संघर्ष और सफर: भू-वंटन आंदोलन बना उमा की राजनीति की पहली सीढ़ी, प्रवचनकर्ता से बनी सीएम

टीकमगढ़: पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने अपने जीवन के संघर्ष, राजनीति में प्रवेश की कहानी और वह ऐतिहासिक आंदोलन याद किया जिसने उन्हें सीएम की राह पर ला खड़ा किया। बचपन की रामायण पाठ की शुरुआत से लेकर 1984 के भू-वंटन आंदोलन, आयोध्या पर उनका दृष्टिकोण, 2029 में चुनाव लड़ने की इच्छा, अपनी मां के संघर्ष और भविष्य की योजनाओं तक उमा भारती ने बेबाक अंदाज में सब कुछ साझा किया।

उन्होंने बताया कि उनका पहला सार्वजनिक प्रवचन महज छह साल की उम्र में हुआ था। गांव के परमानंद जी और इलाके के जिला शिक्षा अधिकारी बी.डी. नायक ने उनकी प्रतिभा को पहचान कर उन्हें आगे बढ़ने का मार्ग दिखाया। यह दौर 1966 का था, जब वे सिर्फ एक साधारण प्रवचनकर्ता थीं।उमा भारती ने खुलासा किया कि उनकी वास्तविक राजनीति 1984 में शुरू हुई, जब अर्जुन सिंह सरकार के भू-वंटन के दौरान गरीबों के साथ हो रहे अत्याचार को देखकर वे आक्रोशित हो उठीं। उन्होंने बताया कि डूंड़ा गांव में रहते हुए उन्होंने अचानक सैकड़ों लोगों के साथ एडीएम रैंक के अधिकारी के बंगले का घेराव कर दिया। आंदोलन इतना प्रभावी था कि कलेक्टर और एसपी को मौके पर आना पड़ा और उनकी मांगें माननी पड़ीं।
इसी आंदोलन के बाद राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने उन्हें राजनीति में आने की सलाह दी और फिर उमा ने चुनावी सफर शुरू किया उन्होंने बताया कि शुरुआती दिनों में वे एंबेसडर कार खुद ड्राइव करती थीं और अपने ड्राइवर हसन व नसीम को पीछे बैठाती थीं। उमा ने कहा कि आयोध्या आंदोलन से उन्हें राजनीतिक लाभ नहीं, बल्कि सम्मान प्राप्त हुआ, क्योंकि उस समय वे संसद का दूसरा कार्यकाल पूरा कर रही थीं।

बागेश्वर धाम के बयान को लेकर उन्होंने कहा कि भारत पहले से ही संस्कृति से हिन्दू राष्ट्र है, इसे घोषित करने की आवश्यकता नहीं। उन्होंने जातीय समानता पर जोर देते हुए कहा कि समाज में बराबरी रोटी-बेटी के रिश्तों से ही आ सकती है। धर्म छुपाकर होने वाले विवाहों की उन्होंने कड़ी निंदा की।साल 2019 में चुनाव न लड़ने का निर्णय लेने के बाद अब उमा भारती 2029 में चुनाव लड़ने की इच्छा जता रही हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा कि अगर पार्टी चाहती है, तो वे सिर्फ झांसी से ही चुनाव लड़ेंगी।

अपनी मां को याद करते हुए वे भावुक हो गईं। उन्होंने बताया कि उनकी मां ने कठिन संघर्षों के बीच परिवार को सँभाला और बच्चों को पढ़ाया। उन्होंने कहा कि अपनी मां की स्मृति में वे पैदल यात्रा कर रही हैं, हालांकि डॉक्टरों की सलाह के कारण वे सीमित दूरी ही चलेंगी और कुछ गांव कार से जाएंगी।अंत में गीता भवन के विषय में उन्होंने कहा कि अगर इसके लिए जमीन उपलब्ध नहीं है, तो वे अपनी एक एकड़ जमीन देने को तैयार हैं।

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