डॉ संजय पयासी
सतना:विन्ध्य में एक वक्त ऐसा लगा था कि अब यह क्षेत्र प्रदेश क्या?देश में स्वास्थ्य सुविधाओं में जल्द ही स्थान बनाएगा.कहने के लिए अस्पताल और मेडिकल कालेज की कई ऊंचे= ऊचेभवन कई जगह बन गए.कुछ अस्पतालों में लाखों करोडों की अत्याधुनिक उपकरण भी स्थापित कर दिए गए हैं.इसके बावजूद हालत में पहले से ज्यादा सुधार नहीं है.अभी भी इतवारी और इन्टरसिटी में हर दिन पहले की तरह ही मरीजों की आवाजाही जारी है.पिछले दिनों कुछ घटनाओं ने मानवी संवेदनाओं को झकझोर दिया है.एक बार फिर ऐसा महसूस होने लगा है कि स्वास्थ्य विभाग का भारी भरकम अमला महज रोजगार के आंकडों तक सीमित है.
सेवा भाव के इस पेशे में किसी को इस का अन्दाजा नहीं है कि उसकी ओर आमजन कितनी अपेक्षाओं के साथ देख रहा है. जीवन और मृत्यु के बीच देवदूत की भूमिका अदा करने वाले पढ़ाई में होने वाले खर्च को याद कर हर दिन उसे घटाने पर विचार करेंगे या कभी उनका भी अनुसरण करेंगे जिन्होने इस देश की जनता के अन्दर अपने खून पसीने से सतत प्रयास कर लाइलाज मर्जों का बिना किसी तकनीकि सहायता इलाज कर विश्वास कायम किया.इस आदर्श पेशे में पिछले कुछ दशकों के दौरान जो अंधी प्रतिस्पर्धा पैदा की है.उसमें शपथ के शब्द कहां गुम गए पता ही नहीं चल रहा.
गांधी मेडिकल अस्पताल के गायनी वार्ड की ओटी में लगी आग घटना हो सकती है.पर जिस मृत नवजात का शव परिजन नहीं देख पाए उनकी भावना कभी स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति सकारात्मक नहीं हो सकती.इतना ही नहीं खुद जिन्दगी और मौत के बीच जुझ रहे थैलीसिमिय पीडि़त बच्चों के शरीर में एच आई बी का प्रवाह असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा ही मानी जा सकती है.प्रश्र तो यह भी है कि सेप्टीशिमिया से पीडि़त रामजन्मभूमि आन्दोलन के बड़े प्रतिनिधि डां रामविलास वेंदान्ती को विन्ध्य की स्वास्थ्य सेवा इतना भी अवसर नहीं दिला सकी की उन्हे किसी बड़े स्थान तक पहुचाया जा सके.प्रदेश के उपमुख्यमंत्री स्वास्थ्य मंत्री होते हुए भी कुछ नहीं कर सके.सैकडों विशेषज्ञ चिकित्सकों के होते हुए चौबीसों घण्टे निगरानी के बावजूद उन्हे कैसे हदयघात हो गया यह भी जानने का विषय है.अब लगने लगा है कि विन्ध्य की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए सुविधाओं के वजाए सोच में तब्दीली लानी होगी.
