिछडापन ही मूल समस्या है। वैसे भी वर्ष 1995 मे गठित प्रथम राज्य पुनर्गठन आयोग की अपनी रिपोर्ट मे बुंदेलखंड के संर्वागीण विकास के लिये अन्य राज्यों की तरह इसे भी स्वतंत्र राज्य बनाने की सिफारिश कर चुका है। विचारणीय बात है कि बुंदेलखंड की जनता को बचाने एवं सुरक्षित रखने मे यहां के दिग्गज नेता इस दिशा में क्या करते हैं। बुंदेलखंड मे उद्योगों के लिये है अकूत खनिज देश के किसी भी कोने में पहुंच जाये बुंदेलखंडी हर जगह मिल जाएंगे। इसका कारण यहां से होने वाला पलायन है। बडे स्तर पर पलायन के लिये राजनेता अधिकारी भले ही खनिज तथा संसाधनों का अभाव बताते हों लेकिन विषय विशेषज्ञों की राय मे यहां खनिज के विकसित राजयों से अधिक भंडार है लेकिन इसके दोहरा का तरीका सही न होने से बुंदेलखंड पिछड़ रहा है।
अरबों का राजस्व देने के बावजूद पन्ना के हक में कुछ नहींः- आज पन्ना से ही अरबों रूपए के हीरे प्रतिवर्ष निकल रहे हैं लेकिन पन्ना आज से आजादी के पैंसठ वर्ष पूर्व उसी स्थान पर खड़ा है सिर्फ पन्ना की धरती के अकूत हीरा एवं पत्थर खनिज भंडार भंडार का केंद्र एवं राज्य सरकारों ने दोहन किया है। दिया कुछ नहीं है इसके लिये बाहर का कोई दोषी नहीं है दोषी हैं तो जिले के सांसद एवं विधायक जिन्होंने आज तक सिर्फ अपना एवं परिवार का विकास किया है जिले के विकास पर कोई ध्यान नहीं दिया है।
गरीबों की पहुंच से लाभ दूरः- बुंदेलखंड मे खनिज पदार्थ पर्याप्त मात्रा में पाए जाते है। बुंदेलखंड के खनिज पदार्थो को तीन भागों में बांट सकते है। अधात्विक खनिज रत्न समूह के खनिज और भवन निर्माणकारी खनिज। अधात्विक खनिज में यहां पायरोफ्लाइट डायस्पोर, राक फास्फेट, केल्साइड, सिलका रेत तथा फैल्स्पार मुख्य है। रत्न समूह के खनिज मे हीरा और क्वार्टज की विभिन्न क्रिस्टिल किस्में शामिल है। वहीं भवन निर्माणकारी चट्टानों मे ग्रेनाइट बेसाल्ट तथा बलुआ पत्थर बुंदेलखंड मे पाया जाता है। लेकिन इन खनिजों के दोहन का लाभ गरीबों की पहुंच से दूर हैं।
लौह अयस्क भी बहुतः- सागर एवं छतरपुर जिले मे फैली चट्टानों मे लौह अयस्क छतरपुर, दमोह, टीकमगढ़ मे कॉपर सल्फाइड तथा गैलेना के भंडार है।
इन उद्योगों की है संभावनाः- बुंदेलखंड मे मिलने वाले खनिज के आधार पर यहां बहुत से बड़े तथा मध्य उद्योग स्थापित हो सकते हैं। यहां मिलने वाले रेड ऑक्साइड तथा लौह अयस्क से पेंट वार्निस पायरोफ्लाइड से कीटनाशक से उर्वरक, लीमिटिक तथा लाइमस्टोन से स्पंज आयरन और चूना पत्थर से सीमेंट तथा कच्चा हीरा पालिश उद्योग की अपार संभावनांए है। एक मात्र औद्योगिक संस्था भारत सरकार का उपक्रम एनएमडीसी है उसमें भी बेरोजगारों को प्राथमिकता नियुक्तियों में मिलनी चाहिए लेकिन उसमें भी 80 से 90 प्रतिशत कर्मचारी एवं अधिकारी दक्षिण भारतीय है। जो जिले के बेरोजगारों के साथ घोर अन्याय है।
फिर भी बेरोजगारीः- बुंदेलखंड मे बेरोजगारी की सबसे बडी समस्या है। अपार खनिज पदार्थो के बाद भी यहां की बेरोजगारी का प्रमुख कारण यहां के खनिज पदार्थो का विदोहन न होना है। शासकीय संस्थाओं से प्राप्त आंकड़ों पर विश्वास करें तो यहां के खनिज पदार्थो का अभी तक एक प्रतिशत भी उत्खनन नहीं हो सका है। जहां उत्खनन हो भी रहा है वहां निजी ठेकेदारों द्वारा कराए जाने से रोजगार की स्थाई संभावनाएं क्षीण हो जाती है।

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