डॉक्टर गौर कठोर सजा के सदैव खिलाफ रहे : न्यायमूर्ति शर्मा

सागर। मध्य प्रदेश के प्रथम विश्वविद्यालय सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक डॉक्टर सर डॉ. हरीसिंह गौर की 156वीं जयंती के अवसर पर विश्वविद्यालय के गौर प्रांगण में मुख्य समारोह मे मुख्य अतिथि उच्चतम न्यायालय नई दिल्ली के न्यायमूर्ति सतीश चन्द्र शर्मा ने कहा कि डॉक्टर गौर एक महान स्वप्न द्रष्टा थे । उन्होंने कानून के क्षेत्र में अनेकों ऐसे कार्य किये जो आज भी मील का पत्थर हैं । उन्होंने कहा कि डॉ गौर कठोर सजाओं के सदैव खिलाफ थे। उनका मानना था कि इंसान को कोई भी सजा ऐसी मिलनी चाहिए जिससे वह अपने जीवन में सुधार ला सके । अपने जीवन को बदल सके । इसलिए नहीं कि उसका जीवन यातनामय हो जाए । उनका मानना था कि काल-कोठरी जैसी व्यवस्था सजा का अमानवीय तरीका है । उन्होंने बताया कि डॉ. गौर सुधारात्मक कानूनों को लागू करना चाहते थे । उन्होंने सुप्रीम कोर्ट जैसी व्यवस्था की वकालत की । वे लड़कियों की कम उम्र में शादी के खिलाफ थे । ये सभी विचार आज बहुत ही प्रासंगिक हैं । वर्तमान सरकार ने बहुत से कानूनों की समीक्षा करके अप्रासंगिक कानूनों को हटा दिया गया है । आज लड़कियों की शादी की उम्र में भी बदलाव करते हुए कम उम्र में विवाह किये जाने पर कई कठोर कानून भी प्रचलन में आ गये हैं । हमें उनकी विरासत को आगे बढ़ाना है । उन्होंने विश्वविद्यालय की प्रगति की कामना की और कहा कि मेरा मानना है कि शिक्षा के केंद्र में वंचितों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए ताकि वंचित वर्ग भी विकास की मुख्य धारा से जुड़ सके । कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलाधिपति एवं पूर्व आईपीएस कन्हैया लाल बेरवाल ने कहा कि डॉ. गौर ने अपना सर्वस्व दान कर इस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी । वे ज्ञान के अथक साधक थे, उन्होंने अपने स्वप्न को एक आकार दिया और बुंदेलखंड की इस धरती पर ज्ञान का प्रकाश फैलाया । वे एक सच्चे न्याय विद थे और उनके द्वारा विश्वविद्यालय के रूप में एक बहुत बड़ा वृक्ष लगाया । विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वाय. एस. ठाकुर ने डॉ. गौर की जीवन यात्रा को प्रस्तुत किया । कैबिनेट मंत्री गोविन्द सिंह राजपूत ने कहा कि डॉ. गौर ने कठिनतम समय में यह विश्वविद्यालय स्थापित किया जब कोई सोच भी नहीं सकता था । उनके पास बड़े शहरों में भी विश्वविद्यालय खोलने के प्रस्ताव आये लेकिन उन्होंने अपनी मातृभूमि को इसके लिए चुना । उनकी कल्पना, उनकी सोच बहुत व्यापक थी । स्वयं की मेहनत की कमाई को सार्वजनिक हित में दान कर देना उनके जैसे महान व्यक्तित्व ही कर सकते हैं । आज उनको याद करने का दिन है। सांसद डॉ. लता वानखेड़े ने कहा कि डॉ. गौर हमारे अभिमान हैं. विश्वविद्यालय उनकी विरासत है। विश्वविद्यालय की स्थापना एक महान शख्सियत की निःस्वार्थ सेवा का प्रतीक है ।राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय नई दिल्ली के कुलपति प्रो. जी.