
भोपाल: मप्र कांग्रेस के प्रवक्ता विक्रम चौधरी ने शनिवार को जारी बयान में केंद्र सरकार पर “अवास्तविक और भ्रामक” आर्थिक दावे पेश करने का आरोप लगाया। चौधरी ने कहा कि सरकार द्वारा 8.2% जीडीपी वृद्धि और महंगाई 0.25% तक गिरने का दावा ऐसा चित्र बनाता है मानो भारत “चीन को पीछे छोड़ रहा हो और स्विट्ज़रलैंड जैसी मूल्य स्थिरता हासिल कर चुका हो”, जबकि यह वास्तविक आर्थिक परिस्थितियों के विपरीत है।
चौधरी ने कहा कि जब सरकार रिकॉर्ड आर्थिक वृद्धि का ढोल पीट रही है, उसी समय कॉर्पोरेट जगत के प्रमुख संकेतक बिल्कुल अलग कहानी बयान कर रहे हैं। जिस तिमाही में सरकार ने तेज़ GDP वृद्धि का दावा किया, उसी दौरान एफएमसीजी दिग्गज एचयूएल की बिक्री 1% भी नहीं बढ़ी, एचडीएफसी बैंक के ऋण वितरण में केवल 4% की वृद्धि हुई और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया जैसे बड़े बैंक में भी वृद्धि लगभग नगण्य रही।
उन्होंने आरोप लगाया कि हाल में शेयर बाज़ार में दिखाई गई स्थिरता भी वास्तविक नहीं थी, बल्कि सरकार-नियंत्रित वित्तीय संस्थाओं—विशेषकर LIC—द्वारा बड़े पैमाने पर की गई ख़रीद का परिणाम थी। यह कदम तब उठाया गया जब भारी FII बिकवाली, कमजोर रुपये, निराशाजनक तिमाही नतीजों और नकारात्मक वैश्विक संकेतों के चलते बाज़ार में गहरी गिरावट की आशंका बन गई थी।
चौधरी ने यह भी कहा कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने हाल ही में भारत के आर्थिक डेटा की विश्वसनीयता को C-ग्रेड पर डाउनग्रेड किया है, जिसमें अनौपचारिक अर्थव्यवस्था की अधूरी कवरेज, पद्धतिगत खामियां और त्रैमासिक अनुमान निकालने की कमजोर प्रक्रिया जैसी गंभीर टिप्पणियां शामिल हैं। यह सरकार के विकास दावों पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
उन्होंने बढ़ते राजकोषीय घाटे, बाहरी कर्ज पर निर्भरता, ठहरे हुए निर्यात, बढ़ते व्यापार घाटे और लगातार बनी बेरोजगारी को सरकार के “तेज़ आर्थिक विकास” के दावे के उलट वास्तविक आर्थिक स्थिति का प्रमाण बताया। चौधरी ने कहा कि जीडीपी के चमकदार आंकड़ों के बावजूद प्रति व्यक्ति क्रय-शक्ति में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है, जिससे जनता के जीवन स्तर पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा।
अंत में चौधरी ने कहा कि देश में “दो समानांतर अर्थव्यवस्थाएँ” दिखाई दे रही हैं—एक कागज़ों में तरक़्क़ी करती हुई और दूसरी हकीकत में संघर्ष करती, जहाँ महंगाई, बेरोजगारी और गिरता जीवन-स्तर अब भी गहरी चिंता का विषय बने हुए हैं।