एस. वाजपेयी ने कहा कि डॉ. गौर संघर्ष के प्रतीक हैं । एक व्यक्ति जब सोच लेता है और अपनी सोच के अनुरूप अपनी मंजिल की तरफ आगे बढ़ता है तो बाधाएं होते हुए भी उसकी दृढ़ता और उसका संघर्ष उसे मंजिल तक पहुंचा ही देता है । डॉ. गौर ऐसे ही संघर्षशील व्यक्तित्व थे । उन्होंने आइडिया ऑफ़ यूनिवर्सिटी पर बात रखते हुए विश्वविद्यालयों की प्रासंगिकता, उनके महत्त्व और उनकी भूमिका पर चर्चा की । उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय की स्थापना का उद्देश्य केवल ज्ञान का प्रसार करना नहीं था बल्कि समाज में योगदान करना भी करना। न्यायमूर्ति सतीश शर्मा एवं प्रो. वाजपेयी ने पिता की स्मृति में स्वर्ण पदक पुरस्कार प्रारंभ किये जाने की घोषणा की । आगामी गौर जयन्ती से प्रतिवर्ष उनके द्वारा प्रदत्त राशि से मेधावी विद्यार्थियों क यह राशि प्रदान की जायेगी. न्यायमूर्ति शर्मा द्वारा प्रदत्त राशि से इतिहास विभाग के मेधावी विद्यार्थी को यह राशि प्रदान की जायेगी । प्रो. बाजपेयी द्वारा प्रदत्त राशि से अपराध शास्त्र एवं न्यायिक विज्ञान के मेधावी विद्यार्थी को राशि प्रदान की जायेगी ।राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय नई दिल्ली के कुलपति प्रो. जी. एस. बाजपेयी ने घोषणा की कि विधि विभाग में प्रस्तावित डॉ. गौर चेयर की विधिवत स्थापना और संचालन के लिए राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के सहयोग से 10 लाख रूपये की राशि प्रदान की जायेगी और आगामी दिनों में इस हेतु औपचारिक प्रक्रिया पूरी कर ली जायेगी । उन्होंने यह भी कहा कि विधि विभाग के प्रतिवर्ष पांच विद्यार्थी राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में पेड इंटर्नशिप कर सकते हैं । इसके लिए भी आगामी दिनों में औपचारिकता पूर्ण कर यह सुविधा विद्यार्थियों के लिए प्रारम्भ हो जायेगी । मंचासीन अतिथियों द्वारा विश्वविद्यालय के शिक्षकों द्वारा लिखित पुस्तकों का विमोचन किया गया । विभिन्न दान दाताओं द्वारा प्रदत्त राशियों से विभिन्न विभाग एक कक्षाओं के मेधावी छात्र-छात्राओं को मंचासीन अतिथियों द्वारा पदक एवं राशि प्रदान की गई । संचार एवं पत्रकारिता विभाग के प्रायोगिक पत्र ‘समय’ का भी विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया । विभिन्न खेलकूद के विजेताओं को भी पुरस्कृत किया गया ।गौर पीठ के तहत प्राप्त दान राशि से सिंगल गर्ल चाइल्ड और दिव्यांग श्रेणी में स्नातक प्रथम वर्ष के एक-एक मेधावी विद्यार्थियों को अध्ययन जारी रखने हेतु आर्थिक सहायता के रूप में पचीस हजार रूपये एक मुश्त राशि प्रदान की गई । विश्व के सर्वश्रेष्ठ दो प्रतिशत वैज्ञानिकों की सूची में शामिल विश्वविद्यालय के 11 शिक्षकों एवं एक शोधार्थी का भी सम्मान मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया । संचालन डॉ. शशि कुमार सिंह एवं डॉ. शालिनी चोइथरानी ने किया । आभार ज्ञापन प्रभारी कुलसचिव डॉ. सत्यप्रकाश उपाध्याय ने किया ।

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